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  • i

    आय एम थथिंथकिं ग अबाउट थदस

    थहन्दुस्तान थकसी की जागीर नहीं

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  • ii

    Publishing-in-support-of,

    EDUCREATION PUBLISHING

    RZ 94, Sector - 6, Dwarka, New Delhi - 110075 Shubham Vihar, Mangla, Bilaspur, Chhattisgarh - 495001

    Website: www.educreation.in __________________________________________________

    © Copyright, 2018,

    P Prashant - Professor Ram

    All rights reserved. No part of this book may be reproduced, stored in a retrieval system, or transmitted, in any form by any means, electronic, mechanical, magnetic, optical, chemical, manual, photocopying, recording or otherwise, without the prior written consent of its writer.

    ISBN: 978-1-5457-1883-4

    Price: ` 275.00

    The opinions/ contents expressed in this book are solely of the author and do not represent the opinions/ standings/ thoughts of Educreation.

    Printed in India

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  • iii

    आय एम थथिंथकिं ग अबाउट थदस

    थहन्दुस्तान थकसी की जागीर नहीं

    पी प्रशािंत – प्रोफेसर राम

    EDUCREATION PUBLISHING (Since 2011)

    www.educreation.in

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  • iv

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  • v

    आत्म थप्रय नन्नू

    स्व. श्री सलु्तान थसिंह राजपूत को समथपित

    TS

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  • vi

    थवशेष

    इस पसु्तक में सभी लघु कहाननयााँ एवं कहाननयों के पात्र

    काल्पननक हैं। इनका नकसी भी पूवव या वतवमान में या नकसी भी

    जीनवत अथवा मतृ या स्थान से अथवा नकसी भी धमव, वगव,

    संप्रदाय, पंथ एवं जानत, गोत्र आनद से कोई संबंध नहीं है। यह

    पसु्तक तो नसर्व समाज में रै्ले हुए भ्रमों को दरू करने के नलये

    सामानजक संदशेों को पे्रनषत करने का माध्यम है।

    अगर नकसी प्रकार का कोई संपकव अथवा समानता पायी जाती

    है तो ये मात्र एक संयोग होगा।

    पी प्रशािंत

    TS

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  • vii

    PRASHANT POLICY

    “आप मेरी थवचारधारा से सहमत न हों, ये हो सकता है लेथकन मेरी थवचारधारा जन थवरोधी है, ये हरथगज नहीं हो

    सकता ।“

    “”ईश्वर है अथवा नहीं इस पर बहस करने अच्छा है थक

    हमारे थदलों में क्या है? इस पर थवचार होना चाथहए।“”

    NO SAVE RELIGIONS

    NO SAVE CASTES

    ONLY SAVE ENVIRONMENT

    AND SAVE EARTH

    P PRASHANT - PROFESSOR RAM

    TS

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  • viii

    अनुसूची

    क्र. अनुक्रम पषृ्ठ

    1. वसधुैव कुटंुबकम 1

    2. कुछ तो सही है। 3

    3. नहन्दसु्तान की खबूसरूती 10

    4. भारतवषव का ननमावण 12

    5. नहन्दसु्तान नकसी की जागीर नहीं है। 14

    6. नहन्द ू 17

    7. धमव 18

    8. प्रोरे्सर राम – अनोखा व्यनित्व 19

    9. तुम मझुे युवा दो मैं तुम्हें गुलामी दूगंा 22

    10. सोच का अपहरण 24

    11. ईश्वर का अपमान 27

    12. नचकन पाटी 29

    13. गंदा खनू 31

    14. मंनदर में तो राजनीनत है 33

    15. मझुे नहन्दसु्तान में नहीं रहना 35

    16. कट्टरता मतलब डर 37

    17. तुम झकेु तो शदू्रों की तरर् ही 39

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    https://www.google.co.in/search?q=kramank+in+hindi&rlz=1C1ASUC_enIN739IN739&oq=kramank&aqs=chrome.2.69i57j0l5.14452j0j7&sourceid=chrome&ie=UTF-8

  • ix

    18. दशेभनि जेब पर भारी है साहब 41

    19. लेनकन गंदगी तो हमने की थी 43

    20. राजधानी नहीं मालमू जानत याद है 45

    21. पजूा का नाररयल 47

    22. केसररया बनाम हरा 49

    23. छोटा ईश्वर बड़ा ईश्वर 51

    24. नर्र तो ईश्वर भी बदनाम हो 53

    25. नबल्ली रास्ता काट गई 55

    26. हैलीकाप्टर वाले संत बनाम संत 57

    27. असली जेबकतरा 60

    28. डीलक्स होटल और नकसान योजना 62

    29. धमव नकसी को भूखा नहीं मरने दतेा 64

    30. दोस्ती में धमव का सम्मान 66

    31. हम कौन स ेधमव के हो गये? 68

    32. मबुारक हो , आप पनवत्र हो गये 70

    33. सरोगट मदर– एक ददव 72

    34. कुबावनी का बकरा 79

    35. संस्कृनत की रक्षा 83

    36. 72 हूरें, आपने दखेी क्या? 85

    37. असली राष्ट्रवादी 88

    38. ईश्वर से अनधक बनुिमान हम 91

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  • x

    39. अाँगे्रज़ भ्रष्टाचारी नहीं थे! 94

    40. शहीद की जात क्या है? 96

    41. झोंपड़ी की राख – मदु्दा 98

    42. सब कुछ नवदशेी और ढोंग स्वदशेी 101

    43. अन्न न उगाने की भी हड़ताल हो 103

    44. आरक्षण पर इतना हंगामा क्यों? 105

    45. मंनत्र की पत्तलों की झठून 107

    46. धानमवक नहीं कट्टर बनाओ 109

    47. नववाद मंनदर – मनस्जद का नहीं 112

    48. कन्या दान के बाद तीरथ 117

    49. सत्रहवां संस्कार – व्हाट नोनसेन्स 119

    50. चोर को थानेदार बना दो 121

    51. नदल में क्या है? क्या मालमू? 124

    52. वो मरे तो खशुी क्यों 127

    53. वो डरपोक नहीं इज्जतदार है 130

    54. जनता और भीड़ के मायने 132

    55. हम जानतयों में बंटे, नर्र एक- एक

    करके नपटे

    134

    56. अभी एम्बलुेंस आगे बढ़ाऊाँ ? 137

    57. क्या ईश्वर जानतवादी है? 139

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  • xi

    58. बात में दम तभी जब... 141

    59. भइया वो गरीब है ...नहीं...नहीं

    अमीर है

    143

    60. नदी का पत्थर 145

    61. नसटी बस 158

    62. आप करें तो हवन, हम करें तो आग

    लगा रहे।( मनूतव तोड़ो अनभयान)

    168

    63. हमारा नेता कैसा हो? कट्टर नहन्द ू

    मसुलमान जैसा हो....

    171

    64. नर्रत तो है मगर मतलब के नलये .. 173

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  • xii

    मेरा मानना है कि जरूरी नहीं है कि किसी किषय पर बड़ी-२

    और गम्भीर पररभाषाएं दी जायें, किषय िो आसान िरिे भी

    बहुत से लोगों िी समझ ति पहुंचाया जा सिता है।

    इसथलए मैं भी थकसी भी थवषय पर बहुत बडी – बडी

    ,गिंभीर एविं गहराई वाली पररभाषाएिं नहीं जानता। मैं तो

    थसफि इतना जानता ह ूँ थक:--

    TS

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  • पी प्रशांत – प्रोरे्सर राम

    1

    वसुधैव कुटुम्बकम

    ‚वसधुैव कुटुम्बकम‛ अथावत समस्त धरती हमारा पररवार ।

    भारतीय संस्कृनत के अनुसार संसार में दशेों की कृनत्रम रेखाएं

    नहीं है।

    “मानव धमि” अथावत भारतीय संस्कृनत के अनसुार नवश्व में

    नकसी भी धमव का नवशेष नाम नहीं है।

    सबसे सनु्दर – प्रकृथत

    सबसे सनु्दर स्वरूप – माूँ

    ईश्वर – मात्र अहसास। ईश्वर को जान लो नक कौन होता है

    ईश्वर? तो उसे पहचानना बहेद आसान होता है। ईश्वर न ऊपर

    ह,ैन नीचे है,न कण- कण में है। ईश्वर ‚प्राथवना‛ में है, ईश्वर ‚

    इबादत‛ में है, ईश्वर ‚ प्रे ‛ में है, ईश्वर ‚अरदास‛ में है, ईश्वर ही

    ‚कैवल्य‛ ह,ै ईश्वर ही ‚बोनध‛ है।

    ईश्वर मानने में है – संतान के नलये उसके माता – नपता ईश्वर।

    नशष्ट्य के नलये उसका गुरु ईश्वर। सच्चे नमत्र एक- दसूरे के नलये

    ईश्वर। बेबस और लाचार के नलये उसको सहारा दनेे वाला ईश्वर।

    शासक के नलये उसकी प्रजा ईश्वर। प्रजा के नलये उसका शासक

    ईश्वर । बस यूूँ समझ लीथजए थक—

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  • आय एम नथंनकंग अबाउट नदस

    2

    मायूस चेहरे पर मसुकराहट लाने वाला ईश्वर होता है।

    सिंस्कृथत – जो हमारे नवचारों को सौम्य, सरल, और मदृभुाषी

    बनाती है। हमारे आचरण को ननखारती है। हमारी संस्कृनत नवश्व

    की सभी भाषाएं,बोनलयााँ,धमव,कौम,पंथ,सम्प्रदायों का आदर

    करना है। कुछ लोग नचल्लाते हैं नक संस्कृनत नष्ट हो रही

    ह,ै,,,,,,,,,,,संस्कृनत नष्ट हो रही है ...............तो मैं उनसे कहना

    चाहूाँगा नक संस्कृनत चाहे नकसी भी दशे अथवा महावीपीप की हो

    ,वह कभी नष्ट नहीं होती। ये तो अन्य संस्कृनतयों में घुलती

    ह,ैनमलती है............और आवश्यकता के अनुसार अपने आप

    को पररवनतवत करती है।

    सभ्यता – वह जो हमें जीवन जीने का ढंग नसखाती है।

    धमि – ऐसा कायव जो समस्त प्रानणयों के नहतों की रक्षा करे।

    राष्ट्र- वह भनूम जो हमारी और हमारी प्रनतभा का सम्मान करती

    हो।

    राष्ट्रवाद- अपने राष्ट्र और उसके समस्त ननवानसयों के प्रनत

    प्रेम ,आदर राष्ट्र के संनवधान के प्रनत ननष्ठा एवं राष्ट्र की उन्ननत

    के नलये प्रयास ही राष्ट्रवाद है।

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  • पी प्रशांत – प्रोरे्सर राम

    3

    कुछ तो सही है।

    एकात्मता प्राचीन हो या नवीन हो , ईश्वर को आप मानते हो या न मानते हो, इस बात से थकसी को

    कोई फकि नहीं पडता। लेथकन जब आप थजस

    राष्ट्र में रह रहे होते हैं और उस राष्ट्र के सिंथवधान

    ,जो आपको अथधकार और सम्मान प्रदान करता

    है, में आप अपनी थनष्ठा और थवश्वास नहीं करते हैं

    तो थनथित ही आप देशद्रोही माने जायेंगे।

    सािंस्कृथतक एकता का यह मतलब नहीं थक थकसी राष्ट्र में एक धमि ही हो। सिंस्कृथत तो “सिंस्कार है”

    जो थबना थकसी भेदभाव, ईष्ट्याि से एक – दूसरे के

    साथ रहना और थवपथि में सबका साथ देना।

    सिंस्कृथत कभी नष्ट नहीं होती । उसमें तो समय और लोगों के आगमन के अनुसार पररवतिन होते

    रहते हैं। जैसे हम जब थकसी से थमलते हैं तो

    प्रणाम करते हैं, कोई आदाब करता है तो कोई

    good morning या good evening करता है तो

    क्या इससे हमारी सिंस्कृथत बदली। नहीं। थसफि

    हमारी भाषा बदली। शब्द बदले। कोई खादी

    पहनता है तो कोई थवदेशी सिंस्कृथत का प्रतीक

    पेन्ट शटि पहनता है तो क्या कोई कम या ज्यादा

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  • आय एम नथंनकंग अबाउट नदस

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    सािंस्कृथतक हुआ? नहीं। सिंस्कृथत तो बस सिंस्कार

    है।

    सबसे मेल जमा लेता है नहन्द ू धमव , यही थवशेषता थहन्दू धमि की महानता का प्रतीक है। न थक इसकी

    प्राचीनता और थवशालता।

    धमि में कभी राजनीथत नहीं आनी चाथहए और राजनीथत में कभी धमि का प्रयोग नहीं होना

    चाथहए। अगर ऐसा होता है तो सभी धमों के धमि

    गुरुओिं को राजनीथतक स्वाथि त्याग कर थवरोध

    करना चाथहए।

    थहन्दू राष्ट्र का थनमािण से यह मतलब थोडे ही है थक इस देश में थसफि थहन्दू ही थहन्दू रहें । हमारा

    सिंथवधान समानता और धमिथनरपेक्षता की बात

    करता है। थहन्दू का अथि थहन्दू धमि से तो बहुत बाद

    में है। सविप्रथम इसके शब्दों को समथझए। थहन्दू

    अथाित जो थहिंसा से दूर हो। अथाित इस भारतवषि

    में वे सभी मजहब, सिंस्कृथत, जाथत, रह सकते हैं

    जो थहिंसा से दूर रहते हो। कट्टरता सिंसार के थकसी

    भी धमि का अिंग नहीं है जो कट्टर है वो थसफि

    अपने थनजी स्वाथि जैसे सिा, समथिन अथवा

    सुथखियों में रहने के थलये धमि का सहारा लेता है।

    सिंथवधान में थवश्वास और उसका सम्मान करना ही

    राष्ट्र का थनमािण करना होता है।

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  • पी प्रशांत – प्रोरे्सर राम

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    सिंस्कृथत चाहे थकसी भी देश की हो उस देश के थलये महान ही होती है। और थकसी भी देश की

    सिंस्कृथत नष्ट नहीं होती है। बस समय और

    आवश्यकता अनुसार पररवतिन होती जाती है।

    मगर आज कुछ नेता टाइप लोग फालतू बैठे

    लोगों की भीड जुटाकर “सिंस्कृथत खतरे में” पर

    चीख रहे हैं, थचल्ला रहे हैं।

    लोग कहते हैं नक हम मसुलमान की पररभाषा कर सकते हैं, ईसाई की पररभाषा कर सकते हैं लेनकन नहन्द ू

    की नहीं कर सकते हैं। मेरा थवचार – शायद वो थहन्दू

    की पररभाषा जानते नहीं होंगे। मैं बताता ह ूँ। जो

    मैंने इस नोट में कई बार बतायी है। ऐथतहाथसक

    दृथष्ट से अरबी लोगों ने स को ह बोला तो थसन्धु

    नदी के पार वाले लोग थहन्दू हो गये। और स्थान

    हो गया थहन्दुस्तान। अगर थहन्दू के शब्दों के

    अनुसार पररभाषा थनकालें तो गौर कीथजए जनाब

    “थहन्दू” अथाित वह व्यथि जो “थहिंसा से दूर है” ।

    अब जैसे इस्लाम में थशया और सुन्नी होते हैं,

    ईसाइयों में प्रोटेस्टेंट और कैथोथलक होते हैं, जैनों

    में शे्वतािंबर और थदगिंबर होते हैं ठीक वैसे ही थहन्दू

    धमि भी अछूता नहीं है । इसमें भी शैव मत है,

    वैष्ट्णव मत है। थहन्दू धमि भी कई सम्प्रदायों में

    बटा हुआ है। थवभाजन धमि की प्रकृथत नहीं है। ये

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  • आय एम नथंनकंग अबाउट नदस

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    तो समय और थवशालता के कारण स्वतः ही हो

    जाता है।

    पुनजिन्म की अवधारणा हमें गलत कायि करने से रोकती है ।कमों का फल एक डर पैदा करता है।

    मगर मानव ने शायद ही इस डर को कभी महसूस

    थकया हो क्योंथक चाहे थकसी भी धमि का प्रथतशत

    ले लो । हर धमि के लोग पाप करते हैं। कोई भी

    दूध का धुला नहीं है।

    जो लोग अपनी थवरासत अथवा आध्याथत्मकता को भूल जाते हैं। उनका आधुथनकता से कोई

    सम्बन्ध नहीं होता है। जो भूल जाते हैं, वो पहले

    भी होते थे जब आध्याथत्मकता का दौर था और

    आज भारतवषि हैं जब आधुथनकता का दौर है।

    पहले थपता को थपताश्री कहते थे ।आज डैडी

    कहते हैं। लेथकन क्या इन शब्दों के बदलाव से

    थपता – पुत्र में पे्रम कम हो जाता है? नहीं। थपता

    को धोखा देने वाले कल भी थे, आज भी हैं। हाूँ

    जहािं थजस थवषय में “अथत” शाथमल हो जाता है।

    वहाूँ सब कुछ अथनयथमत हो जाता है। जैसे –

    अथतबेइमानी, अथत ईमानदारी, अथत

    आधुथनकतावादी इत्याथद। पहले बडे घर होते थे ,

    तो एक बडा सा पूजनग्रह होता था। बडे- बुज़ुगों

    के थलये अलग कमरा होता था। लेथकन आज

    ऐसा नहीं हो पाता। एक छोटे से घर में वहीं

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  • पी प्रशांत – प्रोरे्सर राम

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    बेडरूम, वहीं रसोई, लेट- बाथ और वहीं पूजनग्रह

    भी होता है। तो इसका मतलब यह नहीं थक आज

    के लोग कम आध्याथत्मक हैं।

    जानत व्यवस्था उन्हीं लोगों वीपारा लाई गई ही जो समाज को बांटकर , नर्र सत्ता की मलाई खाने के शौकीन रह े

    हैं। मेरा थवचार – ये लोग कभी नहीं चाहते थक

    जाथतयािं खत्म हो। समाज एक होकर सिंगथठत हो

    जाये। क्योंथक जब समाज एक हो जायेगा,

    होथशयार हो जायेगा तो इन्हे वोटों के थलये लेने के

    देने पड जायेंगे और कोई भी ऐरा गैरा सिा प्राप्त

    नहीं कर सकेगा।

    हमारा एक दुश्मन होता है। वह हमारे साथ रहने लगता है। लेथकन हमारे आचरण को समीप से

    देखने पर उसमें पररवतिन होने लगता है। वह सही

    रास्ते पर आ जाता है। हमारे साथ घुलथमल जाता

    है। पुरानी दुश्मनी भुला देता है। तो क्या अब हम

    उसे उसका बुरा आचरण याद थदला कर उसे

    अपने घर से दूर कर देंगे? नहीं न । बस यही हुआ

    है हमारी थहन्दी और थवदेशी अिंगे्रजी के बीच ।

    इसथलए अब हम थकसी को एक – दूसरे से अलग

    नहीं कर सकते। लेथकन थसफि अिंगे्रजी को ही

    सीख कर थहन्दी को भुला देना , बहुत बडी

    बेवकूफी है।

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  • आय एम नथंनकंग अबाउट नदस

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    जीवन में कभी कोई बात और घटना को मजाक में नहीं लेना चाथहए। कुछ पल सोचना तो

    आवश्यक है।

    धमि में कभी राजनीथत नहीं आनी चाथहए और राजनीथत में कभी धमि का प्रयोग नहीं होना

    चाथहए। अगर ऐसा होता है तो सभी धमों के धमि

    गुरुओिं को राजनीथतक स्वाथि त्याग कर थवरोध

    करना चाथहए।

    आज कल कुछ थहन्दू सिंगठन कट्टरता का सहारा और सिंदेश देकर धमि को खतरे में बताकर उसे

    बचाने को थनकल पडे हैं। वो कुछ ऐसी कायिशैली

    अपनाते हैं थजससे कुछ थहन्दू तो उनके प्रथत

    आकथषित हो जाते हैं लेथकन बहुत से थहन्दू उनसे

    थकनारा कर लेते है। असहमथत जताते हैं। थहन्दुओ िं

    की थहन्दूओ िं की प्रथत ही असहमथत थहन्दू समाज

    के थलये खतरा है। ऐसे लोगों को रोकना होगा ।

    नहीं तो हमारी जो सिंस्कृथत सथदयों के आक्रमण

    और बदलाव के दौरों में भी नष्ट न हो पायी , उसे

    ऐसे लोगों और कायिशैथलयों से नष्ट होना पडेगा।

    जब लोग डरने लगेंगे। क्योंथक मनमाने तरीक़े

    अपनाने और दूसरों पर थोपने से ही एक धमि में

    से दूसरा धमि बनता है। जैसे – बौद्ध बने, जैन बने।

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