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  • GS HINDI MAGAZINE MAY 2017

    Topic Page

    Polity 2-7

    Programme &Schemes 7-8

    Geography, Environment& Ecology 9-21

    Science and Technology 21-24

    Social issues 24-30

    International Relation& International

    events

    31-37

    National Issues 38-41

    Security issues 42-46

    Economy 47-61

    Editorials 61-76

    Miscellaneous 76-77

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  • Polity

    1. अगला बजट जनवरी में!

    कें द्र सरकार वित्त िर्ष की मौजूदा अिवि में बदलाि करने की वदशा में आगे बढ़ रही है।

    यानी िह वित्त िर्ष जनिरी में शुरू करके वदसंबर में समाप्त करना चाहती है। अभी सरकार

    का वित्त िर्ष अपै्रल में शुरू होकर माचष में समाप्त होता है।

    इसकी शुरुआत अगले साल आम बजट से होगी वजसे एक महीने पहले जनिरी में पेश

    वकया जा सकता है। यह वित्त िर्ष में बदलाि के वलए जमीन तैयार करेगा।

    कें द्र सरकार इस बात से अच्छी तरह िावकफ है वक पूिष मुख्य आवथषक सलाहकार शंकर

    एन आचायष की अगुआई िाली विशेर्ज्ञ सवमवत ने मौजूद वित्त िर्ष में बदलाि का समथषन

    नही ंवकया था। सवमवत के सुझािो ंपर अभी विचार वकया जा रहा है लेवकन सरकार बदलाि

    के पक्ष में है और इस मुदे्द पर विवभन्न लोगो ंकी राय लेनी शुरू कर दी है। प्रिानमंत्री नरेंद्र

    मोदी ने नीवत आयोग की बैठक में मुख्यमंवत्रयो ं से कहा था वक उन्हें वित्त िर्ष चक्र में

    बदलाि के सुझाि पर गौर करना चावहए और इसे लागू करने के वलए कें द्र को सुझाि देने

    चावहए।

    आदशष स्थथवत तभी बनेगी जब राज्य सरकारें भी जनिरी-वदसंबर वित्त िर्ष को अपनाएं।

    अगर कें द्र जनिरी-वदसंबर वित्त िर्ष को अपनाता है तो राज्यो ंको भी ऐसा ही करना होगा।

    सरकार के वित्त िर्ष के बदलाि से लोगो ंऔर कंपवनयो ंकी कर भुगतान की विवभन्न वतवथयो ं

    में भी बदलाि करना पडेगा।

    2. राष्ट्र पति ने बैंक ों के फों से हुए कजज (एनपीए) की समस्या से तनपटने के तलए

    अध्यादेश क मोंजूरी दी

    राष्ट्र पवत प्रणब मुखजी ने फंसे हुए कजष (एनपीए) की समस्या से वनपटने के वलए

    लाए गए अध्यादेश को मंजूरी दे दी है.

    इस अध्यादेश के जररए बैंवकंग रेगुलेशन एक्ट (1949) में संशोिन वकया गया है.

    इसके तहत भारतीय ररजिष बैंक (आरबीआई) को पहले से अविक अविकार वदए

    गए हैं.

    इस अध्यादेश के मुिातबक :-

    आरबीआई बैंको ंको विफॉल्टरो ंके स्खलाफ 2016 के ‘इनसॉल्वेंसी एंि बैंकरप्सी

    कोि’ (वकसी को वदिावलया घोवर्त करने से संबंवित वनयम)’ के तहत कारषिाई

    करने का वनदेश दे सकता है.

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  • इसके अलािा कें द्रीय बैंक को समय-समय पर बैंको ंको फंसे हुए कजष की समस्या

    से वनपटने के वलए वनदेश जारी करने का अविकार वदया गया है. इसके वलए

    आरबीआई एक या अविक सवमवत/प्राविकरणो ंका गठन कर सकता है.

    देश में बैको ंके वलए एनपीए की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है. वपछले साल

    24 सरकारी बैंको ंके एनपीए में 56.4 फीसदी बढ़ोतरी दजष की गई है.

    इस दौरान यह आंकडा 6.15 लाख करोड रुपये हो गया जो 2015 में 3.93 लाख

    करोड रुपये था. िही ं2016 में बैंको ंद्वारा वदए गए कुल कजष में एनपीए की

    वहसे्सदारी 7.16 से बढ़कर 11 फीसदी हो चुकी है.

    3. अदालि ों पर भी दबाव

    मंवत्रयो ंऔर अफसरो ंके दबाि में काम करने की खबरें तो देश में आम खबरो ंकी तरह

    सुनाई पडती रहती हैं। लेवकन अब जजो ंपर दबाि बनाने की खबरें भी आम होने लगी हैं।

    दबाि भी छोटी अदालतो ंके जजो ंपर नही ंबस्ि हाईकोटष और सुप्रीम कोटष के न्यायािीशो ं

    पर भी दबाि िाले जाने की बात सामने आ रही हैं।

    Context (सन्दभज )

    पंजाब-हररयाणा हाईकोटष के एक जज ने मुरथल गैंगरेप मामले में उन पर दबाि िाले जाने

    की बात कही है। मामला अवत गंभीर है क्ोवंक गैंगरेप से जुडा है। हररयाणा सरकार ने

    मामले में कारषिाई का आश्वासन वदया है पर बात वसफष कारषिाई की नही ंहै।

    प्रश्न तजनका जवाब अतनवार्ज है

    आस्खर, िे कौन हैं जो जजो ंसे अपनी मजी मुतावबक फैसला वलखिाना चाहते हैं? क्ा िे

    राजनीवत से जुडे हैं या कायषपावलका से? जजो ंपर दबाि बनाने िालो ंपर कारषिाई के साथ

    उनके नाम भी सािषजवनक होने चावहए। आज के माहौल में सरकारो ंपर आमजन का

    भरोसा घटता जा रहा है।

    वकसी पर भरोसा रह गया है तो िे हैं अदालतें। अदालतो ंपर से भी भरोसा उठ गया तो इस

    देश का क्ा हाल होगा, वसफष अनुमान ही लगाया जा सकता है। यह वकसी से वछपा नही ं

    वक पुवलस-प्रशासन आज पूरी तरह से राजनेताओ ंके हाथो ंकी कठपुतली बन चुके हैं।

    राजनेता अपने इशारे पर प्रशासन को अपने वहसाब से चलाते हैं। नेता-अफसरो ंके गठजोड

    ने देश की नीिं को खोखला कर वदया है। देश ने बीते सालो ंमें वजतने घोटाले देखे हैं, सब

    में राजनेता और अफसरो ंकी वमलीभगत ही सामने आई है।

    बोफोसष, 2जी, कोल आिंटन, आदशष सोसाइटी और कॉमनिेल्थ खेलो ंसे लेकर तमाम छोटे-

    बडे घोटाले वमल-बांटकर खाने की कहानी ही बयां करते नजर आए हैं। इन घोटालो ंकी

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  • तह तक जाकर दोवर्यो ंको सजा वदलाने का काम यवद वकसी ने ईमानदारी से वकया है तो

    िे अदालतें ही हैं।

    Need of hour is ?

    ऐसे में हररयाणा से लेकर केन्द्र सरकार की वजमे्मदारी बनती है वक िे अदालतो ंकी

    वनष्पक्षता बनाये रखने के हरसंभि उपाय करें । देश में लोकतंत्र तभी मजबूत रहेगा जब

    कानून को वबना भेदभाि काम करने की आजादी वमलेगी। सरकारो ंके साथ राजनीवतक

    दलो ंको भी अदालतो ंकी आजादी बनाए रखने में सहयोग करना चावहए तावक संिैिावनक

    ढांचे पर आंच न आने पाए।

    4. िीन िलाक इस्लाम का तहस्सा है र्ा नही ों

    मुस्िमो ंमें प्रचवलत तीन तलाक और वनकाह हलाला की संिैिावनक िैिता को चुनौती

    देने िाली यावचकाओ ंपर सुप्रीम कोटष में ऐवतहावसक सुनिाई शुरू हो गई है। कोटष ने

    कहा वक पहले िह तय करेगा वक यह इिाम का मौवलक वहस्सा है या नही?ं

    पांच जजो ंकी संवििान पीठ ने साफ कर वदया वक बहुवििाह पर वफलहाल विचार

    नही ंवकया जाएगा, क्ोवंक यह तीन तलाक से जुडा मुद्दा नही ंहै।

    सुप्रीम कोटष ने कहा, ‘हम विचार करें गे वक तीन तलाक इिाम का अवभन्न वहस्सा

    है वक नही?ं और यवद है, तो क्ा इसे मौवलक अविकार के तहत लागू कराया जा

    सकता है?’ कोटष ने यह भी कहा वक यवद िह इस वनष्कर्ष पर पहंुचता है वक तीन

    तलाक िमष का मौवलक वहस्सा है, तो िह उसकी संिैिावनक िैिता के सिाल में

    नही ंजाएगा।

    यावचकाकताषओ ंने कहा वक पावकस्तान, बांग्लादेश और अफगावनस्तान सवहत

    कई मुस्िम देशो ंमें एक बार में तीन तलाक खत्म हो चुका है। भारत िमषवनरपेक्ष

    देश है। यहां भी खत्म होना चावहए। यह इिाम का अवभन्न वहस्सा नही ंहै।

    इसवलए इसे िावमषक आजादी के तहत संरक्षण नही ंवमल सकता

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  • 5. साइबर नही ों बुतनर्ादी सुधार की दरकार न्यार्पातलका क

    खबरो ंमें

    देश की सबसे बडी अदालत ग्रीष्मकालीन अिकाश के बाद खुलेगी तो िह कागज रवहत

    हो चुकी होगी। यह घोर्णा स्वयं मुख्य न्यायािीश जे एस खेहड ने हाल ही में की। िह नए

    सूचना तंत्र का उद्घाटन कर रहे थे। उन्होनें यह भी कहा वक सरकार ने िर्ष 2016-17 में

    ई -कोटष वमशन के वलए 2,130 करोड रुपये मंजूर वकए थे लेवकन वदसंबर तक महज 88

    करोड रुपये खचष हुए। जावहर है इस के्षत्र में खचष करने के वलए बहुत सारी िनरावश

    उपलब्ध है।

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  • अधीनस्थ न्यार्ालर् ों की स्स्थति

    अिीनथथ न्यायालयो ंकी वदक्कत को तो मीविया भी सामने लाता रहा है और यहां

    तक वक सिोच्च न्यायालय के वनणषयो ंमें भी िह झलकता है। गत िर्ष प्रिानमंत्री के

    समक्ष अिीनथथ न्यायालयो ंकी स्थथवत का ब्योरा देते हुए मुख्य न्यायािीश के आंसू

    वनकल पडे थे। गत िर्ष अकू्टबर में अवििक्ताओ ंने संसद भिन से कुछ ही दूरी पर

    स्थथत ऋण िसूली पंचाट में जाना बंद कर वदया था क्ोवंक िहां वबजली और पानी

    की व्यिथथा तक नही ंथी। सरकार उसका वकराया नही ंचुका रही थी।

    हाल ही मे बंबई उच्च न्यायालय ने 220 पन्नो ंका एक फैसला वलखा वजसमें राज्य

    की विवभन्न अदालतो ंऔर पंचाटो ंकी हालत का वजक्र था। उसने इन समस्याओ ंको

    हल करने के वलए विवभन्न उपायो ंकी सूची तैयार कराई। मामले की सुनिाई अदालत

    ने स्वत: संज्ञान लेकर शुरू की थी। फैसले की शुरुआत में ही यह वटप्पणी की गई

    थी वक राज्य के कमोबेश सभी न्यायालय और पंचाट मूलभूत बुवनयादी ढांचे तक के

    अभाि में काम कर रहे हैं। इसके बाद उसने कुछ अदालतो,ं पंचाटो ंऔर उपभोक्ता

    अदालतो ं से हताश करने िाले ब्योरे पेश वकए। अगर महाराष्ट्ï््र की अदालतें

    इतनी हताश करने िाली स्थथवत में हैं, अन्य थथानो ंपर उनकी समकक्ष अदालतो ंकी

    हालत की कल्पना ही की जा सकती है।

    उच्च न्यायालय ने 30 वनदेश जारी वकए। इनका संबंि पेय जल, पयाषप्त फनीचर और

    कंपू्यटर, िावदयो ंके वलए कुवसषयां, वलफ्ट की मरम्मत (पुणे में लंबे समय से वलफ्ट

    खराब थी)ं तथा इमारतो ंके रखरखाि के वलए फंि जारी करने से था। ठाणे और

    मझगांि में कुछ पुरानी इमारतें िर्ों पहले ही इसे्तमाल की दृवष्ट्ï से नाकाम घोवर्त

    की जा चुकी थी ंवजन्हें खाली करा वदया जाना चावहए था। अगर िहां कोई दुभाषग्यपूणष

    घटना नही ंघटी तो यह पूरी तरह वकस्मत की बात थी। स्वच्छ भारत अवभयान का

    उले्लख करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा, 'महाराष्ट्ï््र के विवभन्न अदालती पररसरो ं

    में शौचालयो ंऔर स्नानागारो ंसे बदबू आना आम बात है। इतना ही नही ंअदालत

    पररसर तथा कक्षो ंके भीतर भी सही ढंग से साफ-सफाई नही ंकी जाती है।'

    सिोच्च न्यायालय ने गत िर्ष एक अध्ययन वकया था जो उच्च न्यायालय के पयषिेक्षण

    के अनुरूप ही वनकलता है। उसने यह भी कहा वक भौगोवलक औसत के मुतावबक

    देखा जाए तो 157 िगष वकलोमीटर इलाके में एक न्यायािीश की उपलब्धता है,

    हालांवक पुवलस अविकारी हर 61 िगष वकमी के दायरे में उपलब्ध हैं। मौजूदा

    अदालती कक्षो ं का बुवनयादी ढांचा ऐसा है वक िहां करीब 15,540 न्यावयक

    अविकारी बैठ सकते हैं जबवक अस्खल भारतीय मंजूरी 20,558 अविकाररयो ंकी है।

    ररपोटष से यह बात साफ होती है वक कमजोर बुवनयादी ढांचा न्यायपावलका को

    प्रभावित करता है।

    क्या तवत्तीर् सहार्िा पर्ाजप्त

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  • िर्ष 2017-18 के कें द्रीय बजट में भी न्यायपावलका के प्रवत पक्षपात बरकरार रहा। कुल

    बजट का महज 0.2 फीसदी ही इसके वलए जारी वकया गया। बजट बनाने िालो ंने न्यावयक

    प्रशासन के वलए 1,744 करोड रुपये का प्राििान वकया जबवक अकेले एयर इंविया को

    1,800 करोड रुपये वदए गए थे। न्याय विभाग में ढेर सारे प्रमुख थे मसलन राष्ट्ï््रीय न्याय

    आपूवतष एिं विविक सुिार वमशन, ई-कोटष का दूसरा चरण, देश में न्याय तक पहंुच मजबूत

    करना, इन सबको वमलाकर 432 करोड रुपये आिंवटत वकए गए। यह वफल्म बाहुबली के

    कुल बजट से भी कम रावश थी। जावहर सी बात है वक कें द्र और राज्य के बजट वनमाषता भी

    अदालती इमारतो ंमें मची गंदगी के वलए वजमे्मदार हैं।

    तनष्कर्ज

    जावहर सी बात है वक वजन लोगो ंका पाला वनचले स्तर पर काम करने िाली अदालतो ंसे

    पडता है िे सिोच्च न्यायालय में विवजटल युग या वफर कहें कृवत्रम बुद्वघमता की

    संभािनाओ ंको लेकर बहुत उत्सावहत नही ंहैं। उनके मन में िही पुरानी और वनरंतर चली

    आ रही िारणा बनी रहेगी वक वक अदालतें भले ही सबके वलए खुली हैं लेवकन तकनीकी

    उन्नवत तक िही पहंुच पाएगा वजसकी जेब ज्यादा भारी होगी। जावहर सी बात है अदालती

    के्षत्र में सुिार की शुरुआत ढांचागत और भौवतक स्थथवत से होनी चावहए, न वक साइबर के्षत्र

    में।

    Programme &Schemes

    1. स्वच्छ सवेक्षण - 2017 : इोंदौर और भ पाल सबसे साफ

    पूरे देश में मध्य प्रदेश के इंदौर ने सबसे स्वच्छ शहर होने का दजाष हावसल वकया है.

    इसके बाद भोपाल सबसे साफ-सुथरे शहरो ंमें दूसरे पायदान पर है

    शहरी विकास मंत्रालय के द्वारा वकए गए स्वच्छ सिेक्षण- 2017 में यह बात सामने

    आई है. यह सिे देश के 434 शहरो ंमें करिाया गया था वजसमें, करीब 18 लाख

    लोगो ंने वहस्सा वलया था| इन शहरो ंमें कुल शहरी आबादी का 60 फीसदी वहस्सा

    रहता है.

    Detail

    सिे के मुतावबक देश में सबसे स्वच्छ शहरो ंमें विशाखापट्टनम (आंध्र प्रदेश), सूरत

    (गुजरात) और मैसूर (कनाषटक) शीर्ष पांच में शावमल हैं.

    इसके अलािा वतरुवचरापल्ली (तवमलनािु), वदल्ली, निी मंुबई (महाराष्ट्र ), वतरुपवत

    (आंध्र प्रदेश) और िडोदरा (गुजरात) ने भी सूची में अपनी जगह बनाई है. दूसरी

    ओर, उत्तर प्रदेश स्थथत गोिंा को सबसे गंदा शहर बताया गया है. इसके बाद

    महाराष्ट्र का भुसािल है.

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  • स्वच्छता के मामले में सुिार की स्थथवत राज्यिार देखें तो मध्य प्रदेश अन्य राज्यो ंकी

    तुलना में अव्वल है.

    सूबे के 23 शहर शीर्ष 100 में शावमल हैं.

    इसके बाद गुजरात के 21 शहरो ंने इसमें अपना थथान बनाया है.

    2. स्वच्छ भारि अतभर्ान के िहि तनतमजि 60 फीसदी शौचालर् ों पानी की पर्ाजप्त

    आपूतिज के तबना बेकार

    स्वच्छ भारत अवभयान के तहत बनाये गये 60 फीसदी शौचालय पानी की पयाषप्त

    आपूवतष न होने की िजह से इसे्तमाल के लायक नही ंहैं

    साथ ही गांिो ंमें अभी भी 55.4 फीसदी लोग खुले में शौच करने के वलए मजबूर हैं

    शहरो ंमें ऐसे लोगो ंकी संख्या 7.5 फीसदी है. ये बातें नेशनल सैंपल सिे ऑवफस

    (एनएसएसओ) द्वारा वकए गए सिे में सामने आई हैं.

    इस सिे के नतीजे अकू्टबर, 2019 तक देश को खुले में शौच करने से मुक्त करने

    के महत्वाकांक्षी लक्ष्य पर सिावलया वनशान लगाते हैं.

    देश में साफ-सफाई संबंिी बुवनयादी ढांचे में सुिार तो हुआ है, लेवकन इस वदशा में

    अभी काफी कुछ वकया जाना बाकी है. मोदी सरकार के आने के बाद से सस्ििी

    की मदद से पूरे देश में करीब 3.5 करोड नए शौचालय बने हैं.

    3. ‘Make in India’ की जगह अब ‘Buy in India’ क िेजी से बढावा देने पर

    सरकार का ज र

    सरकार ‘मेक इन इंविया’ की जगह अब ‘बाय इन इंविया’ को तेजी से बढ़ािा देते हुए वदख

    रही है.

    सरकार द्वारा घरेलू खरीद नीवत को प्राथवमकता देने के वलए एक व्यापक नीवत पर

    काम वकया जा रहा है.

    प्रिानमंत्री कायाषलय (पीएमओ) ने हाल ही में प्रस्तावित नीवत की रूपरेखा पर बैठक

    की थी. माना जा रहा है वक सरकार इस नीवत को जल्द ही ला सकती है.

    ‘बाय इन इंविया’ नीवत पर अथषशास्ियो ंका कहना है वक इसमें ऐसे के्षत्रो ंको

    शावमल वकया जा सकता है, वजनमें सरकार सबसे बडी खरीदार है जैसेवक

    इंजीवनयररंग, मशीनरी और कागज आवद. बताया जाता है वक नई नीवत में ‘स्वदेशी’

    का दायरा ज्यादा व्यापक होगा. हालांवक इस मामले के जानकारो ंमें से कुछ का

    मानना है वक घरेलू खरीद को तरजीह देने पर हमेशा से ही वििाद होता रहा है.

    साथ ही इसे विश्व व्यापार संगठन में भी चुनौती दी जा सकती है.

    भारत ऐसे समय में यह कदम उठा रहा है जब अमेररका और ऑस्ट्र ेवलया जैसे

    विकवसत देशो ंमें आवथषक राष्ट्र िाद जोर पकड रहा है.

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  • Geography, Environment& Ecology

    1. परोंपरागि िरीक ों से सूखे की समस्या क माि देिे ल ग

    Drought in Country

    अभी देश से मानसून बहुत दूर है और भारत का बडा वहस्सा सूखे, पानी की कमी ि पलायन

    से जूझ रहा है। बंुदेलखंि के तो सैकडो ंगांि िीरान होने शुरू भी हो गए हैं।

    एक सरकारी आंकडे के मुतावबक, देश के लगभग सभी वहस्सो ंमें बडे जल संचयन

    थथलो ं(जलाशयो)ं में वपछले साल की तुलना में कम पानी बचा है।

    यह सिाल हमारे देश में लगभग हर तीसरे साल खडा हो जाता है वक ‘औसत से

    कम’ पानी बरसा, तो तस्वीर क्ा होगी? देश के 13 राज्यो ंके 135 वजलो ंकी कोई

    दो करोड हेके्टयर कृवर् भूवम हर दस साल में चार बार पानी के वलए त्रावह-त्रावह

    करती है।

    भारत का के्षत्रफल दुवनया की कुल जमीन या िरातल का 2.45 प्रवतशत है।

    दुवनया के कुल संसािनो ंमें से चार फीसदी हमारे पास हैं और जनसंख्या में हमारी

    भागीदारी 17.2 प्रवतशत है।

    हमें हर िर्ष बाररश से कुल 4,000 अरब घन मीटर (बीसीएम) पानी प्राप्त होता है,

    जबवक उपयोग लायक भूजल 1,869 अरब घन मीटर है। इसमें से महज 1,122

    अरब घन मीटर पानी ही काम आता है।

    जावहर है, बाररश का वजतना हल्ला होता है, उतना उसका असर पडना नही ंचावहए।

    कम बाररश में भी उग आने िाले मोटे अनाज जैसे ज्वार, बाजरा, कुटकी आवद की खेती

    और इसे्तमाल सालो-ंसाल कम हुए हैं, िही ंज्यादा पानी मांगने िाले सोयाबीन ि अन्य

    नगदी फसलो ंने खेतो ंमें अपना थथान मजबूती से बढ़ाया है। इसके चलते देश में बाररश

    पर वनभषर खेती बढ़ी है।

    Monsoon & Indian Economy

    हमारी लगभग तीन-चौथाई खेती बाररश के भरोसे है। वजस साल बादल कम बरसते

    हैं, आम आदमी के जीिन का पवहया जैसे पटरी से नीचे उतर जाता है।

    और एक बार गाडी नीचे उतरी, तो उसे अपनी पुरानी गवत पाने में कई-कई साल

    लग जाते हैं। मौसम विज्ञान के मुतावबक, वकसी इलाके की औसत बाररश से यवद

    19 फीसदी से कम पानी बरसता है, तो इसे ‘अनािृवष्ट्’ कहते हैं। मगर जब बाररश

    इतनी कम हो वक उसकी माप औसत बाररश से 19 फीसदी से भी नीचे रह जाए, तो

    इसको ‘सूखे’ के हालात कहते हैं।

    Drought and Problems

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  • सूखे के कारण जमीन के कडे होने या बंजर होने, खेती में वसंचाई की कमी, रोजगार

    घटने ि पलायन, मिेवशयो ंके वलए चारे या पानी की कमी जैसे संकट उभरते हैं।

    िैसे भारत में औसतन 110 सेंटीमीटर बाररश होती है, जो दुवनया के अविकांश देशो ं

    से बहुत ज्यादा है। यह बात दीगर है वक हम हमारे यहां बरसने िाले कुल पानी का

    महज 15 प्रवतशत ही संवचत कर पाते हैं।

    बाकी पानी नावलयो,ं नवदयो ंसे होते हुए समुद्र से जाकर वमल जाता है और बेकार

    हो जाता है।

    How people are adapting : Case study

    गुजरात के जूनागढ़, भािनगर, अमेरली और राजकोट के 100 गांिो ं ने पानी की

    आत्मवनभषरता का गुर खुद ही सीखा। विवछयािाडा गांि के लोगो ंने िेढ़ लाख रुपये और

    कुछ वदनो ंकी मेहनत के साथ 12 रोक बांि बनाए और एक ही बाररश में 300 एकड जमीन

    सीचंने के वलए पयाषप्त पानी जुटा वलया। इतने में एक नलकूप भी नही ंलगता। ऐसे ही प्रयोग

    मध्य प्रदेश में झाबुआ ि देिास में भी हुए। तलाशने चलें, तो कनाषटक से लेकर असम तक

    और वबहार से लेकर बस्तर तक ऐसे हजारो ंहजार सफल प्रयोग सामने आ जाते हैं, वजनमें

    थथानीय स्तर पर लोगो ंने सूखे को मात दी।

    खेती या बागान की घडा प्रणाली हमारी परंपरा का िह पारसमवण है, जो कम बाररश में भी

    सोना उगा सकती है। इसमें जमीन में गहराई में वमट्टी का घडा दबाना होता है। उसके

    आस-पास कंपोस्ट्, नीम की खाद आवद िाल दें , तो बाग में खाद ि रासायवनक दिाओ ंका

    खचष बच जाता है। घडे का मंुह खुला छोि देते हैं ि उसमें पानी भर देते हैं। इस तरह एक

    घडे के पानी से एक महीने तक पांच पौिो ंको सहजता से नमी वमलती है। जबवक नहर या

    टू्यब िेल से इतने के वलए सौ लीटर से कम पानी नही ंलगेगा। ऐसी ही कई पारंपररक

    प्रणावलयां हमारे लोक-जीिन में उपलब्ध हैं और िे सभी कम पानी में शानदार जीिन के

    सूत्र हैं।

    कम पानी के साथ बेहतर समाज का विकास कतई कवठन नही ंहै, बस एक तो हर साल,

    हर महीने इस बात के वलए तैयारी रखनी होगी वक पानी की कमी है। दूसरा, ग्रामीण अंचलो ं

    की अल्प िर्ाष से जुडी परेशावनयो ंके वनराकरण के वलए सूखे का इंतजार करने की बजाय

    इसे वनयवमत कायष मानना होगा।

    2. आकज तटक में ह रहे बदलाव के निीजे

    #Editorial_Economic Times

    In news:

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  • आकष वटक (उत्तरी धु्रि के आसपास स्थथत के्षत्र) की बफष तेजी से वपघल रही है. वपछले तीन

    दशक के दौरान इस इलाके की समुद्री बफष में आिे से भी ज्यादा की कमी आ गई है.

    एक हावलया ररपोटष का अनुमान है वक इस तरह यह आकष वटक 2040 तक

    बफष विहीन हो जाएगा.

    पहले 2070 तक ऐसा होने की बात कही गई थी.

    भारत सवहत सभी देशो ंको इसके नतीजो ंयानी बहुत ज्यादा बाररश या सूखे और

    समुद्र के उठते स्तर जैसी समस्याओ ंसे वनपटने के वलए तैयारी शुरू करनी चावहए.

    साथ ही, इन देशो ंको उन प्रवतबद्धताओ ंके प्रवत मजबूती भी वदखानी चावहए वजसके

    तहत उन्हें अपनी अथषव्यिथथा को इस तरह से बढ़ाने की जरूरत है वक उनका

    काबषन का उत्सजषन कम हो.

    Effect of this:

    आकष वटक में वपघलती बफष का सूखे, बाढ़ और लू की बढ़ती घटनाओ ंसे सीिा संबंि

    है. इस इलाके में बढ़ती गरमी समुद्री िाराओ ंऔर हिाओ ंपर असर िालती है

    वजसके प्रभाि पूरी दुवनया के मौसम पर पडते हैं और इसमें मानसून भी शावमल है.

    इससे न वसफष फसलो ंके पैटनष और खाद्य उत्पादन पर असर पडता है बस्ि पानी

    की कमी की समस्या और गंभीर होती है

    समुद्री बफष के वपघलने की रफ्तार तेज होने का मतलब यह भी है वक समुद्र का

    स्तर बढे़गा और मंुबई जैसे तटीय शहरो ंके वलए खतरा पैदा होगा. खतरा यह भी है

    वक बफष की तहो ंमें हजारो ंसाल से सुसुप्त अिथथा में पडे हुए िायरस और

    बैक्टीररया अब वफर सवक्रय होकर स्वास्थ्य व्यिथथा के वलए नई चुनौवतयां खडी

    कर सकते हैं.

    Development at what cost?

    आकष वटक की बफष का वपघलना अभी तक िैज्ञावनको ंऔर पयाषिरणविदो ंके वलए ही वचंता

    का विर्य रहा है. अब बाकी समुदायो ंको भी इससे वचंता होनी चावहए. विकास जरूरी है

    लेवकन इसे इस तरह अंजाम देना होगा वक िह काबषन िाइ ऑक्साइि कम वनकले जो इस

    समय िरती को गमष कर रही है.

    पेररस में हुए समझौते में जलिायु पररितषन पर जो प्रवतबद्धताएं जताई गई हैं िे िैवश्वक

    तापमान में बढ़ोतरी को दो विग्री से नीचे रखने के वलए नाकाफी हैं. देशो,ं शहरो ंऔर अथष

    जगत, सभी को अपनी कोवशशो ंका दायरा बढ़ाना होगा. अब पीछे हटने का समय नही ंहै.

    इससे ग्लोबल िावमिंग की समस्या से वनपटने के वलए वकए जा रहे उपायो ंकी प्रगवत िीमी

    होगी. अब कोवशशें बढ़ाई नही ंगईं तो नुकसान बहुत बडे हैं और इनकी मार सबसे ज्यादा

    उन पर पडनी है जो सबसे ज्यादा गरीब हैं

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  • 3. कुदरि के द हन से खिरे में जीवन

    #Editorial_Jansatta

    Is Human life on earth in danger?

    प्रवसद्ध िैज्ञावनक स्ट्ीफन हावकंग ने कहा है वक ‘जलिायु पररितषन, बढ़ती आबादी, उिा

    वपंिो ंके टकराि और परमाणविक आतंक को देखते हुए खुद को बचाए रखने के वलए

    मनुष्य को दूसरी िरती खोज लेनी चावहए। सौ साल बाद पृथ्वी पर मानि का बचे रहना

    मुस्िल होगा।’ िरती पर जीिन के अंत की शुरुआत हो चुकी है। बदलते मौसम और

    जलिायु के कारण स्तनिाररयो ंकी सतहत्तर प्रजावतयां, एक सौ चालीस तरह के पक्षी और

    चौबीस तरह के उभयचर प्राणी लुप्त हो चुके हैं। हर साल जानिरो ंकी पचास प्रजावतयां

    खत्म होने के कगार पर पहंुच जाती हैं। अमेररका के तीन नामी विश्वविद्यालयो ंके शोि के

    अनुसार िरती पर जीिन अब अंत की ओर बढ़ रहा है। सबसे पहले खत्म होने िाली प्रजावत

    इंसानो ंकी हो सकती है। इसके अलािा रीढ़ की हड्डी िाले जानिरो ंके लुप्त होने की दर

    सामान्य से एक सौ चौदह गुना तेज है। अब हम लुप्त होने के छठे बडे दौर में प्रिेश कर

    रहे हैं। बडे पैमाने पर प्रजावतयो ंके लुप्त होने की आस्खरी ऐसी घटना साढे़ छह करोड साल

    पहले घटी थी। तब िायनासोर िरती से लुप्त हो गए थे। पर अब खतरा इंसानो ंके वसर पर

    मंिरा रहा है। लोग बदलते मौसम के कहर से परेशान हैं। ठंिे थथान और ठंिे हो रहे हैं,

    जबवक गरम जगहें ज्यादा गरम हो रही हैं। तूफान, बाढ़, सूखा और भूकम्प की घटनाएं

    अब विकराल रूप में बार-बार कहर बरपा रही हैं।

    कुदरत का अंिािंुि दोहन अब हमारे वलए काल बनता जा रहा है। आज मनुष्य के

    वलए शुद्ध िायु, जल और भोजन वमलना मुस्िल हो गया है, जो उसके स्वथथ और

    दीघष जीिन के वलए सबसे जरूरी है।

    िैज्ञावनक और तकनीकी विकास की आिुवनक नीवत ने आज जल, थल और नभ-

    तीनो ंको विर्ाक्त कर वदया है। इससे मानि जावत सवहत कई जीिो ंके जीिन और

    अस्स्तत्व के वलए खतरा पैदा हो गया है।

    वपछले चालीस-पचास िर्ों में इस िरती के कई जीि-जंतु विलुप्त हो गए हैं और कई

    विलुस्प्त के कगार पर हैं। हर साल साठ लाख हेके्टयर खेती योग्य भूवम मरुभूवम में

    बदल रही है। ऐसी जमीन का के्षत्रफल तीस साल में लगभग सऊदी अरब के

    के्षत्रफल के बराबर होता है। हर साल एक सौ दस लाख से अविक हेके्टयर िन

    उजाड वदए जाते हैं, जो तीस साल में भारत जैसे देश के के्षत्रफल के बराबर हो

    सकता है। अविकतर जमीन जहां पहले िन उगते थे ऐसी खराब कृवर् भूवम में बदल

    जाती है, जो खेवतहरो ंको भी पयाषप्त भोजन वदलाने में असमथष है।

    What research says:

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  • आिुवनक पाररस्थथवतकी अनुसंिान से ज्ञात होता है वक जैि मंिल पर मनुष्य के अनिरत,

    एकतरफा और काफी हद तक अवनयंवत्रत प्रभाि से हमारी सभ्यता एक ऐसी सभ्यता में

    तब्दील हो सकती है, जो मरुभूवमयो ंको मरुद्यानो ंऔर मरुद्यानो ंको रेवगस्तानो ंमें बदल

    देगी। इससे पृथ्वी पर सारे जीिन के विनाश का खतरा पैदा हो जाएगा। अब स्पष्ट् है वक

    मनुष्य द्वारा भौवतक चीजो ंका वनयोवजत उत्पादन जैि मंिल को नुकसान पहंुचाने िाले

    प्रभािो ंका अवनयोवजत ‘उत्पादन’ भी करता है और यह इतने बडे पैमाने पर होता है वक

    पृथ्वी पर मनुष्य सवहत सारे जीिन को नष्ट् करने का खतरा पैदा कर देता है। प्रमुख

    जैविकविद जानिरो ंऔर पौिो ंकी जावतयो ंके इतने बडे पैमाने पर लुप्त होने का पूिाषनुमान

    लगाते हैं, जो प्रकृवत और मनुष्य की वक्रया के फलस्वरूप वपछले करोडो ंिर्ों में हुए उनके

    विलुप्तीकरण से कही ंअविक बडा होगा।

    यह बात भी वसद्धांतत: सच है वक अंतत: सारी जैविक प्रजावतयां विलुप्त होगंी। पर

    वपछली शताब्दी के उत्तरािष और इस शताब्दी के शुरुआती दशक में भूतपूिष िीरान

    के्षत्रो ंमें मनुष्य की बस्स्तयां बस जाने, जहरीले पदाथों के व्यापक उपयोग और प्रकृवत

    के वनमषम शोर्ण की िजह से जावतयो ंके विलुप्तीकरण की दर तेजी से बढ़ी है और

    जावतयो-ंप्रजावतयो ंके क्रम-विकास की दर के मुकाबले अविक हो गई है।

    वपछले दो हजार िर्ों में जो जावतयां विलुप्त हुइिं उनमें आिे से अविक 1900 के बाद

    हुई हैं। जैविकविदो ंकी मान्यता है वक वपछले साढे़ तीन सौ िर्ों में प्रवत दस िर्ष में

    प्रावणयो ंकी एक जावत या उपजावत नष्ट् हुई।

    प्रकृवत और प्राकृवतक सािनो ंके अंतरराष्ट्र ीय रक्षा संगठन ने अनुमान लगाया है वक

    अब औसतन हर िर्ष एक जावत या उपजावत लुप्त हो जाती है। इस समय पवक्षयो ं

    और जानिरो ंकी लगभग एक हजार जावतयो ंके लुप्त होने का खतरा है। पौिो ंकी

    वकसी एक जावत के लुप्त होने से कीटो,ं जानिरो ंया अन्य पौिो ंकी दस से तीस तक

    जावतयां विलुप्त हो सकती हैं। अगर मौजूदा प्रिृवत्त जारी रही तो उनकी बहुत बडी

    संख्या के जीवित बचे रहने की संभािना बहुत कम है। इसवलए अब प्रकृवत के साथ

    मनुष्य जावत की अंतवक्ष रया के तरीको ंको बदलना अवनिायष हो गया है।

    दरअसल, मनुष्य ने भौवतक उत्पादन के विकास से जैि मंिल के आंवगक ढांचे में एक

    विशेर् कृवत्रम अंग शावमल कर वदया है। उसके इस कायष का न वसफष समाज और उत्पादन

    के हमारे लक्ष्यो,ं बस्ि जैि मंिल की वक्रया के साथ भी समन्वय होना जरूरी है। इसके

    वलए हमें उद्योगो ं के विकास पर रोक नही ंलगानी है, बस्ि उनके विकास का ढंग

    सुवनयोवजत करना है। इस तथ्य पर भी ध्यान देना आिश्यक है वक क्ा िहां के उद्योग-िंिे

    हमारे पररिेश से सामंजस्य वबठा सकें गे? हमारे विकास कायषक्रम ऐसे होने चावहए, वजनसे

    अविक से अविक लोगो ंको लाभ पहंुचे।

    इसके वलए उद्योगो ंके विकास का ढंग सुवनयोवजत करना है। कचे्च माल के वलए प्राकृवतक

    संसािनो ंका िैज्ञावनक आिार पर दोहन वकया जाए, वजससे उस संपदा का ह्रास न हो।

    उद्योगो ंकी आिश्यक ऊजाष पूवतष के वलए इिंिनो ंके साथ गैर-परंपरागत ऊजाष-संसािनो ंका

    WhatsApp # 8800141518 Page 13 / 77http://gshindi.com

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  • भी समुवचत उपयोग वकया जाए, वजससे प्रदूर्ण नू्यनतम हो। विकास कायषक्रमो ंके संबंि

    में इस बात को ध्यान में रखना आिश्यक है वक प्रते्यक देश की अपनी स्थथवत, पररस्थथवत

    और पयाषिरण होता है। वकसी दूर देश की जलिायु और वमट्टी को थथानांतररत नही ंवकया

    जा सकता। इस तथ्य पर भी ध्यान देना आिश्यक है वक क्ा िहां के उद्योग-िंिे हमारे

    पररिेश से सामंजस्य वबठा सकें गे? हमारे विकास कायषक्रम ऐसे होने चावहए, वजनसे अविक

    से अविक लोगो ंको लाभ पहंुचे।

    िैज्ञावनक और तकनीकी प्रगवत ने मनुष्य की प्रकृवत पर वनयंत्रण का विशेर् अविकार दे

    वदया है। हम पिषतो ंको हटा सकते हैं, नवदयो ंके मागष बदल सकते हैं, नए सागरो ंका वनमाषण

    कर सकते हैं और विशाल रेवगस्तानो ंको उिषर मरुद्यानो ंमें पररणत कर सकते हैं। हम

    प्राकृवतक जगत में मौवलक पररितषन कर सकते हैं। हमारे उत्पादन और आवथषक, िैज्ञावनक

    और तकनीकी कायषकलाप अंतररक्ष तक विसृ्तत हो गए हैं। पर हम प्रकृवत पर अपने

    अंतहीन अवतक्रमण और बगैर सोचे-समझे उसमें बडे-बडे फेरबदल करके इस अविकार

    का अवििेकपूणष उपयोग नही ंकर सकते और हमें करना भी नही ंचावहए, क्ोवंक इसके

    हावनकारक नतीजे हो सकते हैं। हम उत्पादन कायों द्वारा जैि मंिल में हुए पररितषनो ंको

    कतई नजरअंदाज नही ंकर सकते। इसवलए जरूरी है वक हम जीिन प्रणाली के विवभन्न

    तत्त्ो ंपर अपने प्रभाि को साििानी से देखते रहें। मौवलक प्राकृवतक पयाषिरण को मनुष्य

    की आिश्यकता के अनुसार रूपांतररत करना और विनाशक प्राकृवतक शस्क्तयो ं जैसे

    भूकम्प, टाईफून, चक्रिात, बाढ़ और सूखा, वहमानी भिन, चंुबकीय और सौर आंवियां,

    रेवियो सवक्रयता, अंतररक्षीय विवकरणो ं के विरुद्ध संघर्ष करना अवनिायष है। पर ऐसे

    पररितषन केिल उन वनयमो ंके अनुसार वकए जा सकते हैं, वजनसे जैि मंिल एक अखंि

    और स्ववनयामक प्रणाली के रूप में काम करता और विकवसत होता रहे।

    4. गोंगा में लगाई गई डुबकी आपक बीमार कर सकिी है

    In news:

    गंगा को स्वच्छ बनाने के तमाम दािो ंऔर अवभयानो ंके बीच ताजा खबर यह है वक इस

    नदी का पानी अब हररद्वार में ही नहाने लायक तक नही ंरह गया है. यह जानकारी कें द्रीय

    प्रदूर्ण वनयंत्रण बोिष (सीपीसीबी) ने सूचना का अविकार कानून (आरटीआई) के तहत

    एक आिेदन के जिाब में दी है~ सीपीसीबी ने कहा है वक हररद्वार में गंगा का पानी लगभग

    सभी मानको ंपर विफल रहा है.

    Pollution in GANGA

    ररपोटष के मुतावबक सीपीसीबी ने उत्तराखंि में गंगोत्री से लेकर हररद्वार तक 11 जगहो ंसे

    नमूने लेकर उनकी जांच की थी. सीपीसीबी के एक िररष्ठ िैज्ञावनक आरएम भारद्वाज ने

    बताया वक इसमें पानी के तापमान, उसमें घुली ऑक्सीजन, जैविक ऑक्सीजन की मांग

    (बीओिी) और कोवलफॉमष (बैक्टीररया) की जांच शावमल थी.

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  • What rule says:

    सीपीसीबी वनयमो ंके मुतावबक अगर वकसी नदी में बीओिी का स्तर तीन वमलीग्राम प्रवत

    लीटर है तो उसका पानी नहाने के वलए सुरवक्षत है. लेवकन, हररद्वार में गंगा के पानी में यह

    स्तर 6.4 वमग्रा प्रवत लीटर पाया गया. इसी तरह कोवलफॉमष का स्तर प्रवत 100 वमलीलीटर

    में 1600 एमपीएन तक वमला जबवक स्वीकायष स्तर प्रवत 100 वमलीलीटर 500 एमपीएन है.

    इसी तरह पानी में घुली ऑक्सीजन का स्वीकायष स्तर पांच वमलीग्राम प्रवत लीटर है, लेवकन

    हररद्वार में यह चार वमलीग्राम से 10.8 वमलीग्राम प्रवतलीटर पाया गया.

    5. गोंगा की दशा

    #Editorial_Jansatta

    तीन दशक से ज्यादा िक्त से गंगा की सफाई के लगातार दािे वकए गए, योजनाएं बना कर

    उन पर काम करने की बात कही गई। लेवकन इतनी लंबी अिवि के दौरान सरकारीदािो ं

    की हकीकत यह है वक अब गंगा का पानी पीने लायक तो दूर, नहाने के लायक भी नही ं

    बचा है। सूचनाविकार के तहत मांगी गई जानकारी के जिाब में खुद सरकार ने यह माना

    है। सीपीसीबी यानी कें द्रीय प्रदूर्ण वनयंत्रण बोिष के मुतावबक गंगोत्री से हररद्वार के बीच

    करीब तीन सौ वकलोमीटर की गंगा में से ग्यारह थथानो ंसे नमूने जांच के वलए वलये गए थे,

    लेवकन ये सभी सुरक्षा मानको ंपर फेल रहे। ररपोटष के मुतावबक हररद्वार के करीब बीस

    गंगा घाटो ंपर हर रोज पचास हजार से एक लाख लोग नहाते हैं। यह बेिजह नही ंहै वक

    गंगा के पानी में बीओिी यानी बॉयोलॉवजकल आ ्क्सीजन विमांि और कोवलफॉमष यानी

    बैक्टीररया के अलािा दूसरे जहरीले पदाथों की मात्रा वनिाषररत मानको ंके मुकाबले काफी

    अविक है। 1985 में गंगा की सफाई के वलए शुरू की गई गंगा कायष योजना अब नमावम

    गंगे के रूप में सरकारी कायषक्रम का वहस्सा है। बीते तीस सालो ंके दौरान इस मद में बाईस

    हजार करोड से ज्यादा रुपए बहाए जा चुके हैं।

    नमावम गंगे जैसी योजना और लगातार सरकारी कायषक्रमो ंमें गंगा के माहात्म्य के उले्लख

    के बािजूद खुद सरकार यह मान रही है वक गंगा का पानी नहाने तक के लायक नही ंबचा,

    तो अब तक की किायदो ंको वकस नजररए से देखा जाएगा! कानपुर या दूसरे शहरो ंमें

    औद्योवगक इकाइयो ंऔर सीिर आवद की िजह से पूरी तरह प्रदूवर्त हो चुकी यह नदी

    अगर हररद्वार में भी इस हालत में चली गई है तो इसके वलए कौन वजमे्मिार है?

    पयाषिरणविदो ंने इस समस्या की ओर ध्यान वदलाने में कोई कसर नही ंछोडी है।

    इस बीच िीरे-िीरे हररद्वार में औद्योवगक इकाइयो ंकी शंखला खडी हो गई और यह पयषटन

    का कें द्र बन गया। लेवकन उसके बरक्स जलशोिन संयंत्रो ंऔर गंदे पानी की वनकासी की

    व्यिथथा करना जरूरी नही ंसमझा गया। पचास हजार से एक लाख लोग जहां रोज नहाने

    WhatsApp # 8800141518 Page 15 / 77http://gshindi.com

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  • पहंुचते हो,ं िहां उससे उपजी गंदगी और दूसरी समस्याओ ंके बारे में अंदाजा लगाया जा

    सकता है। हमारे देश में गंगा के प्रवत श्रद्धा-भाि तो अपार है, पर िास्ति में गंगा की वफक्र

    वकतनी है? एक ओर सुप्रीम कोटष गंगा के मसले पर कें द्र सरकार को फटकार लगा चुका

    है तो दूसरी ओर राष्ट्र ीय हररत न्यायाविकरण ने यहां तक कह चुका है वक इस मामले में

    सरकार का काम उसके नारो ंसे उलट रहा है। सिाल है वक वकसकी जिाबदेही बनती है?

    6. जलवारु् पररविजन की नई चुनौतिर्ाों

    #Editorial_Business Standard

    In news:

    अमेररका के िॉनल्ड टर ंप प्रशासन ने संकेत वदया है वक िह पेररस में 2015 में आयोवजत

    संयुक्त राष्ट्र जलिायु पररितषन समझौते में जताई गई प्रवतबद्घताओ ंसे पीछे हट सकता है।

    यह बात मायने रखती है क्ोवंक अमेररका िैवश्वक ग्रीन हाउस गैस उत्सजषन में 14 फीसदी

    का वजमे्मदार है। अमेररका का इस समझौते से पीछे हटना अन्य देशो ंको भी इसके वलए

    प्रोत्सावहत कर सकता है।

    Deviation from Paris and fallout:

    पेररस समझौते में उत्सजषन कटौती के वलए जताई गई प्रवतबद्घता से वकसी भी तरह का

    विचलन बहुत विनाशकारी सावबत हो सकता है। इस समझौते के मूल में यह बात है वक

    िैवश्वक औसत तापमान िृद्वघ को औद्योवगक युग के पूिष के स्तर से अविकतम दो फीसदी

    ज्यादा पर सीवमत रखा जाए। इस लक्ष्य पर वटके रहने की 66 फीसदी संभािना इस बात

    पर वनभषर करती है वक सन 2030 तक काबषन उत्सजषन को 42 गीगाटन पर सीवमत वकया

    जाए और सन 2075 के बाद उसे ऋणात्मक कर वदया जाए। ऐसा करके ही हम 1,000

    गीगाटन की उस सीमा में रह पाएंगे वजसका 80 फीसदी 2030 तक इसे्तमाल होना है।

    समझौते में वजस 1.5 विग्री सेस्ियस बढ़ोतरी की कामना की गई है िह बरकरार रहेगी

    और उम्मीद यही है वक हम एक दशक में उसे पार कर जाएं। पेररस समझौते के तहत जो

    प्रवतबद्घताएं जताई गईं िे 2030 तक की अिवि में इस लागत बचाने िाली राह में 12 से

    14 गीगाटन तक वपछड जाएंगी।

    How many committed to their target:

    इतना ही नही ंवफलहाल कुछ ही देश ऐसे हैं जो अपनी प्रवतबद्घताएं पूरी करने की राह पर

    अग्रसर हैं। यूएनईपी की उत्सजषन अंतराल संबंिी ररपोटष में कहा गया है वक जी 20 देशो ंमें

    से जो उत्सजषन के अविकांश वहसे्स के वलए वजमे्मदार हैं, केिल यूरोपीय संघ, भारत और

    चीन ही लक्ष्यो ंके अनुरूप चल रहे हैं। जबवक शेर् को इसके वलए नीवतगत कदमो ंकी

    आिश्यकता होगी। परेशान करने िाली बात यह है वक हाल के कुछ िैज्ञावनक कायष बताते

    हैं वक दो विग्री सेस्ियस की बढ़ोतरी का लक्ष्य अपने आप में बहुत ज्यादा है जो कई बडे

    जोस्खमो ंसे बचाि नही ंकर पाएगा। प्रवतवष्ठïत जलिायु िैज्ञावनक जेम्स हानसेन और उनके

    सहयोवगयो ंका कहना है वक औद्योवगक युग के पूिष के स्तर में दो विग्री सेस्ियस की यह

    WhatsApp # 8800141518 Page 16 / 77http://gshindi.com

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  • िृद्वघ आने िाले वदनो ंमें बहुत खतरनाक सावबत हो सकती है। हकीकत में उन्होनें अनुमान

    जताया वक िैवश्वक तापिृद्वघ समुद्र के ठंिे जल की सतह के नीचे गरम पानी को चपेट में

    ले लेगी और इससे बफष के वपघलने की गवत और तेज हो जाएगी। इससे समुद्र प्रभावित

    होगें और पूरी पृथ्वी इस घटना से बुरी तरह प्रभावित होगी।

    Evidences of Climate change:

    इस बात के तमाम प्रमाण हैं वक जलिायु पररितषन उम्मीद से कही ंतेज गवत से घवटत

    हो रहा है। फरिरी 2015 से फरिरी 2016 के बीच औसत काबषन िाइ ऑक्साइि

    घनत्व 3.76 पाटष प्रवत वमवलयन था। हिाई की माउना लोआ िेिशाला के मुतावबक

    यह एक साल में हुई सबसे अविक िृद्वघ थी। यह स्तर 400 पीपीएम से अविक है

    और अब इसमें वगरािट आने की संभािना नही ंनजर आती है। ऐसे में 2030 तक

    ही दो विग्री सेस्ियस के लक्ष्य तक पहंुच जाएंगे। अमेररका और विटेन के एक शोि

    के मुतावबक िर्ष 1998 से 2014 के बीच िैवश्वक तापमान में बढ़ोतरी में ठहराि की

    खबर गलत थी।

    अमेररकन मीवटअरलॉवजकल सोसाइटी ने िर्ष 2011 से 2014 के बीच जो बुलेवटन

    प्रकावशत वकए उनमें से आिी से अविक के मुतावबक मानि जवनत जलिायु

    पररितषन के वलए अवतरंवजत घटनाएं वजमे्मदार थी।ं बीते तीन दशक के दौरान

    आकष वटक में समुद्री बफष का दायरा आिा से अविक घटा है। आकष वटक 2070 के

    बजाय 2040 तक ही समुद्री बफष से रवहत हो जाएगा। भारतीय मौसम विभाग का

    कहना है वक भारत वपछली सदी की तुलना में औसतन 0.60 विग्री सेस्ियस गरम

    है। िर्ष 2015 तक देश के सबसे गरम 15 सालो ंमें से 13 िर्ष 2000 के बाद के थे।

    िही ं2016 सन 1901 के बाद सबसे गरम िर्ष था। गरम हिाओ ंकी घटनाएं और

    उनकी तीव्रता और आिृवत्त बढ़ती जा रही है। ऐसे में विश्व समुदाय के समक्ष चुनौती

    यह है वक एक ओर तो िह अमेररकी व्यिहार से वनपटे और दूसरी ओर पेररस

    समझौते से इतर भी जलिायु पररितषन से वनपटने की गवतविवियां तेज करे। टर ंप को

    लगता है वक बाजार में मोलभाि करने िालो ंकी तरह अगर िह पेररस समझौते से

    दूरी बनाएंगे तो लोग उनके पीछे आएंगे और ररयायत की पेशकश करें गे। ऐसा करने

    की जरूरत नही ं है। अगर अमेररका के साथ कोई ररयायत हुई तो यह पेररस

    प्रवतबद्घता को कमजोर करेगा।

    ऐसा नही ंहै वक टर ंप के वबना काम वबगड ही जाएगा। अमेररका वफर भी योगदान करेगा।

    कैवलफोवनषया जैसे प्रांत जलिायु पररितषन योजना में काफी आगे हैं और उन्होनें सै्वस्च्छक

    कायषयोजना बनाई है वजसके आिार पर िे अहम उत्सजषन कटौती करें गे। अमेररका में

    अहम तकनीक आिाररत कारोबारी निीकरणीय ऊजाष, वबजली चावलत िाहन और ऊजाष

    वकफायत के पक्ष में हैं। उन्होनें पहले ही पेररस समझौते में अमेररका के बने रहने को लेकर

    अपना समथषन जारी कर वदया है। अमेररकी पयाषिरण आंदोलन ने भी इसके वलए सख्त

    लॉबीइंग की। प्रशासवनक हलके में भी पेररस समझौते के समथषक हैं।

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  • यूरोपीय संघ के नेता और शी वचनवफंग ने अमेररका को चेतािनी दी है वक िह ऐसा न करे।

    भारत इस मसले पर खामोश रहा है और उसे अिश्य बोलना चावहए। इन नेताओ ंको

    अमेररकी प्रशासन से इतर अन्य हलको ंमें खुलकर जलिायु पररितषन की सकारात्मक

    पहलो ं को आगे बढ़ाना चावहए। कारोबारी समूहो,ं शोि संथथानो ं और पयाषिरण

    कायषकताषओ ंको पे्रररत करना चावहए वक िे अमेररका में अपने सावथयो ंसे बात करें।

    ऐसा करना कवठन भी है और सरल भी। कवठन इसवलए क्ोवंक जीिाश्म ईंिन िाले देश

    इसका विरोि करें गे और आसान इसवलए क्ोवंक इसके विकल्प बहुत तेजी से व्यािहाररक

    होते जा रहे हैं। इन्हें पंूजी भी वमल रही है और प्रवतभा भी। यूरोपीय संघ, चीन और भारत,

    तीनो ंदेश अपनी प्रवतबद्घताओ ंको सै्वस्च्छक रूप से बढ़ा सकते हैं। ऐसा करके िे नए

    चेतािनी संकेतो ंको लेकर बेहतर प्रवतवक्रया दे पाएंगे। जीिाश्म ईंिन उद्योग का अंत और

    नई निीकरणीय ऊजाष पर आिाररत अथषव्यिथथा के उदय के साथ पररिहन, शहरी

    विजाइन और भिनो ंआवद में बदलाि आएगा। हमें भी इवतहास की इस िारा के साथ बहना

    चावहए और अमेररकी राष्ट्र पवत िॉनल्ड टर ंप को पीछे छोड देना चावहए।

    7. जैव प्रौद्य तगकी तनर्ामक

    जेनेवटक इंजीवनयररंग आकलन सवमवत (जीईएसी) की ओर से जीन संिद््रवघत (जीएम)

    सरसो,ं िीएमएच-11 की िावणस्ज्यक उपज को मंजूरी वमलने के साथ ही भारत जीएम

    फसलें उगाने िाले 25 देशो ं में शुमार होने के करीब पहंुच गया है। हालांवक वदल्ली

    विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर जेनेवटक मैवनपुलेशन ऑफ क्रॉप प्ांट्स द्वारा विकवसत जीएम

    सरसो ंको वकसानो ंतक पहंुचाने के पहले कई बािाएं दूर करने की आिश्यकता है।

    Hurdles in implementation

    इनमें से एक है जीएम फसलो ं के विरोवियो ंकी तरफ से कडा विरोि। इसमें

    सत्तािारी भाजपा और उसके सहयोवगयो ंसे जुडा स्वदेशी जागरण मंच भी शावमल

    है। याद रस्खए वक जीएम विरोिी लॉबी के चलते ही 2010 में तत्कालीन पयाषिरण

    मंत्री जयराम रमेश को बीटी बैगन पर रोक लगानी पडी थी जबवक जीईएसी उसे

    मंजूरी दे चुकी थी।

    इसके अलािा सरकार को सिोच्च न्यायालय जाकर जेनेवटक बदलाि िाली फसलो ं

    की खेती पर लगी रोक हटिानी पडेगी।

    इतना ही नही ंकुछ राज्यो ंमें जहां जीएम फसलो ंके परीक्षण तक को मंजूरी नही ंहै,

    उनके मन में इन फसलो ंको लेकर जो पूिषग्रह हैं उन्हें दूर करना होगा।

    100 से अविक जीएम फसलो ंका भविष्य दांि पर लगा है। इनमें मुख्य अनाज, फल,

    सस्ियां और िावणस्ज्यक फसलें शावमल हैं। इन सभी का विकास अलग-अलग चरण में

    है। कुछ जीएम फसलो ंके िेिलपर िीएमएच-11 पर वनगाहें जमाए हैं। इसकी पररणवत

    देखकर ही िे अपने उत्पादो ंको जीईएसी के समक्ष पेश करें गे। यहां ध्यान देने लायक बात

    यह है वक इनमें से कई गैर हाइविि जीएम फसलो ंकी वकस्म हैं वजनके बीज वकसानो ंद्वारा

    बार-बार इसे्तमाल वकए जा सकते हैं। जबवक हाइविि फसलो ंके बीज हर बार नए खरीदने

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  • होते हैं। इनमें तीन थथानीय तौर पर विकवस�