Sample Copy. Not For Distribution. · ही ररश्ा होता है नजसे...

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    दास्तान-ए-दोस्ती

    किस्सा यारी िा, किस्सा किन्दगी िा

    Sample Copy. Not For Distribution.

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    Publishing-in-support-of,

    EDUCREATION PUBLISHING

    RZ 94, Sector - 6, Dwarka, New Delhi - 110075 Shubham Vihar, Mangla, Bilaspur, Chhattisgarh - 495001

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    ISBN: 978-93-88381-86-4

    Price: ₹ 195.00

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    Printed in India

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    दास्तान-ए-दोस्ती

    किस्सा यारी िा, किस्सा किन्दगी िा

    आददत्य गुप्ता

    EDUCREATION PUBLISHING (Since 2011)

    www.educreation.in

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  • v

    ये किताब ख़ास तौर पर सचे्च दोस्ोों िे किए किखी गयी है

    क्योकि मेरा मानना है िी हर किसी िे किन्दगी में िही न

    िही किसी न किसी रूप में एि सच्चा दोस् तो होता है जो

    आपिा हमेशा साथ देता है।

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    िेखि िी ििम से....

    आज-कल की दुनिया में हर इंसाि को, और समाज को ज़रा ठहरिे

    की ज़रुरत है और ये सोचिे की ज़रुरत है की जो वो देख रहे है, जो

    वो सुि रहे है, क्या सच में वैसा ही है? िही।ं कभी-कभी जो हम

    अपिी आँखो ंसे देखते है वो असली सच िही ंहोता।

    मै यहाँ बात करिा चाहता हँ ररश्ो ंकी, इस दुनिया में काफी

    सारे ररश्ें है, माँ-बाप, भाई-भाई, भाई-बहि और िजािे नकतिे,

    लेनकि इि सब ररश्ो ंमें भी एक ररश्ा होता है, "दोस्ी" का,

    दोस्ती का ररश्ा भी अिोखा ही होता है, ि तो ये मज़हब देखती है,

    ि ही जात-पात और ि ही अमीरी-ग़रीबी का फकक , एक दोस्ती का

    ही ररश्ा होता है नजसे इंसाि जब चाहे जोड़ सकता है, दोस्ती में

    ि तो पैसो की ज़रुरत होती है, ि तो इच्छाओ ंकी, ज़रुरत होती है

    तो नसफक थोड़े भरोसे की।

    लेनकि आज-कल कुछ लोग ऐसे भी है जो दोस्ती के ररश्ें को

    िजािे कौि सा ररश्ा समझ लेते है, अगर दो लड़के दोस्त हो तो

    ठीक, या जब दो लड़नकया दोस्त हो तो भी ठीक लेनकि जब एक

    लड़का और एक लड़की दोस्त हो तो कभी-कभी ये क़ुबूल िही ं

    नकया जाता और उिमे ही कोई और ररश्ा निकालिे की कोनिि

    की जाती है, लेनकि अपिी राय यँू ही रख देिे से पहले ये भी तो

    सोचिा ज़रूरी होता है की सामिे जो लड़का-लड़की नदख रहे है,

    क्या पता दोिो ंभाई-बहि हो या नफर दोिो ंबहुत अचे्छ दोस्त हो।

    ये कहािी भी इसी तरह के एक दोस्ती के ररशे् के बारे में है,

    ये कहािी है दोस्ती की, ये कहािी है भरोसे की, ये कहािी है सपिे

    की, ये कहािी है सपिे में नछपे नवश्वास की, ये कहािी है अंनकत की,

    नजसका एक सपिा होता है की वो एक कनव बिे और उसकी एक

    नबलु्कल ियी दोस्त बािी उसका ये सपिा कैसे पूरा करती है, वो

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    अंनकत को नकस तरह पे्रररत करती है? इस कहािी में क्या-क्या

    होता है? और अंनकत अपिे सपिे की दौड़ में नकस तरह आगे

    बढ़ता है?

    और आगे इस दोस्ती के कारवें में और क्या-क्या हुआ ये सब

    जाििे के नलए आप लोग उतु्सक है?

    दोस्ी िी िश्ती में सवार था वो,

    चि कदया साथ, इि दोस् पर भरोसा िर िे,

    कनभा गयी वो, उससे सच्ची दोस्ी,

    किख दी मैंने भी बेकिक्र होिर,

    इनिी ही एि नई "दास्ान-ए-दोस्ी"

    तो सुनिए मेरी कहािी अंनकत की ज़बािी……

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    अंदित

    मैं अोंकित, ये मेरी ही िहानी है,

    मेरी कहािी की िुरुआत होती है बहुत ही अजीब तरीके से। जब

    मैंिे बारहवी ंक्लास पास की थी तब मैं बहुत खुि था इस बात से

    नबलु्कल बेखबर की अब मुझे कोई ि कोई िौकरी करिी पड़ेगी,

    कही करिी ही पड़ेगी लेनकि एक सच ये भी था की मैं अभी िौकरी

    करिे के नलए नबलु्कल भी तैयार िही ंथा, लेनकि ये सब भुला कर

    मैंिे, नहम्मत जुटा कर मैंिे कोनिि भी की। लेनकि िायद मेरी

    नकस्मत और मेरी नज़न्दगी दोिो ंको ही कुछ और मंजूर था, हारकर

    मैंिे आगे एक कंपू्यटर कोसक कर नलया, और मैं नबलु्कल तैयार था

    अपिी एक ियी पढाई की िुरुआत करिे के नलए। जो मैं चाह रहा

    था, बस, वही हो रहा था|

    इोंसान अक्सर किन्दगी मे रोता है,

    वह कहम्मत हार जाता है, इसकिए उदास होता है,

    किन्दगी बहुत सुहानी है, मेरे दोस्,

    इसमें बस वही होता है, जो होना होता है।

    मेरी वह पहली क्लास थी, जब मैंिे अपिी दोस्त को पहली

    बार देखा था, ये मेरी कोई पुरािी दोस्त िही ंथी। मैंिे तो उससे अब

    तक बात करिे की कोनिि भी िही ंकी थी, इसके पीछे एक ख़ास

    और बहुत ही मजेदार वजह थी की मुझे लड़नकयो ंसे बात करिे में

    बहुत डर लगता था। यहाँ तक की मुझे नकसी लड़की से बात करिे

    में बुखार भी आ जाता था। सुििे में िायद बहुत मजेदार और

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    अजीब लग रहा होगा लेनकि ये ही सच है। मैं अपिे पुरािे दोस्त

    राजू से ज़रा बात कर रहा था और वो अपिे आप में ही गुम-सुम

    बैठी थी। मेरी जब क्लास िुरू हुई तब मैं अपिे दोस्त के साथ ही

    बैठ कर मस्ती कर रहा था। लेनकि मेरे नज़न्दगी में एक ऐसा लड़का

    आया नजसिे मुझे हद से ज़्यादा परेिाि कर नदया था, और उस

    अजीब से इंसाि का िाम था आिु। ये अक्सर मुझे गुस्सा होिे पर

    मजबूर कर देता था। लेनकि मैं भी इसे हर बार टालता ही रहता

    था। लेनकि वह तो नदि पर नदि बद्तमीज़ सा हो गया था, हमेिा

    मुझसे बदतमीज़ी से बात करता था। धीरे-धीरे, जैसे-जैसे नदि बीत

    रहे थे मुझे पूरी क्लास में सबसे अचे्छ तरीके से समझ आ रहा था

    और नफर िवम्बर में एक लड़की िे मुझसे बात की, वो नसफक मुझसे

    काम की बात ही पूछती थी जैसे उसे कोई सवाल या उसे कुछ

    समझ में िही ंआता तो, वो मुझसे पूछ नलया करती थी, मैं भी उसे

    समझा नदया करता था। वह मेरी महज़ एक सहपानठका थी। मुझे

    लड़नकयो ं से बात करिे में डर लगता था इसनलए मैं उससे बात

    करिे में कतराता था, दूसरी वजह ये भी थी की उि नदिो ंवह आिु

    के साथ बैठा करती थी। और मैं अपिे दोस्त राजू के साथ। नफर

    एक नदि मैंिे गौर नकया की वो आिु के साथ िही ंबैठ रही है। मैंिे

    सोचा छोड़ो उसकी मज़ी, कही भी बैठे। पर एक नदि मैं और आिु

    क्लास में साथ बैठे थे नफर अचािक वो आयी और मेरे पास वाली

    सीट पर बैठ गयी, मैंिे सोचा कोई बात िही ंयार सहपानठका ही तो

    है। जब-जब उसे कोई भी नदक्कत आयी कम्प्पू्यटर में उसिे मुझसे

    पूछ नलया और मैंिे भी उसे बता नदया, और उस नदि आिु को

    थोड़ा जल्दी जािा था तो वो जल्दी चला गया। अब पूरी क्लास में, मैं

    और वो लड़की थी नफर मैंिे जल्दी-जल्दी अपिा काम ख़त्म नकया

    और वहाँ से निकलिे लगा तभी उसिे कहा की थोड़ी देर रुक

    जाओ मैं भी चल रही हँ, मैंिे भी थोड़ा धीमें स्वर में कहा "ठीक है",

    जैसे उसका काम ख़त्म हुआ हम वहाँ से चल नदए तो नफर रास्तें

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    में थोड़ी बहुत बातें हुई और नफर उसिे कहा की आप कौि सी

    क्लास में पढ़ते हो? मैंिे बोला की मैं तो अभी कॉलेज के पहले साल

    में हँ, नफर मैंिे पूछा की आप कौि सी क्लास में पढ़ते हो? उसिे

    कहा की मैंिे तो अभी बी.कॉम के नलए फॉमक भरे थे मेरा तो िाम भी

    आ गया था बहुत सरे कॉलेजो में लेनकि मेरे पसंद का कॉलेज िही ं

    नमला मुझे तो मैंिे िही ंनकया, अब मैं अगले साल नफर से कोनिि

    करँुगी और हो सकता है की अगले साल बी.ऍम.एस की प्रवेि

    परीक्षा दोबारा से दे दँू। मैंिे कहा अच्छी बात है, और वह अपिे

    घर की ओर जािे वाले सड़क तक आ चुकी थी उसिे कहा की मुझे

    इसी तरफ जािा है तो मैं थोड़ा चौकंा और पूछा की आप कहाँ रहती

    हो तो उसिे बताया की मैं यही पास में रहती हँ, चलो, अब मैं चलती

    हँ , नफर नमलेंगे। नफर वह एक नदि मेरे साथ वाली सीट पर आकर

    बैठ गयी नफर वही नदक्कतें लेनकि इस बार का टॉनपक दूसरा था

    नफर ऐसे ही हम लोग बैठ रहे थे नफर एक नदि जब हम क्लास से

    घर की ओर जा रहे थे तब उसिे कहा की मेरे नलए थोड़ी देर रुक

    जाओगे दरासल उसे नकसी िए कोसक के बारे कुछ पूछिा था। नफर

    हम वहाँ से चल नदए। हम वहाँ से जा ही रहे थे की उसिे मुझसे

    कहा की एक बात बोलू नकसी को बोलोगे तो िही,ं मैंिे कहा िही ं

    बोलंूगा बताओ। नफर उसिे कहा एक बार मैंिे आिु को कहा, की

    तुम अगर क्लास के िोट्स बिाते हो तो मुझे भी दे देिा मैं भी बिा

    लंुगी िोट्स। तो आिु िे कहा की ठीक है, तुम मुझे अपिा फोि

    िंबर दे दो मैं अपिे िोट्स भेज दंूगा। तो मैंिे अपिा फोि िंबर उसे

    दे नदया। उसिे मुझे िोट्स तो नदए िही ंबल्कल्क मुझे फोि करके

    परेिाि कर नदया और तो और जब मज़ी फ़ोि भी कर देता है।

    उसकी ये बात सुिकर मैंिे कहा की देखो कोई बात िही ंहै, ये तो

    िुरुआत से ही बद्तमीज़ है ,एक काम करो सबसे पहले इसका

    फोि िंबर ब्लॉक कर दो, मैंिे भी ब्लॉक कर नदया है, तो वो बोली,

    मैं कर चुकी हँ ब्लॉक। तो आपकी परेिािी ख़त्म हो चुकी है अब

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