Sample Copy. For Distribution. · नवभूषण’ से समानित नकया...

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  • i

    श्री शनि संनिता

    एक अतुलिीय शनि ग्रन्थ

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  • ii

    Publishing-in-support-of,

    EDUCREATION PUBLISHING

    RZ 94, Sector - 6, Dwarka, New Delhi - 110075 Shubham Vihar, Mangla, Bilaspur, Chhattisgarh - 495001

    Website: www.educreation.in

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    ISBN: 978-1-5457-2458-3

    Price: ` 505.00

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    Printed in India

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  • iii

    श्री शनि संनिता

    शनि पूजि निधाि और शनि साधिा

    गुरु गौरि आयय

    ज्योनतयनिद्चायय एिं अिुसंधािकताय

    EDUCREATION PUBLISHING (Since 2011)

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  • iv

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  • v

    श्री गणेशाय िमः

    ॐ गजाििं भूतगणानद सेनितं कनपत्थ जमू्बफलसार भनितम्

    उमासुतं शोक नििाशकारणं िमानम निघे्नश्वर पादपङ्कजम् ॥

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  • vi

    चेताििी

    "श्री शनि संनिता" शनि से िोिे िाले कष्ो ं से मुक्ति पािे का सरल

    मागय िै, लेनकि शनि देि के पूजि और साधिा या तंत्रोि साधिा में

    हुई तु्रनि के कारण साधक को दंड भी नमल सकता िै, शनि साधिा

    नकसी योग्य गुरु के संरिण में िी करिी चानिए कोई भी व्यक्ति

    अिुनचत तरीके से साधिा करता िै, या शनि के नियमो ंको तोड़ता िै,

    तो साधक उसके नलए खुद नजमे्मदार िोगा। पुस्तक में दी गयी

    साधिा निनध, यन्त्र, प्रयोग, शाबर मंत्र प्रयोग, किच, स्त्रोतं, आनद में

    अशुक्ति, या निनधगत,िसु्तगत तु्रनि कोई भी व्यक्ति करता िै, और

    उसको अगर िानि, या अन्य के्लशजिक िानि िोती िै, तो उसके

    नलए लेखक प्रकाशक नजमे्मदार ििी ंिोगा, सारा उत्तरदानयत्व व्यक्ति

    निशेष, साधक का िी िोगा। श्री शनि संनिता में नदए यन्त्र मंत्र और

    उिके प्रयोग तोड़ मरोड़ कर पेश करिे का प्रयास ि करें ।

    गुरु गौरि आयय

    तंत्र निशेषज्ञ

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  • vii

    समनपयत

    परम पूज्य गुरु देि

    भगिाि शनिदेिता

    एिं

    निशेष से्नि मेरी पत्नी पूजा गौरि आयय

    ******

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  • viii

    दो शब्द

    शनि संनिता को आप सभी के समक्ष प्रसु्तत करिे का उदे्दश्य यि िै, नक आप सभी शनि

    देव के नवषय में भली प्रकार समझ पाएं और उिके बारे में समझ कर उिका नवशेष

    आशीवााद प्राप्त कर सकें । शनि एक संसृ्कत शब्द िै। ‘शिये कमनत सः’ निसका अर्ा िै

    ‘अत्यन्त धीमा’। निस कारण शनि की गनत बहुत धीमी िै। शनि की गनत भले िी धीमी िो

    पर शनि देव को बहुत िी सौम्य देव मािा िाता िै। शनि देव सूया देव के पुत्र िोिे के

    कारण बहुत िी शक्तिशाली िैं, शनि देव का तेज़ और शक्ति देवताओ ंमें सवामान्य िै।

    शनि देव अत्यनधक क्रोधी एवं दयालु िैं। निस कारण मािवो ंऔर देवताओ में शनि देव

    का डर व्याप्त िै। भगवाि शनि देव को न्याय का देवता मािा िाता िै, क्ोनंक शनि देव

    पाप करिे वालो ंको और अन्याय करिे वालो ंको अपिी दशा या अंतर दशा में दक्तित

    करते िैं। शनि देव ऐसा इसनलए करते िैं तानक वि प्रकृनत के नियम को बिाए रखें और

    प्रकृनत का संतुलि बिा रिे। एक प्रकार से शनि देव संतुलि बिािे का काया करते िैं,

    तानक अन्याय को समाप्त कर िीवो ंऔर देवताओ ंको न्याय नदला सकें । शनि देव के बारे

    में कुछ भ्ांनतयां िैं। निस कारण शनि देव को शुभ ििी ंमािा िाता िै िो नक नितांत

    उनित ििी ंिै। शनि देव पाप और अन्याय करिे वालो ंको नभखारी तक बिा सकते िै।

    तानक बुरा कमा करिे से पूवा िीवो ंमें भय िो और नकसी पर अन्याय ि िो सकें । िो कोई

    भी पाप के मागा पर िलता िै भगवाि शनि देव उसको किी ंभी दि दें सकते िैं, िािे

    वि भू-लोक िो या पाताल िो। किा िाता िै नक शनि देव के गुरु देव आनददेव मिादेव

    िैं। मिादेव िे िी शनि देव को न्यायाधीश बिाया। इसनलए शनि देव को सवोच्च

    न्यायाधीश मािा िाता िैं। शनि देव का वणा िील िैं, और उन्हें कलयुग का देवता मािा

    िाता िै। शनि देव का पूिि और उिकी साधिा अन्य शक्तियो ं नक साधिा से काफी

    पृर्क िै, क्ोनंक इसका कारण शनि देव को बाल्यकाल में नमले श्राप िैं। िीव अगर

    सदमागा पर िले तो शनि देव की कुदृनि से बिा रि सकता िैं। क्ोनंक शनि देव अन्याय

    के रासे्त पर िलिे वाले को समय-समय पर दंनडत करते रिते िैं। िो िीव और देव सिी

    मागा पर िलते िैं तो शनि देव उिको उसका फल भी देते िै, सार् िी ऐसे िीवो ंको

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  • ix

    िीवि में माि और सम्माि भी नमलता िैं। शनि देव को प्रसन्न रखिे से शनि की कुदृनि से

    बिा िा सकता िै, और शनि देव को शीतल रखिे के नलए “श्री शनि संनिता” में नदए

    गए अध्याय के अध्ययि से उसको भली भांनत समझा िा सकता िै पर शनि के अध्ययि

    से पूवा, सवाप्रर्म भगवाि शनि का ध्याि करें और मि में नविार करें की मुझे नकस बात

    का अिंकार िै, और मेरा स्वभाव सभी मािवो ंऔर िीवो के नलये कैसा िै क्ोनंक अगर

    स्वभाव में स्वच्छता ििी ंिै, तो स्वभाव को स्वच्छ बिािा िोगा और अगर ऐसा ििी ंकरिा

    िािते तो नकसी भी उपाय या साधिा या भक्ति या पूिि का कोई लाभ ििी ं माििा

    िानिए। शनि देव ज्योनतष में भी अपिा काफी प्रभाव रखते िै, और अन्य ग्रि से ज्यादा

    प्रभावशील िै। िब भी शनि देव की दशा या अंतर दशा िातक पर आती िै, तो िातक

    अपिे कमा अिुसार शुभ या अशुभ फल भोगता िै। शनि देव को तीिो लोको का देव भी

    मािा िाता िै, क्ोनंक शनि देव नकसी को भी दक्तित करिे का सामर्थ्ा रखते िै। शनि

    देव अपिे भिो ंको कभी भी निराश ििी ंकरते िैं, और िमेशा सार् रिकर सिायता

    करते िैं। शनि देव िीलम धारी िैं और शनि देव का वािि स्वाि मािा िाता िै। शनि देव

    का प्रमुख वािि कौआ भी िै। शनि िालीसा में वणाि िैं नक-

    "जब आिनिं प्रभु स्वाि सिारी चोरी आनद िोय डर भारी"

    मैं अपिे दस वषों के अिुभव से अनिात नकया हुआ कुछ ज्ञाि आप सभी तक पहुुँिािे का

    प्रयास कर रिा हं, और मुझे पूणा आशा िै नक श्री शनि संनिता के अध्ययि से आप सबको

    शनि देव मिाराि का आशीवााद प्राप्त िोगा। शनि देव की साधिा करिे वाले साधक को

    शनि देव कभी भी निराश ििी ंकरते िैं, शनि देव की साधिा या उपासिा करिा कोई

    सामान्य बात ििी ं िै, क्ोनंक शनि देव के क्रोध और तेज़ को सिि करिा कभी-कभी

    असंभव िो िाता िै, पर किावत िै-भक्ति और नवश्वास से पत्थर को भी नपघलाया िा

    सकता िै।

    शनि देव अपिे भिो ंकी िैय्या पार लगाते िैं, सार् िी कदम-कदम पर सार् रिकर

    अपिे िर भि की सिायता भी करते िैं। अगर कोई शनि देव के भि की अविेलिा या

    अपमाि भी करता िै तो यि शनि देव का अपमाि मािा िाता िैं, और शनि उस दुि को

    दक्तित करते िै।

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  • x

    “करहु जो कोई तोिे साधक अपमाि, िो भरहु घोर अपमाि"

    "अिुभव और अिुसंधाि से इस ितीिे पर पहंुिा हुँ, नक शनि देवता किी से किी तक

    भी अशुभ ििी ंिैं, इिका काया कमा का फल और लाभ को देिा िै, ऐसा ििी ं िै, नक

    भगवाि् शनि देव नसफा दि िी देते िै, प्रसन्न िोिे पर उनित फल भी देते िैं।"

    िय शनि देव

    िीलाम्बरः शूलधरः नकरीिी गृध्रक्तथितस्त्रासकरः सशस्त्रः।

    चतुभुयजो सूययसुतः प्रशान्तः सदासु्त महं्य िरदोल्पगामी।।

    ***

    गौरि आयय

    ज्योनतयनिद्चायय एिं अिुसंधािकताय

    (तंत्र नवशेषज्ञ, असाधारण गनतनवनध नवशेषज्ञ,

    यन्त्र और मंत्र निमााणकताा, निनकत्सा ज्योनतषी)

    ज्योनतष श्री, ज्योनतष नवभूषण से सम्मानित

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  • xi

    लेखक पररचय

    गौरव आया का िन्म १९९२ को उत्तर प्रदेश में हुआ। बिपि से शांत और सरल स्वभाव

    के मानलक रििे के कारण अपिी साधिा और पढाई नलखाई में िी समय व्यतीत नकया।

    अपिी प्रारंनभक नशक्षा को पूणा करिे के उपरांत नवज्ञाि के के्षत्र में िािे का निणाय नलया

    और उत्तर प्रदेश टेक्तिकल यूनिवनसाटी से वषा २०१४ में मैकेनिकल इंिीनियररंग में प्रर्म

    शे्रणी में स्नातक की उपानध प्राप्त की, बिपि से िी धमा और ज्योनतष, तंत्र के प्रनत झुकाव

    रििे के कारण, इि गुप्त नवधाि में ज्यादा समय व्यतीत करिे लगे। लेनकि अनभयंता

    िोिे के कारण कुछ कम्पिी के सार् काम करिे के उपरांत मशीि को नडज़ाइि करिे

    का काया ४ सालो तक नकया, लेनकि अपिे व्यक्तित्व और धानमाक प्रवृनत्त के कारण

    िाििे वाले नशष्ो ंकी संख्या बढ़िे लगी कारणवश अपिी िौकरी को छोड़कर "आथिा

    और अध्यात्म" िामक एक संस्र्ाि का निमााण नकया। अपिी ज्योनतष नवद्या और यन्त्र

    शक्ति के आधार पर काफी लोगो ंको िीवि नदया, ि िािे नकतिो ंकी गृिस्र्ी को िया

    िीवि नदया, िीवि से िार िुके लोगो ंको िीवि का उदे्दश्य नदया, भगवाि् शनि के प्रनत

    बिपि से िी आस्र्ा िोिे के कारण अपिा समू्पणा िीवि लोगो ंकी सेवा में िी समनपात

    कर नदया, काफी सत्य भनवष्वाणी करिे के उपरांत २०१७ में देव भूनम उत्तराखंड में

    ‘ज्योनतष श्री’ से सम्मानित नकया गया नफर २०१८ में मुख्यमंत्री उत्तराखंड द्वारा ‘ज्योनतष

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  • xii

    नवभूषण’ से सम्मानित नकया गया। अपिे नशष्ो ंको अप्सरा नसक्ति, बगलामुखी साधिा

    और अन्य साधिायें सम्पन्न करा िुके िैं और कराते रिेंगे यंत्रो के मित्व को समझ कर

    यंत्रो के निमााण पर ध्याि नदया और तंत्र नवज्ञाि में १००० से अनधक िवीि यंत्रो का निमााण

    नकया, िो ज्योनतष के उपाय के रूप में काफी सिायक िै। सार् िी गौरव आया

    ‘पैरािॉमाल एक्सपटा’ के रूप में भी िािे िाते िै। असामान्य गनतनवनधयाुँ और उिके

    कारण क्ा िै? उसके नलए भी िािे िाते िै। शाबर मंत्रो का भी निमााण समय रिते करते

    रिते िै, ि िािे नकतिे साधको को तंत्र मागा का सिी उपदेश दें िुके िैं, और भारत की

    इस गुप्त पद््दनत को संिोकर रखिे का प्रयास निरंतर कर रिे िैं। मंत्र दीक्षा और साधिा

    नवधाि का ज्ञाि निरंतर अपिे नशष्ो ंको देते रिते िैं। आत्माओ ंके रिस्य और तंत्र नवद्या

    के रिस्य को खोलिे िेतु निरंतर प्रयास करते रिते िैं, आिे वाली अपिी िवीितम

    पुस्तको ंके माध्यम से भी इि रिस्यो ंको उिागर करते रिेंगे।

    मिाकाल की शरण उजै्जि में

    आस्था और अध्यात्म www.asthaoradhyatm.in

    www.astrologergauravarya.com

    [email protected]

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  • xiii

    खण्ड क

    शनि देि पररचय

    खण्ड ख

    शनि देि पूजि

    खण्ड ग

    शनि देि तांनत्रकोपासिा

    खण्ड घ

    शनि ज्योनतष

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  • xiv

    खण्ड क

    शनि देि पररचय

    ▪ शनि देव परिचय

    ▪ शनि ज्योनिष के अिुसाि

    ▪ शनि देव

    शनि देि के माता एिं नपता

    ▪ पपिा (सूयय िािायण)

    ▪ मािा (छाया)

    शनि देि के भाई बनिि

    ▪ शनि देव के भ्रािा यम

    ▪ शनि देव की बहिि यमुिा

    शनि देि की भायाय

    ▪ िीला /िीललमा भायाय

    ▪ धालमिी /मंदा भायाय

    शनि देि को श्राप

    ▪ शनि देव को मािा का श्राप

    ▪ शनि देव को भायाय का श्राप

    शनि देि की कुछ अन्य किाएँ

    ▪ शनि लशगंणापुि कथा

    ▪ शनि देव एवं भगवाि कृष्ण कथा

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  • xv

    ▪ पवक्रमाहदत्य कथा

    ▪ शनि देव औि दशिथ

    ▪ शनि देव औि लक्ष्मी कथा

    ▪ शनि देव औि पीपल की कथा

    ▪ गणपनि औि शनि देव

    ▪ िाजा िल औि शनि देव

    ▪ शनि देव औि िावण

    ▪ शनि देव औि ििुमाि जी

    ▪ पांडवों की पिीक्षा

    ▪ शनि देव विदाि एवं गुरु प्राप्ति

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  • श्री शनि संनिता 1

    खण्ड क

    शनि देि पररचय

    ▪ शनि देव पिता श्री श्री सूयय िािायण

    ▪ शनि देव माताश्री श्रीमिी छायादेवी, सुवणाय

    ▪ शनि देव के भाई श्री यमिाज

    ▪ शनि देव बहिि श्रीमिी यमुिा देवी

    ▪ शनि देव गुरु भगवाि लशव शंकि

    ▪ शनि देव जन्म स्थाि

    सौिाष्र, गुजिाि

    ▪ शनि देव गोत्र कश्यप

    ▪ शनि देव रंग सांवला

    ▪ स्वभाव त्यागी, िपस्वी, दृप्ष्ि, क्रोधी, गम्भीि, स्पष््भाषी आहद

    ▪ ममत्र बालाजी, ििुमािजी , भैिव

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  • श्री शनि संनिता 2

    ▪ पविुल िाम छायासुि, सूययपुत्र, कोणस्थ, पपगंलो, बभ्रू, िौद्रािक, सौिी, शिैश्चि, कृष््मंद, कृष्णौ

    ▪ ममत्र ग्रि गुरु, शुक्र, िािू, बुध।

    ▪ ममत्र रामश वषृभ, लमथुि, कन्या, िुला

    ▪ पिय राशी मकि, कुम्भ

    ▪ पिय िक्षत्र पुष्य, अिुिाधा, उत्तिाभाद्रपद

    ▪ शनि कक उच्च राशी िुला (कला के अिुसाि)

    ▪ िीच राशी मेष

    ▪ शनि का क्षेत्र पेरोललयम, लौि, इस्पाि, उद्योग, पे्रस, आहद

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  • श्री शनि संनिता 3

    िैदूयय कांनत रमल:, प्रजािां िाणातसी कुसुम िणय निभश्च शरत:।

    अन्यानप िणय भुि गच्छनत तत्सिणायनभ सूयायत्मज: अव्यतीनत मुनि प्रिाद:॥

    भावार्ा:- शनि ग्रि वैदूयारत्न अर्वा बाणफूल या अलसी के फल िैसे निमाल रंग से िब

    प्रकानशत िोता िै, तो उस समय प्रिा के नलये शुभ फल देता िै यि अन्य वणों को प्रकाश

    देता िै, तो उच्च वणों को समाप्त करता िै, ऐसा ऋनष मिात्मा किते िैं।

    शनि ज्योनतष के अिुसार

    शनि ग्रि के प्रनत अिेक वृतांत पुराणो ंमें प्राप्त िोते िैं। शनिदेव को सूया पुत्र एवं कमाफल

    दाता मािा िाता िै। लेनकि सार् िी नपतृ शतु्र भी मािा िाता िै। शनि ग्रि के सम्बन्ध में

    अिेक भ्ाक्तन्तयां िै इसनलये उसे मारक, अशुभ और दुख कारक मािा िाता िै।

    पाश्चात्य ज्योनतषी भी उसे दुख देिे वाला मािते िैं। लेनकि शनि ग्रि उतिा अशुभ

    और मारक ििी िै, नितिा उसे मािा िाता िै। इसनलये वि शतु्र ििी िै। मोक्ष देिे वाला

    एक मात्र शनि ग्रि िी िै। सत्य तो यि िै नक शनि प्रकृनत में संतुलि पैदा करते िै, और

    िर प्राणी के सार् उनित न्याय करते िैं। िो लोग अिुनित नवषमता और अस्वाभानवक

    समता को आश्रय देते िैं, शनि केवल उन्ही को दक्तित करते िैं। फनलत ज्योनतष के

    शास्त्रो में शनि को अिेक िामो ं से सम्बोनधत नकया गया िै, िैसे मन्दगामी, सूया-पुत्र,

    शनिश्चर और छायापुत्र आनद। शनि के िक्षत्र िैं- पुष्, अिुराधा और उत्तरा भाद्रपद यि

    दो रानशयो ंमकर और कुम्भ का स्वामी िै। तुला रानश में २० अंश पर शनि परमोच्च िै

    और मेष रानश के २० अंश पर परमिीि िै। िीलम शनि का रत्न िै। शनि की तीसरी,

    सातवी,ं और दसवी ंदृनि मािी िाती िै। शनि सूया, िन्द्र, मंगल का शतु्र, बुध, शुक्र को

    नमत्र तर्ा गुरु को सम मािा िाता िैं। शारीररक रोगो ं में शनि को वायु नवकार, कंप,

    िनियो ंऔर दंत रोगो ंका कारक मािा िाता िै।

    शनि देि

    मत्स्य पुराण में शनि देव का शरीर इन्द्र कांनत की िीलमनण िैसा िै, वे नगि पर सवार िैं,

    िार् में धिुष बाण िै, एक िार् से वर मुद्रा भी िै, शनि देव का नवकराल रूप भयावि भी

    िै। शनि पानपयो ंके नलये िमेशा िी संिारक िैं। शनि देव न्याय करिे के सार्-सार् िी

    इिदेव के रूप में भी पूज्य िै और कदम-कदम पर अपिे साधको और भिो ं की

    सिायता करते िैं। शनि सदैव िी भिि नितकारी िै। शनि देव का पूिि और साधिा

    करके साधक अमूल्य शक्ति प्राप्त कर सकता िै। िैसे समस्त िक्रो ं को िाग्रत कर

    सकता िै। ‘नत्रिेत्र’ िैसी अमूल्य शक्ति को प्राप्त कर सकता िै। सूया पुत्र िोिे के कारण

    शनि देव को अमूल्य शक्ति पिले से िी प्राप्त र्ी। भगवाि नशव से शक्ति और आशीवााद

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  • श्री शनि संनिता 4

    प्राप्त करिे के बाद शनि देव को समस्त शक्तियो ंका ज्ञाि भी प्राप्त िै। शनि देव की

    साधिा अगर नियम के अिुसार गुरु आज्ञा से समू्पणा कर ली िाये तो शनि देव के दशाि

    और उिसे नवशेष आशीवााद प्राप्त िो िाता िै। साधक अपिे आप को शनि को समनपात

    कर दें तो शनि के दशाि और िमत्कार प्राप्त िोिा कोई बड़ी बात ििी ंिै।

    ब्रह्मवैवता पुराण में शनि िे िगत िििी पावाती को बताया िै नक मैं सौ िन्मों तक िातक

    की करिी का फल भुगताि करता हुँ। एक बार िब नवषु्णनप्रया लक्ष्मी िे शनि से पूछा नक

    तुम क्ो ंिातको ंको धि िानि करते िो, क्ो ंसभी तुम्हारे प्रभाव से प्रतानड़त रिते िैं, तो

    शनि मिाराि िे उत्तर नदया, "मातेश्वरी, उसमें मेरा कोई दोष ििी ंिै, परमनपता परमात्मा

    िे मुझे तीिो ंलोको ंका न्यायाधीश नियुि नकया हुआ िै, इसनलये िो भी तीिो ंलोको ंके

    अंदर अन्याय करता िै, उसे दंड देिा मेरा काम िै"।

    ऋनष अगस्त्य िे िब शनि देव से प्रार्ािा की र्ी, तो उन्होिें राक्षसो ं से उिको मुक्ति

    नदलवाई र्ी। निस नकसी िे भी अन्याय नकया, उिको िी दंड नदया, िािे वि भगवाि

    नशव की अधाांनगिी सती रिी िो,ं निन्होिें सीता का रूप रखिे के बाद बाबा भोले िार् से

    झठू बोलकर अपिी सफाई दी और पररणाम में उिको अपिे िी नपता की यज्ञ में िवि

    कंुड मे िल कर मरिे के नलये शनि देव िे नववश कर नदया र्ा। शनि के प्रकोप से िी

    अपिे राज्य को घोर दुनभाक्ष से बिािे के नलये रािा दशरर् उिसे मुकाबला करिे पहंुिे

    तो उिका पुरुषार्ा देखकर शनि िे उिसे वरदाि मांगिे के नलये किा, रािा दशरर् िे

    नवनधवत सु्तनत कर उन्हें प्रसन्न नकया। पद्मपुराण में इस प्रसंग का सनवस्तार वणाि िै।

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  • श्री शनि संनिता 5

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  • श्री शनि संनिता 6

    शनि देि के माता एिं नपता

    नपता (सूयय िारायण)

    शनि देव के नपता सूया िारायण िै और माता संध्या/छाया िैं। एक कर्ा के अिुसार युि

    में िारे हुए देवताओ ंकी रक्षा के नलए मिारािा दक्ष प्रिापनत की कन्या अनदनत िे सूया से

    उिके पुत्र रूप में िन्म लेिे की प्रार्ािा की। तब सूया देव िे प्रकट िोकर अपिे एक अंश

    को उिके गभा से िन्म लेिे की बात किी। कुछ समय बीत िािे के बाद अनदनत के गभा

    से सूया देव का िन्म हुआ। उन्होिें दैत्यो ंसे देवताओ ंकी रक्षा की। सूया के इस रूप को

    माताि िाम से िािा िाता िै। सूया देव को इि िामो ंसे भी िािा िाता िै।

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