Quotes on Hindi Language

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FROM WIKIPEDIA This PDF available at http://sites.google.com/site/hindispekingtree/Home हदी के फाये भ विभबन भहाऩ रष के िचन From Wikiquote भात -बाषा के त- - बायतद हरयॊ तनज बाषा उनतत अहै , सफ उनतत को भ बफन तनज बाषा-न के , भटत न हहम को स र । अॊेजी ऩह के जदवऩ, सफ ग न होत िीन ऩै तनज बाषा-न बफन, यहत हीन के हीन । उनतत ऩ यी है तफहॊ जफ घय उनतत होम तनज शयीय उनतत ककमे , यहत भ सफ कोम । तनज बाषा उनतत बफना, कफह न ैह सोम राख उऩाम अनेक म बरे कये कन कोम । इक बाषा इक जीि इक भतत सफ घय के रोग तफै फनत है सफन स, भटत भ ता सोग । औय एक अतत राब मह, मा भ गट रखात तनज बाषा भ कीजए, जो विा की फात । तेहह स तन ऩािै राब सफ, फात स नै जो कोम मह ग न बाषा औय भहॊ , कफह नाहीॊ होम । विविध करा भशा अभभत, न अनेक काय सफ देसन से रै कयह , बाषा भाहह चाय । बायत भ सफ भबन अत, ताहीॊ स उऩात विविध देस भतह विविध, बाषा विविध रखात ।

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हहन्दी के फाये भें विभबन्न भहाऩुरुषों के िचन

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भात-ृबाषा के प्रतत - - बायतेंद ुहरयश्चॊद्र तनज बाषा उन्नतत अहै, सफ उन्नतत को भूर

बफन तनज बाषा-ऻान के, भभटत न हहम को सूर ।

अॊगे्रजी ऩह़ि के जदवऩ, सफ गुन होत प्रिीन

ऩै तनज बाषा-ऻान बफन, यहत हीन के हीन ।

उन्नतत ऩूयी है तफहहॊ जफ घय उन्नतत होम

तनज शयीय उन्नतत ककमे, यहत भू़ि सफ कोम ।

तनज बाषा उन्नतत बफना, कफहुॊ न ह्यहैैं सोम

राख उऩाम अनेक मों बरे कये ककन कोम ।

इक बाषा इक जीि इक भतत सफ घय के रोग

तफै फनत है सफन सों, भभटत भू़िता सोग ।

औय एक अतत राब मह, मा भें प्रगट रखात

तनज बाषा भें कीजजए, जो विद्या की फात ।

तेहह सुतन ऩािै राब सफ, फात सुनै जो कोम

मह गुन बाषा औय भहॊ, कफहूॊ नाहीॊ होम ।

विविध करा भशऺा अभभत, ऻान अनेक प्रकाय

सफ देसन से रै कयहू, बाषा भाहह प्रचाय ।

बायत भें सफ भबन्न अतत, ताहीॊ सों उत्ऩात

विविध देस भतहू विविध, बाषा विविध रखात ।

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सफ भभर तासों छाॊड़ि कै, दजेू औय उऩाम

उन्नतत बाषा की कयहु, अहो भ्रातगन आम ।

'याष्डबाषा के बफना आजादी फेकाय है।' - अिनीॊद्रकुभाय विद्यारॊकाय।

'हहॊदी का काभ देश का काभ है, सभूच ेयाष्डतनभााण का प्रश्न है।' - फाफूयाभ सक्सेना।

'सभस्त बायतीम बाषाओॊ के भरए महद कोई एक भरवऩ आिश्मक हो तो िह देिनागयी ही हो सकती है।' - (जजस्टस) कृष्णस्िाभी अय्मय।

'हहॊदी का ऩौधा दक्षऺणिारों ने त्माग से सीॊचा है।' - शॊकययाि कप्ऩीकेयी।

'अकफय से रेकय औयॊगजेफ तक भुगरों ने जजस देशबाषा का स्िागत ककमा िह ब्रजबाषा थी, न कक उदूा।' -याभचॊद्र शुक्र।

'याष्डबाषा हहॊदी का ककसी ऺेत्रीम बाषा से कोई सॊघषा नहीॊ है।' - अनॊत गोऩार शिे़ि।े

'दक्षऺण की हहॊदी वियोधी नीतत िास्ति भें दक्षऺण की नहीॊ, फजकक कुछ अॊगे्रजी बक्तों की नीतत है।' - के.सी. सायॊगभठ।

'हहॊदी ही बायत की याष्डबाषा हो सकती है।' - िी. कृष्णस्िाभी अय्मय।

'याष्डीम एकता की क़िी हहॊदी ही जो़ि सकती है।' - फारकृष्ण शभाा 'निीन'।

'विदेशी बाषा का ककसी स्ितॊत्र याष्ड के याजकाज औय भशऺा की बाषा होना साॊस्कृततक दासता है।' -

िाकटय चतेनॊग।

'हहॊदी को तुयॊत भशऺा का भाध्मभ फनाइमे।' - फेरयस ककमएि।

'अॊगे्रजी सय ऩय ढोना डूफ भयने के फयाफय है।' - सम्ऩूणाानॊद।

'एखन जतोगुभर बाषा बायते प्रचभरत आछे ताहाय भध्मे बाषा सिात्रइ प्रचभरत।' - केशिचॊद्र सेन।

'देश को एक सूत्र भें फाॉधे यखने के भरए एक बाषा की आिश्मकता है।' - सेठ गोविॊददास।

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'इस विशार प्रदेश के हय बाग भें भशक्षऺत-अभशक्षऺत, नागरयक औय ग्राभीण सबी हहॊदी को सभझते हैं।' - याहुर साॊकृत्मामन।

'सभस्त आमाािता मा ठेठ हहॊदसु्तान की याष्ड तथा भशष्ट बाषा हहॊदी मा हहॊदसु्तानी है।' -सय जाजा ग्रग्रमसान।

'भुजस्रभ शासन भें हहॊदी पायसी के साथ-साथ चरती यही ऩय कॊ ऩनी सयकाय ने एक ओय पायसी ऩय हाथ साप ककमा तो दसूयी ओय हहॊदी ऩय।' - चॊद्रफरी ऩाॊडमे।

'बायत की ऩयॊऩयागत याष्डबाषा हहॊदी है।' - नभरनविरोचन शभाा।

'जफ से हभने अऩनी बाषा का सभादय कयना छो़िा तबी से हभाया अऩभान औय अिनतत होने रगी।' - (याजा) याग्रधकायभण प्रसाद भसॊह।

'महद ऩऺऩात की दृवष्ट से न देखा जामे तो उदूा बी हहॊदी का ही एक रूऩ है।' - भशिनॊदन सहाम।

'प्रत्मेक नगय प्रत्मेक भोहकरे भें औय प्रत्मेक गाॉि भें एक ऩुस्तकारम होने की आिश्मकता है।' - (याजा) कीत्माानॊद भसॊह।

'अऩनी सयरता के कायण हहॊदी प्रिासी बाइमों की स्ित: याष्डबाषा हो गई।' - बिानीदमार सॊन्मासी।

'मह कैसे सॊबि हो सकता है कक अॊगे्रजी बाषा सभस्त बायत की भातबृाषा के सभान हो जामे?' -

चॊद्रशखेय भभश्र।

'साहहत्म की उन्नतत के भरए सबाओॊ औय ऩुस्तकारमों की अत्मॊत आिश्मकता है।' - भहाभहो. ऩॊ. सकरनायामण शभाा।

'जो साहहत्म केिर स्िप्नरोक की ओय रे जामे, िास्तविक जीिन को उऩकृत कयने भें असभथा हो, िह तनताॊत भहत्िहीन है।' - (डॉ.) काशीप्रसाद जामसिार।

'बायतीम एकता के रक्ष्म का साधन हहॊदी बाषा का प्रचाय है।' - टी. भाधियाि।

'हहॊदी हहॊद की, हहॊहदमों की बाषा है।' - य. या. हदिाकय।

'मह सॊदेह तनभूार है कक हहॊदीिारे उदूा का नाश चाहते हैं।' - याजेन्द्र प्रसाद।

'उदूा जफान ब्रजबाषा से तनकरी है।' - भुहम्भद हुसैन 'आजाद'।

'सभाज औय याष्ड की बािनाओॊ को ऩरयभाजजात कयने िारा साहहत्म ही सच्चा साहहत्म है।' -

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जनादानप्रसाद झा 'हिज'।

'भजहफ को मह भौका न भभरना चाहहए कक िह हभाये साहहजत्मक, साभाजजक, सबी ऺेत्रों भें टाॉग अ़िाए।' - याहुर साॊकृत्मामन।

'भशऺा के प्रसाय के भरए नागयी भरवऩ का सिात्र प्रचाय आिश्मक है।' - भशिप्रसाद भसतायेहहॊद।

'हभायी हहॊदी बाषा का साहहत्म ककसी बी दसूयी बायतीम बाषा से ककसी अॊश से कभ नहीॊ है।' - (यामफहादयु) याभयणविजम भसॊह।

'िही बाषा जीवित औय जाग्रत यह सकती है जो जनता का ठीक-ठीक प्रतततनग्रधत्ि कय सके।' - ऩीय भुहम्भद भूतनस।

'बायतेंद ुऔय हििेदी ने हहॊदी की ज़ि ऩातार तक ऩहॉुुचा दी है; उसे उखा़िने का जो दसु्साहस कयेगा िह तनश्चम ही बूकॊ ऩध्िस्त होगा।' - भशिऩूजन सहाम।

'चक्किै हदरी के अथक्क अकफय सोऊ, नयहय ऩारकी को आऩने कॉ धा कयै।' - फेनी कवि।

'मह तनविािाद है कक हहॊदओुॊ को उदूा बाषा से कबी िेष नहीॊ यहा।' - ब्रजनॊदन दास।

'देहात का वियरा ही कोई भुसरभान प्रचभरत उदूा बाषा के दस प्रततशत शब्दों को सभझ ऩाता है।'

- साॉिभरमा बफहायीरार िभाा।

'हहॊदी बाषा अऩनी अनेक धायाओॊ के साथ प्रशस्त ऺेत्र भें प्रखय गतत से प्रकाभशत हो यही है।' -

छविनाथ ऩाॊडमे।

'देिनागयी ध्ितनशास्त्र की दृवष्ट से अत्मॊत िैऻातनक भरवऩ है।' - यविशॊकय शुक्र।

'हभायी नागयी दतुनमा की सफसे अग्रधक िैऻातनक भरवऩ है।' - याहुर साॊकृत्मामन।

'नागयी प्रचाय देश उन्नतत का िाय है।' - गोऩाररार खत्री।

'साहहत्म का स्रोत जनता का जीिन है।' - गणेशशॊकय विद्याथी।

'अॊगे्रजी से बायत की यऺा नहीॊ हो सकती।' - ऩॊ. कृ. वऩकरमाय।

'उसी हदन भेया जीिन सपर होगा जजस हदन भैं साये बायतिाभसमों के साथ शुद्ध हहॊदी भें िातााराऩ करूॉ गा।' - शायदाचयण भभत्र।

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'हहॊदी के ऊऩय आघात ऩहुॉचाना हभाये प्राणधभा ऩय आघात ऩहुॉचाना है।' - जगन्नाथप्रसाद भभश्र।

'हहॊदी जाननेिारा व्मडक्त देश के ककसी कोने भें जाकय अऩना काभ चरा रेता है।' - देिव्रत शास्त्री।

'हहॊदी औय नागयी का प्रचाय तथा विकास कोई बी योक नहीॊ सकता'। - गोविन्दिकरब ऩॊत।

'बायत की सायी प्राॊतीम बाषाओॊ का दजाा सभान है।' - यविशॊकय शुक्र।

'ककसी साहहत्म की नकर ऩय कोई साहहत्म तैमाय नहीॊ होता।' - सूमाकाॊत बत्रऩाठी 'तनयारा'।

'हाय सयोज हहए है रसै भभ ऐसी गुनागयी नागयी होम।' - ठाकुय बत्रबुिननाथ भसॊह।

'बाषा ही से रृदमबाि जाना जाता है। शून्म ककॊ तु प्रत्मऺ हुआ सा हदखराता है।' - भाधि शुक्र।

'सॊस्कृत भाॊ, हहॊदी गहृहणी औय अॊगे्रजी नौकयानी है।' - डॉ. पादय काभभर फुकके।

'बाषा विचाय की ऩोशाक है।' - डॉ. जानसन।

'याभचरयत भानस हहॊदी साहहत्म का कोहनूय है।' - मशोदानॊदन अखौयी।

'साहहत्म के हय ऩथ ऩय हभाया कायिाॉ तेजी से फ़िता जा यहा है।' - याभिृऺ फेनीऩुयी।

'कवि सॊभेरन हहॊदी प्रचाय के फहुत उऩमोगी साधन हैं।' - श्रीनायामण चतुिेदी।

'हहॊदी ग्रचयकार से ऐसी बाषा यही है जजसने भात्र विदेशी होने के कायण ककसी शब्द का फहहष्काय नहीॊ ककमा।' - याजेंद्रप्रसाद।

'देिनागयी अऺयों का करात्भक सौंदमा नष्ट कयना कहाॉ की फुवद्धभानी है?' - भशिऩूजन सहाम।

'जजस देश को अऩनी बाषा औय अऩने साहहत्म के गौयि का अनुबि नहीॊ है, िह उन्नत नहीॊ हो सकता।' - देशयत्न डॉ. याजेन्द्रप्रसाद।

'कविता काभभतन बार भें हहॊदी बफॊदी रूऩ, प्रकट अग्रिन भें बई ब्रज के तनकट अनूऩ।' - याधाचयण गोस्िाभी।

'हहॊदी सभस्त आमाािता की बाषा है।' - शायदाचयण भभत्र।

'हहॊदी बायतीम सॊस्कृतत की आत्भा है।' - कभराऩतत बत्रऩाठी।

'भैं उदूा को हहॊदी की एक शैरी भात्र भानता।' - भनोयॊजन प्रसाद।

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'हहॊदी बाषा को बायतीम जनता तथा सॊऩूणा भानिता के भरमे फहुत फ़िा उत्तयदातमत्ि सॉबारना है।' - सुनीततकुभाय चाटुर्जमाा।

'नागयीप्रचारयणी सबा, काशी की हीयकजमॊती के ऩािन अिसय ऩय उऩजस्थत न हो सकने का भुझ ेफ़िा खेद है।' - (प्रो.) तान मुन ्शान।

'याष्डबाषा हहॊदी हो जाने ऩय बी हभाये व्मडक्तगत औय सािाजतनक जीिन ऩय विदेशी बाषा का प्रबुत्ि अत्मॊत गहहात फात है।' - कभराऩतत बत्रऩाठी।

'सभ्म सॊसाय के साये विषम हभाये साहहत्म भें आ जाने की ओय हभायी सतत ्चषे्टा यहनी चाहहए।' - श्रीधय ऩाठक।

'बायतिषा के भरए हहॊदी बाषा ही सिासाधयण की बाषा होने के उऩमुक्त है।' - शायदाचयण भभत्र।

'हहॊदी बाषा औय साहहत्म ने तो जन्भ से ही अऩने ऩैयों ऩय ख़िा होना सीखा है।' - धीयेन्द्र िभाा।

'जफ हभ अऩना जीिन, जननी हहॊदी, भातबृाषा हहॊदी के भरमे सभऩाण कय दे तफ हभ ककसी के प्रेभी कहे जा सकते हैं।' - सेठ गोविॊददास।

'कविता सुखी औय उत्तभ भनुष्मों के उत्तभ औय सुखभम ऺणों का उद्गाय है।' - शरेी।

'बाषा की सभस्मा का सभाधान साॊप्रदातमक दृवष्ट से कयना गरत है।' - रक्ष्भीनायामण 'सुधाॊशु'।

'बायतीम साहहत्म औय सॊस्कृतत को हहॊदी की देन फ़िी भहत्त्िऩूणा है।' - सम्ऩूणाानन्द।

'हहॊदी के ऩुयाने साहहत्म का ऩुनरुद्धाय प्रत्मेक साहहजत्मक का ऩुनीत कताव्म है।' - ऩीताम्फयदत्त फ़िथ्िार।

'ऩयभात्भा से प्राथाना है कक हहॊदी का भागा तनष्कॊ टक कयें।' - हयगोविॊद भसॊह।

'अहहॊदी बाषा-बाषी प्राॊतों के रोग बी सयरता से टूटी-पूटी हहॊदी फोरकय अऩना काभ चरा रेते हैं।'

- अनॊतशमनभ ्आमॊगाय।

'िह रृदम नहीॊ है ऩत्थय है, जजसभें स्िदेश का प्माय नहीॊ।' - भैग्रथरीशयण गुप्त।

'दाहहनी हो ऩूणा कयती है अभबराषा ऩूर्जम हहॊदी बाषा हॊसिाहहनी का अिताय है।' - अऻात।

'िास्तविक भहान ्व्मडक्त तीन फातों िाया जाना जाता है- मोजना भें उदायता, उसे ऩूया कयने भें

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भनुष्मता औय सपरता भें सॊमभ।' - बफस्भाका ।

'हहॊदसु्तान की बाषा हहॊदी है औय उसका दृश्मरूऩ मा उसकी भरवऩ सिागुणकायी नागयी ही है।' -

गोऩाररार खत्री।

'कविता भानिता की उच्चतभ अनुबूतत की अभबव्मडक्त है।' - हजायी प्रसाद हििेदी।

'हहॊदी ही के िाया अखखर बायत का याष्डनैततक ऐक्म सुदृ़ि हो सकता है।' - बूदेि भुखजी।

'हहॊदी का भशऺण बायत भें अतनिामा ही होगा। ' - सुनीततकुभाय चाटुर्जमाा।

'हहॊदी, नागयी औय याष्डीमता अन्मोन्माग्रश्रत है।' - नन्ददरुाये िाजऩेमी।

अकफय की सबा भें सूय के 'जसुदा फाय-फाय मह बाखै' ऩद ऩय फ़िा स्भयणीम विचाय हुआ था।'- याधाचयण गोस्िाभी।

'देशबाषा की उन्नतत से ही देशोन्नतत होती है।' - सुधाकय हििेदी।

'हहॊदी साहहत्म धभा-अथा-काभ-भोऺ इस चतु:ऩुरुषाथा का साधक अतएि जनोऩमोगी।' - (डॉ.) बगिानदास।

'हहॊदी उन सबी गुणों से अरॊकृत है जजनके फर ऩय िह विश्व की साहहजत्मक बाषाओॊ की अगरी शे्रणी भें सबासीन हो सकती है।' - भैग्रथरीशयण गुप्त।

'िाणी, सभ्मता औय देश की यऺा कयना सच्चा धभा मऻ है।' - ठाकुयदत्त शभाा।

'तनष्काभ कभा ही सिोत्तभ कामा है, जो ततृप्त प्रदाता है औय व्मडक्त औय सभाज की शडक्त फ़िाता है।' - ऩॊडडत सुधाकय ऩाॊडमे।

'अफ हहॊदी ही भाॉ बायती हो गई है- िह सफकी आयाध्म है, सफकी सॊऩवत्त है।' - यविशॊकय शुक्र।

'फच्चों को विदेशी भरवऩ की भशऺा देना उनको याष्ड के सच्च ेप्रेभ से िॊग्रचत कयना है।' - बिानीदमार सॊन्मासी।

'महाॉ (हदकरी) के खशुफमानों ने भताहहद (ग्रगनी चनुी) जफानों से अच्छे अच्छे रफ्ज तनकारे औय फाजे इफायतों औय अकपाज भें तसरूा प (ऩरयितान) कयके एक नई जिान ऩैदा की जजसका नाभ उदूा यखा है।' - दरयमामे रतापत।

'बाषा औय याष्ड भें फ़िा घतनष्ट सॊफॊध है।' - (याजा) याग्रधकायभण प्रसाद भसॊह।

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'अगय उदूािारों की नीतत हहॊदी के फहहष्काय की न होती तो आज भरवऩ के भसिा दोनों भें कोई बेद न ऩामा जाता।' - देशयत्न डॉ. याजेंद्रप्रसाद।

'हहॊदी बाषा की उन्नतत का अथा है याष्ड औय जातत की उन्नतत।' - याभिृऺ फेनीऩुयी।

'फाजायिारी फोरी विश्वविद्यारमों भें काभ नहीॊ दे सकती।' - सॊऩूणाानॊद।

'बायतेंद ुका साहहत्म भातभृॊहदय की अचाना का साहहत्म है।' - फदयीनाथ शभाा।

'तरिाय के फर से न कोई बाषा चराई जा सकती है न भभटाई।' - भशिऩूजन सहाम।

'अखखर बायत के ऩयस्ऩय व्मिहाय के भरमे ऐसी बाषा की आिश्मकता है जजसे जनता का अग्रधकतभ बाग ऩहरे से ही जानता सभझता है।' - भहात्भा गाॉधी।

'हहॊदी को याजबाषा कयने के फाद ऩूये ऩॊद्रह िषा तक अॊगे्रजी का प्रमोग कयना ऩीछे कदभ हटाना है।'- याजवषा ऩुरुषोत्तभदास टॊडन।

'बाषा याष्डीम शयीय की आत्भा है।' - स्िाभी बिानीदमार सॊन्मासी।

'हहॊदी के याष्डबाषा होने से जहाॉ हभें हषोकरास है, िहीॊ हभाया उत्तयदातमत्ि बी फहुत फ़ि गमा है।'- भथयुा प्रसाद दीक्षऺत।

'बायतिषा भें सबी विद्याएॉ सजम्भभरत ऩरयिाय के सभान ऩायस्ऩरयक सद्भाि रेकय यहती आई हैं।'-

यिीॊद्रनाथ ठाकुय।

'इततहास को देखते हुए ककसी को मह कहने का अग्रधकायी नहीॊ कक हहॊदी का साहहत्म जामसी के ऩहरे का नहीॊ भभरता।' - (डॉ.) काशीप्रसाद जामसिार।

'सॊप्रतत जजतनी बाषाएॊ बायत भें प्रचभरत हैं उनभें से हहॊदी बाषा प्राम: सिात्र व्मिरृत होती है।' - केशिचॊद्र सेन।

'हहॊदी ने याष्डबाषा के ऩद ऩय भसॊहानसारू़ि होने ऩय अऩने ऊऩय एक गौयिभम एिॊ गुरुतय उत्तयदातमत्ि भरमा है।' - गोविॊदफकरब ऩॊत।

'हहॊदी जजस हदन याजबाषा स्िीकृत की गई उसी हदन से साया याजकाज हहॊदी भें चर सकता था। ' -

सेठ गोविॊददास।

'हहॊदी बाषी प्रदेश की जनता से िोट रेना औय उनकी बाषा तथा साहहत्म को गाभरमाॉ देना कुछ

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नेताओॊ का दैतनक व्मिसाम है।' - (डॉ.) याभविरास शभाा।

'जफ एक फाय मह तनश्चम कय भरमा गमा कक सन ्१९६५ से सफ काभ हहॊदी भें होगा, तफ उसे अिश्म कामााजन्ित कयना चाहहए।' - सेठ गोविॊददास।

'साहहत्मसेिा औय धभासाधना ऩमाामिामी है।' - (भ. भ.) सत्मनायामण शभाा।

'जजसका भन चाहे िह हहॊदी बाषा से हभाया दयू का सॊफॊध फतामे, भगय हभ बफहायी तो हहॊदी को ही अऩनी बाषा, भातबृाषा भानते आए हैं।' - भशिनॊदन सहाम।

'उदूा का ढाॉचा हहॊदी है, रेककन सत्तय ऩचहत्तय पीसदी उधाय के शब्दों से उदूा दाॉ तक तॊग आ गए हैं।' - याहुर साॊकृत्मामन।

'भानस बिन भें आमाजन जजसकी उतायें आयती। बगिान बायतिषा भें गूॉजे हभायी बायती।' - भैग्रथरीशयण गुप्त।

'गद्य जीिनसॊग्राभ की बाषा है। इसभें फहुत कामा कयना है, सभम थो़िा है।' - सूमाकाॊत बत्रऩाठी 'तनयारा'।

'अॊगे्रजी हभें गूॉगा औय कूऩभॊडूक फना यही है।' - ब्रजबूषण ऩाॊडमे।

'राखों की सॊख्मा भें छात्रों की उस ऩरटन से क्मा राब जजनभें अॊगे्रजी भें एक प्राथानाऩत्र भरखने की बी ऺभता नहीॊ है।' - कॊ क।

'भैं याष्ड का प्रेभ, याष्ड के भबन्न-भबन्न रोगों का प्रेभ औय याष्डबाषा का प्रेभ, इसभें कुछ बी पका नहीॊ देखता।' - य. या. हदिाकय।

'देिनागयी भरवऩ की िैऻातनकता स्िमॊ भसद्ध है।' - भहािीय प्रसाद हििेदी।

'हहभारम से सतऩु़िा औय अॊफारा से ऩूखणामा तक पैरा हुआ प्रदेश हहॊदी का प्रकृत प्राॊत है।' - याहुर साॊकृत्मामन।

'ककसी याष्ड की याजबाषा िही बाषा हो सकती है जजसे उसके अग्रधकाग्रधक तनिासी सभझ सके।' -

(आचामा) चतुयसेन शास्त्री।

'साहहत्म के इततहास भें कार विबाजन के भरए तत्कारीन प्रिवृत्तमों को ही भानना न्मामसॊगत है।' - अॊफाप्रसाद सुभन।

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'हहॊदी बाषा हभाये भरमे ककसने फनामा? प्रकृतत ने। हभाये भरमे हहॊदी प्रकृततभसद्ध है।' - ऩॊ. ग्रगरयधय शभाा।

'हहॊदी बाषा उस सभुद्र जरयाभश की तयह है जजसभें अनेक नहदमाॉ भभरी हों।' - िासुदेिशयण अग्रिार।

'बाषा देश की एकता का प्रधान साधन है।' - (आचामा) चतुयसेन शास्त्री।

'क्ाॊतदशी होने के कायण ऋवष दमानॊद ने देशोन्नतत के भरमे हहॊदी बाषा को अऩनामा था।' -

विष्णुदेि ऩौद्दाय।

'सच्चा याष्डीम साहहत्म याष्डबाषा से उत्ऩन्न होता है।' - िाकटय चतेनॊग।

'हहॊदी के ऩौधे को हहॊद ूभुसरभान दोनों ने सीॊचकय फ़िा ककमा है।' - जहूयफख्श।

'ककसी रफ्ज के उदूा न होने से भुयाद है कक उदूा भें हुरूप की कभी फेशी से िह खयाद ऩय नहीॊ च़िा।' - सैमद इॊशा अकरा खाॉ।

'अॊगे्रजी का ऩद ग्रचयस्थामी कयना देश के भरमे रर्जजा की फात है' - सॊऩूणाानॊद।

'हहॊदी याष्डबाषा है, इसभरमे प्रत्मेक व्मडक्त को, प्रत्मेक बायतिासी को इसे सीखना चाहहए।' - यविशॊकय शुक्र।

'हहॊदी प्राॊतीम बाषा नहीॊ फजकक िह अॊत:प्राॊतीम याष्डीम बाषा है।' - छविनाथ ऩाॊडमे।

'साहहत्म को उच्च अिस्था ऩय रे जाना ही हभाया ऩयभ कताव्म है।' - ऩािाती देिी।

'विश्व की कोई बी भरवऩ अऩने िताभान रूऩ भें नागयी भरवऩ के सभान नहीॊ।' - चॊद्रफरी ऩाॊडमे।

'बाषा की एकता जातत की एकता को कामभ यखती है।' - याहुर साॊकृत्मामन।

'जजस याष्ड की जो बाषा है उसे हटाकय दसूये देश की बाषा को सायी जनता ऩय नहीॊ थोऩा जा सकता' - िासुदेिशयण अग्रिार।

'ऩयाधीनता की विजम से स्िाधीनता की ऩयाजम सहस्रगुना अच्छी है।' - अऻात।

'सभाज के अबाि भें आदभी की आदभभमत की ककऩना नहीॊ की जा सकती।' - ऩॊ. सुधाकय ऩाॊडमे।

'तुरसी, कफीय, नानक ने जो भरखा है, उसे भैं ऩ़िता हूॉ तो कोई भुजश्कर नहीॊ आती।' - भौराना

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भुहम्भद अरी।

'बाषा का तनभााण सेके्टरयमट भें नहीॊ होता, बाषा ग़िी जाती है जनता की जजह्वा ऩय।' - याभिृऺ फेनीऩुयी।

'हहॊदी बाषी ही एक ऐसी बाषा है जो सबी प्राॊतों की बाषा हो सकती है।' - ऩॊ. कृ. यॊगनाथ वऩकरमाय।

'जफ हभ हहॊदी की चचाा कयते हैं तो िह हहॊदी सॊस्कृतत का एक प्रतीक होती है।' - शाॊतानॊद नाथ।

'बायतीम धभा की है घोषणा घभॊड बयी, हहॊदी नहीॊ जाने उसे हहॊद ूनहीॊ जातनए।' - नाथयूाभ 'शॊकय'

शभाा।

'याजनीतत के ग्रचॊताऩूणा आिेग भें साहहत्म की प्रेयणा भशग्रथर नहीॊ होनी चाहहए।' - याजकुभाय िभाा।

'हहॊदी भें जो गुण है उनभें से एक मह है कक हहॊदी भदाानी जफान है।' - सुनीतत कुभाय चाटुर्जमाा।

'स्ऩधाा ही जीिन है, उसभें ऩीछे यहना जीिन की प्रगतत खोना है।' - तनयारा।

'कविता हभाये ऩरयऩूणा ऺणों की िाणी है।' - सुभभत्रानॊदन ऩॊत।

'बफना भातबृाषा की उन्नतत के देश का गौयि कदावऩ िवृद्ध को प्राप्त नहीॊ हो सकता।' - गोविॊद शास्त्री दगुिेकय।

'उदूा भरवऩ की अनुऩमोग्रगता, भ्राभकता औय कठोयता प्रभाखणत हो चकुी है।' - याभयणविजम भसॊह।

'याष्डबाषा याष्डीमता का भुख्म अॊश है।' - श्रीभती सौ. ग्रच. यभणम्भा देि।

'फानी हहॊदी बाषन की भहयानी, चॊद्र, सूय, तुरसी से जाभें बए सुकवि रासानी।' - ऩॊ. जगन्नाथ चतुिेदी।

'जम जम याष्डबाषा जनतन। जमतत जम जम गुण उजागय याष्डभॊगरकयतन।' - देिी प्रसाद गुप्त।

'हहॊदी हभायी हहॊद ूसॊस्कृतत की िाणी ही तो है।' - शाॊतानॊद नाथ।

'आज का रेखक विचायों औय बािों के इततहास की िह क़िी है जजसके ऩीछे शताजब्दमों की कड़िमाॉ जु़िी है।' - भाखनरार चतुिेदी।

'विऻान के फहुत से अॊगों का भूर हभाये ऩुयातन साहहत्म भें तनहहत है।' - सूमानायामण व्मास।

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'कोई कौभ अऩनी जफान के फगैय अच्छी तारीभ नहीॊ हाभसर कय सकती।' - सैमद अभीय अरी 'भीय'।

'हहॊदी औय उदूा भें झग़िने की फात ही नहीॊ है।' - ब्रजनॊदन सहाम।

'कविता रृदम की भुक्त दशा का शाजब्दक विधान है।' - याभचॊद्र शुक्र।

'हभायी याष्डबाषा का भुख्म उदे्दश्म याष्डीमता का दृ़ि तनभााण है।' - चॊद्रफरी ऩाॊडमे।

'जजस भशऺा से स्िाभबभान की िवृत्त जाग्रत नहीॊ होती िह भशऺा ककसी काभ की नहीॊ।' - भाधियाि सप्रे।

'कारोऩमोगी कामा न कय सकने ऩय भहाऩुरुष फन सकना सॊबि नहीॊ है।' - सू. च. धय।

'भैं दतुनमा की सफ बाषाओॊ की इर्जजत कयता हूॉ, ऩयन्तु भेये देश भें हहॊदी की इर्जजत न हो, मह भैं नहीॊ सह सकता।' - विनोफा बािे।

'आज का आविष्काय कर का साहहत्म है।' - भाखनरार चतुिेदी।

'बाषा के सिार भें भजहफ को दखर देने का कोई हक नहीॊ।' - याहुर साॊकृत्मामन।

'जफ तक सॊघ शडक्त उत्ऩन्न न होगी तफ तक प्राथाना भें कुछ जान नहीॊ हो सकती।' - भाधि याि सप्रे।

'हहॊदी विश्व की भहान बाषा है।' - याहुर साॊकृत्मामन।

'याष्डीम एकता के भरमे एक बाषा से कहीॊ फ़िकय आिश्मक एक भरवऩ का प्रचाय होना है।' -

ब्रजनॊदन सहाम।

'जो ऻान तुभने सॊऩाहदत ककमा है उसे वितरयत कयते यहो ओय सफको ऻानिान फनाकय छो़िो।' - सॊत याभदास।

'ऩाॉच भत उधय औय ऩाॉच भत इधय यहने से शे्रष्ठता नहीॊ आती।' - भाखनरार चतुिेदी।

'भैं भानती हूॉ कक हहॊदी प्रचाय से याष्ड का ऐक्म जजतना फ़ि सकता है िैसा फहुत कभ चीजों से फ़ि सकेगा।' - रीरािती भुॊशी।

'हहॊदी उदूा के नाभ को दयू कीजजए एक बाषा फनाइए। सफको इसके भरए तैमाय कीजजए।' - देिी

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प्रसाद गुप्त।

'साहहत्मकाय विश्वकभाा की अऩेऺा कहीॊ अग्रधक साभथ्माशारी है।' - ऩॊ. िागीश्वय जी।

'हहॊदी बाषा औय हहॊदी साहहत्म को सिाांगसुॊदय फनाना हभाया कत्ताव्म है।' - डॉ. याजेंद्रप्रसाद।

'हहॊदी साहहत्म की नकर ऩय कोई साहहत्म तैमाय नहीॊ होता।' - सूमा काॊत बत्रऩाठी 'तनयारा'।

'बाषा के उत्थान भें एक बाषा का होना आिश्मक है। इसभरमे हहॊदी सफकी साझा बाषा है।' - ऩॊ. कृ. यॊगनाथ वऩकरमाय।

'महद स्िदेशाभबभान सीखना है तो भछरी से जो स्िदेश (ऩानी) के भरमे त़िऩ त़िऩ कय जान दे देती है।' - सुबाषचॊद्र फसु।

'वऩछरी शताजब्दमों भें सॊसाय भें जो याजनीततक क्ाॊततमाॉ हुई, प्राम: उनका सूत्रसॊचारन उस देश के साहहत्मकायों ने ककमा है।' - ऩॊ. िागीश्वय जी।

'विजमी याष्डिाद अऩने आऩको दसूये देशों का शोषण कय जीवित यखना चाहता है।' - फी. सी. जोशी।

'हहॊदी हभाये देश औय बाषा की प्रबािशारी वियासत है।' - भाखनरार चतुिेदी।

'महद भरवऩ का फखे़िा हट जामे तो हहॊदी उदूा भें कोई वििाद ही न यहे।' - फजृनॊदन सहाम।

'बायत सयस्िती का भुख सॊस्कृत है।' - भ. भ. याभािताय शभाा।

'साधायण कथा कहातनमों तथा फारोऩमोगी कविता भें सॊस्कृत के साभाभसक शब्द राने से उनके भूर उदे्दश्म की सपरता भें फाधा ऩ़िती है।' - यघुियप्रसाद हििेदी।

'महद आऩ भुझ ेकुछ देना चाहती हों तो इस ऩाठशारा की भशऺा का भाध्मभ हभायी भातबृाषा कय दें।' - एक फ्ाॊसीसी फाभरका।

'तनभार चरयत्र ही भनुष्म का शृॊगाय है।' - ऩॊडडत सुधाकय ऩाॊडमे।

'हहॊदसु्तान को छो़िकय दसूये भध्म देशों भें ऐसा कोई अन्म देश नहीॊ है, जहाॉ कोई याष्डबाषा नहीॊ हो।' - सैमद अभीय अरी भीय।

'इततहास भें जो सत्म है िही अच्छा है औय जो असत्म है िही फुया है।' - जमचॊद्र विद्यारॊकाय।

'सयरता, फोधगम्मता औय शैरी की दृवष्ट से विश्व की बाषाओॊ भें हहॊदी भहानतभ स्थान यखती है।' -

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अभयनाथ झा।

'हहॊदी सयर बाषा है। इसे अनामास सीखकय रोग अऩना काभ तनकार रेते हैं।' - जगन्नाथ प्रसाद चतुिेदी।

'एक बाषा का प्रचाय यहने ऩय केिर इसी के सहाये, महद भरवऩगत भबन्नता न हो तो, अन्मान्म याष्ड गठन के उऩकयण आ जाने सॊबि हो सकते हैं।' - अमोध्माप्रसाद िभाा।

'ककसी बाषा की उन्नतत का ऩता उसभें प्रकाभशत हुई ऩुस्तकों की सॊख्मा तथा उनके विषम के भहत्ि से जाना जा सकता है।' - गॊगाप्रसाद अजननहोत्री।

'जीिन के छोटे से छोटे ऺेत्र भें हहॊदी अऩना दातमत्ि तनबाने भें सभथा है। ' - ऩुरुषोत्तभदास टॊडन।

'बफहाय भें ऐसा एक बी गाॉि नहीॊ है जहाॉ केिर याभामण ऩ़िने के भरमे दस-फीस भनुष्मों ने हहॊदी न सीखी हो।' - सकरनायामण ऩाॊडमे।

'सॊस्कृत की इशाअत (प्रचाय) का एक फ़िा पामदा मह होगा कक हभायी भुककी जफान (देशबाषा) िसीअ (व्माऩक) हो जामगी।' - भौरिी भहभूद अरी।

'सॊसाय भें देश के नाभ से बाषा को नाभ हदमा जाता है औय िही बाषा िहाॉ की याष्डबाषा कहराती है।' - तायाचॊद्र दफूे।

'सिासाधायण ऩय जजतना ऩद्य का प्रबाि ऩ़िता है उतना गद्य का नहीॊ।' - याजा कृत्मानॊद भसॊह।

'जो गुण साहहत्म की जीिनी शडक्त के प्रधान सहामक होते हैं उनभें रेखकों की विचायशीरता प्रधान है।' - नयोत्तभ व्मास।

'बाषा औय बाि का ऩरयितान सभाज की अिस्था औय आचाय विचाय से अग्रधक सॊफॊध यखता है।' -

फदयीनाथ बट्ट।

'साहहत्म ऩ़िने से भुख्म दो फातें तो अिश्म प्राप्त होती हैं, अथाात ्भन की शडक्तमों को विकास औय ऻान ऩाने की रारसा।' - बफहायीरार चौफे।

'देिनागयी औय फॊगरा भरवऩमों को साथ भभराकय देखना है।' - भन्नन हििेदी।

'है बव्म बायत ही हभायी भातबृूभभ हयी बयी। हहॊदी हभायी याष्डबाषा औय भरवऩ है नागयी।' - भैग्रथरीशयण गुप्त।

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'सॊस्कृत की वियासत हहॊदी को तो जन्भ से ही भभरी है।' - याहुर साॊकृत्मामन।

'कैसे तनज सोमे बाग को कोई सकता है जगा, जो तनज बाषा-अनुयाग का अॊकुय नहहॊ उय भें उगा।' - हरयऔध।

'हहॊदी भें हभ भरखें ऩ़िें , हहॊदी ही फोरें।' - ऩॊ. जगन्नाथप्रसाद चतुिेदी।

'जजस िस्तु की उऩज अग्रधक होती है उसभें से फहुत सा बाग पें क बी हदमा जाता है। ग्रॊथों के भरमे बी ऐसा ही हहसाफ है।' - ग्रगयजाकुभाय घोष।

'मह जो है कुयफान खदुा का, हहॊदी कये फमान सदा का।' - अऻात।

'क्मा सॊसाय भें कहीॊ का बी आऩ एक दृष्टाॊत उद्धृत कय सकते हैं जहाॉ फारकों की भशऺा विदेशी बाषाओॊ िाया होती हो।' - डॉ. श्माभसुॊदय दास।

'फॉगरा िणाभारा की जाॉच से भारूभ होता है कक देिनागयी भरवऩ से तनकरी है औय इसी का सीधा सादा रूऩ है।' - यभेशचॊद्र दत्त।

'िास्ति भें िेश, बाषा आहद के फदरने का ऩरयणाभ मह होता है कक आत्भगौयि नष्ट हो जाता है,

जजससे देश का जाततत्ि गुण भभट जाता है।' - सैमद अभीय अरी 'भीय'।

'दसूयों की फोरी की नकर कयना बाषा के फदरने का एक कायण है।' - ग्रगयीॊद्रभोहन भभत्र।

'सभारोचना ही साहहत्म भागा की सुॊदय स़िक है।' - भ. भ. ग्रगयधय शभाा चतुिेदी।

'नागयी िणाभारा के सभान सिाांगऩूणा औय िैऻातनक कोई दसूयी िणाभारा नहीॊ है।' - फाफू याि विष्णु ऩया़िकय।

'अन्म देश की बाषा ने हभाये देश के आचाय व्मिहाय ऩय कैसा फुया प्रबाि डारा है।' - अनाहदधन िॊद्योऩाध्माम।

'व्माकयण चाहे जजतना विशार फने ऩयॊतु बाषा का ऩूया-ऩूया सभाधान उसभें नहीॊ हो सकता।' - अनॊतयाभ बत्रऩाठी।

'स्िदेशप्रेभ, स्िधभाबडक्त औय स्िािरॊफन आहद ऐसे गुण हैं जो प्रत्मेक भनुष्म भें होने चाहहए।' -

याभजी रार शभाा।

'गुणिान 'खानखाना' सदृश प्रेभी हो गए 'यसखान' औय 'यसरीन' से हहॊदी प्रेभी हो गए।' - याम

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देिीप्रसाद।

'िैऻातनक विचायों के ऩारयबावषक शब्दों के भरमे, ककसी विषम के उच्च बािों के भरमे, सॊस्कृत साहहत्म की सहामता रेना कोई शभा की फात नहीॊ है।' - गणऩतत जानकीयाभ दफूे।

'हहॊदसु्तान के भरमे देिनागयी भरवऩ का ही व्मिहाय होना चाहहए, योभन भरवऩ का व्मिहाय महाॉ हो ही नहीॊ सकता।' - भहात्भा गाॉधी।

'अभबभान सौंदमा का कटाऺ है।' - अऻात।

'कवि का रृदम कोभर होता है।' - ग्रगरयजाकुभाय घोष।

'श्री याभामण औय भहाबायत बायत के ही नहीॊ ियन ्ऩथृ्िी बय के जैसे अभूकम भहाकाव्म हैं।' - शैरजाकुभाय घोष।

'हहॊदी ककसी के भभटाने से भभट नहीॊ सकती।' - चॊद्रफरी ऩाण्डमे।

'बाषा की उन्नतत का ऩता भुद्रणारमों से बी रग सकता है।' - गॊगाप्रसाद अजननहोत्री।

'ऩुस्तक की उऩमोग्रगता को ग्रचयस्थामी यखने के भरए उसे बािी सॊतानों के भरमे ऩथप्रदशाक फनाने के भरमे मह आिश्मक है कक ऩुस्तक के असरी रेखक का नाभ उस ऩय यहे।' - सत्मदेि ऩरयव्राजक।

'ख़िी फोरी का एक रूऩाॊतय उदूा है।' - फदयीनाथ बट्ट।

'बायतिषा भनुष्म जातत का गुरु है।' - विनमकुभाय सयकाय।

'हभायी बायत बायती की शैशिािस्था का रूऩ ब्राह्मी मा देििाणी है, उसकी ककशोयािस्था िैहदक बाषा औय सॊस्कृतत उसकी मौिनािस्था की सॊुुदय भनोहय छटा है।' - फदयीनायामण चौधयी 'प्रेभधन'।

'रृतॊत्री की तान ऩय नीयि गान गाने से न ककसी के प्रतत ककसी की अनुकम्ऩा जगती है औय न कोई ककसी का उऩकाय कयने ऩय ही उतारू होता है।' - याभचॊद्र शुक्र।

'तनज बाषा उन्नतत अहै, सफ उन्नतत को भूर।' - बायतेंद ूहरयश्चॊद्र।

'आमों की सफसे प्राचीन बाषा हहॊदी ही है औय इसभें तद्भि शब्द सबी बाषाओॊ से अग्रधक है।' -

िीम्स साहफ।

'क्मों न िह कपय यास्ते ऩय ठीक चरने से डडगे , हैं फहुत से योग जजसके एक ही हदर भें रगे।' - हरयऔध।

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'जफ तक साहहत्म की उन्नतत न होगी, तफ तक सॊगीत की उन्नतत नहीॊ हो सकती।' - विष्णु हदगॊफय।

'जो ऩ़िा-भरखा नहीॊ है - जो भशक्षऺत नहीॊ है िह ककसी बी काभ को बरी-बाॉतत नहीॊ कय सकता।' -

गोऩाररार खत्री।

'याष्डबाषा के बफना याष्ड गूॉगा है।' - भहात्भा गाॉधी।

'जजस प्रकाय फॊगार बाषा के िाया फॊगार भें एकता का ऩौधा प्रपुजकरत हुआ है उसी प्रकाय हहॊदी बाषा के साधायण बाषा होने से सभस्त बायतिाभसमों भें एकता तरु की कभरमाॉ अिश्म ही खखरेंगी।' - शायदाचयण भभत्र।

'इततहास स्िदेशाभबभान भसखाने का साधन है।' - भहात्भा गाॊधी।

'जो हदखा सके िही दशान शास्त्र है नहीॊ तो िह अॊधशास्त्र है।' - डॉ. बगिानादास।

'विदेशी रोगों का अनुकयण न ककमा जाम।' - बीभसेन शभाा।

'बायतिषा के भरमे देिनागयी साधायण भरवऩ हो सकती है औय हहॊदी बाषा ही सिासाधायण की बाषा होने के उऩमुक्त है।' - शायदाचयण भभत्र।

'अकफय का शाॊत यार्जम हभायी बाषा का भानो स्िणाभम मुग था।' - छोटूरार भभश्र।

'नाटक का जजतना ऊॉ चा दयजा है, उऩन्मास उससे सूत बय बी नीच ेनहीॊ है।' - गोऩारदास गहभयी।

'ककसी बी फहृत ्कोश भें साहहत्म की सफ शाखाओॊ के शब्द होने चाहहए।' - भहािीय प्रसाद हििेदी।

'जो कुछ बी नजय आता है िह जभीन औय आसभान की गोद भें उतना सुॊदय नहीॊ जजतना नजय भें है।' - 'तनयारा'।

'देि, जगदेि, देश जातत की सुखद प्मायी, जग भें गुणगयी सुनागयी हभायी है।' - 'चकोय'।

'भशऺा का भुख्म तात्ऩमा भानभसक उन्नतत है।' - ऩॊ. याभनायामण भभश्र।

'बायत के एक भसये से दसूये भसये तक हहॊदी बाषा कुछ न कुछ सिात्र सभझी जाती है।' - ऩॊ. कृ. यॊगनाथ वऩकरमाय।

'जाऩातनमों ने जजस ढॊग से विदेशी बाषाएॉ सीखकय अऩनी भातबृाषा को उन्नतत के भशखय ऩय

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ऩहुॉचामा है उसी प्रकाय हभें बी भातबृाषा का बक्त होना चाहहए।' - श्माभसुॊदय दास।

'विचायों का ऩरयऩक्ि होना बी उसी सभम सॊबि होता है, जफ भशऺा का भाध्मभ प्रकृततभसद्ध भातबृाषा हो।' - ऩॊ. ग्रगयधय शभाा।

'विऻान को विऻान तबी कह सकते हैं जफ िह शयीय, भन औय आत्भा की बूख भभटाने की ऩूयी ताकत यखता हो।' - भहात्भा गाॊधी।

'मह भहात्भा गाॉधी का प्रताऩ है, जजनकी भातबृाषा गुजयाती है ऩय हहॊदी को याष्डबाषा जानकय जो उसे अऩने प्रेभ से सीॊच यहे हैं।' - रक्ष्भण नायामण गदे।

'हहॊदी बाषा के भरमे भेया प्रेभ सफ हहॊदी प्रेभी जानते हैं।' - भहात्भा गाॊधी।

'सफ विषमों के गुण-दोष सफकी दृवष्ट भें झटऩट तो नहीॊ आ जाते।' - भ. भ. ग्रगरयधय शभाा चतुिेदी।

'ककसी देश भें ग्रॊथ फनने तक िैदेभशक बाषा भें भशऺा नहीॊ होती थी। देश बाषाओॊ भें भशऺा होने के कायण स्िमॊ ग्रॊथ फनते गए हैं।' - साहहत्माचामा याभािताय शभाा।

'जो बाषा साभतमक दसूयी बाषाओॊ से सहामता नहीॊ रेती िह फहुत कार तक जीवित नहीॊ यह सकती।' - ऩाॊडमे याभिताय शभाा।

'नागयीप्रचारयणी सबा के गुण बायी जजन तेयों देिनागयी प्रचाय करयदीनो है।' - नाथयूाभ शॊकय शभाा।

'जजतना औय जैसा ऻान विद्याग्रथामों को उनकी जन्भबाषा भें भशऺा देने से अकऩकार भें हो सकता है; उतना औय िैसा ऩयाई बाषा भें सुदीघा कार भें बी होना सॊबि नहीॊ है।' - घनश्माभ भसॊह।

'विदेशी बाषा भें भशऺा होने के कायण हभायी फुवद्ध बी विदेशी हो गई है।' - भाधियाि सप्रे।

'भैं भहायाष्डी हूॉ, ऩयॊतु हहॊदी के विषम भें भुझ ेउतना ही अभबभान है जजतना ककसी हहॊदी बाषी को हो सकता है।' - भाधियाि सप्रे।

'भनुष्म सदा अऩनी भातबृाषा भें ही विचाय कयता है। इसभरमे अऩनी बाषा सीखने भें जो सुगभता होती है दसूयी बाषा भें हभको िह सुगभता नहीॊ हो सकती।' - डॉ. भुकुन्दस्िरूऩ िभाा।

'हहॊदी बाषा का प्रश्न स्ियार्जम का प्रश्न है।' - भहात्भा गाॊधी।

'याष्डीमता का बाषा औय साहहत्म के साथ फहुत ही घतनष्ट औय गहया सॊफॊध है।' - डॉ. याजेन्द्र प्रसाद।

'महद हभ अॊगे्रजी दसूयी बाषा के सभान ऩ़िें तो हभाये ऻान की अग्रधक िवृद्ध हो सकती है।' -

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जगन्नाथप्रसाद चतुिेदी।

'स्ितॊत्रता की कोख से ही आरोचना का जन्भ है।' - भोहनरार भहतो विमोगी।

'मुग के साथ न चर सकने ऩय भहात्भाओॊ का भहत्त्ि बी म्रान हो उठता है।' - सु. च. धय।

'हहॊदी ऩय ना भायो ताना, सबा फतािे हहॊदी भाना।' - नूय भुहम्भद।

'आऩ जजस तयह फोरते हैं, फातचीत कयते हैं, उसी तयह भरखा बी कीजजए। बाषा फनािटी न होनी चाहहए।' - भहािीय प्रसाद हििेदी।

'हहॊदी बाषा की उन्नतत के बफना हभायी उन्नतत असम्बि है।' - ग्रगयधय शभाा।

'बाषा ही याष्ड का जीिन है।' - ऩुरुषोत्तभदास टॊडन।

'देह प्राण का र्जमों घतनष्ट सॊफॊध अग्रधकतय। है ततससे बी अग्रधक देशबाषा का गुरुतय।' - भाधि शुक्र।

'जफ हभ अऩना जीिन जननी हहॊदी, भातबृाषा हहॊदी के भरमे सभऩाण कय दें तफ हभ हहॊदी के प्रेभी कहे जा सकते हैं।' - गोविन्ददास।

'नागयी प्रचाय देश उन्नतत का िाय है।' - गोऩाररार खत्री।

'देश तथा जातत का उऩकाय उसके फारक तबी कय सकते हैं, जफ उन्हें उनकी बाषा िाया भशऺा भभरी हो।' - ऩॊ. ग्रगयधय शभाा।

'याष्डबाषा की साधना कोयी बािुकता नहीॊ है।' - जगन्नाथप्रसाद भभश्र।

'साहहत्म को स्िैय सॊचा कयने की इजाजत न ककसी मुग भें यही होगी न िताभान मुग भें भभर सकती है।' - भाखनरार चतुिेदी।

'अॊगे्रजी सीखकय जजन्होंने विभशष्टता प्राप्त की है, सिासाधायण के साथ उनके भत का भेर नहीॊ होता। हभाये देश भें सफसे फ़िकय जाततबेद िही है, शे्रखणमों भें ऩयस्ऩय अस्ऩशृ्मता इसी का नाभ है।' - यिीन्द्रनाथ ठाकुय।

'साहहत्म की सेिा बगिान का कामा है, आऩ काभ भें रग जाइए आऩको बगिान की सहामता प्राप्त होगी औय आऩके भनोयथ ऩरयऩूणा होंगे।' - चॊद्रशखेय भभश्र।

'सफ से जीवित यचना िह है जजसे ऩ़िने से प्रतीत हो कक रेखक ने अॊतय से सफ कुछ पूर सा

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प्रस्पुहटत ककमा है।' - शयच्चॊद।

'भसक्ख गुरुओॊ ने आऩातकार भें हहॊदी की यऺा के भरमे ही गुरुभुखी यची थी।' - सॊतयाभ शभाा।

'हहॊदी जैसी सयर बाषा दसूयी नहीॊ है।' - भौराना हसयत भोहानी।

'ऐसे आदभी आज बी हभाये देश भें भौजूद हैं जो सभझते हैं कक भशऺा को भातबृाषा के आसन ऩय बफठा देने से उसकी कीभत ही घट जामेगी।' - यिीन्द्रनाथ ठाकुय।

'रोकोऩकायी विषमों को आदय देने िारी निीन प्रथा का जस्थय हो जाना ही एक फहुत फ़िा उत्साहप्रद कामा है।' - भभश्रफॊध।ु

'हभाये साहहत्म को काभधेनु फनाना है।' - चॊद्रफरी ऩाॊडमे।

'बायत के विभबन्न प्रदेशों के फीच हहॊदी प्रचाय िाया एकता स्थावऩत कयने िारे सच्च ेबायत फॊध ुहैं।'

- अयविॊद।

'रृदम की कोई बाषा नहीॊ है, रृदम-रृदम से फातचीत कयता है।' - भहात्भा गाॊधी।

'भेया आग्रहऩूिाक कथन है कक अऩनी सायी भानभसक शडक्त हहन्दी के अध्ममन भें रगािें।' - विनोफा बािे।

'साहहजत्मक इस फात को कबी न बूरे कक एक ख्मार ही कक्मा का स्िाभी है, उसे फ़िाने, घटाने मा ठुकया देनेिारा।' - भाखनरार चतुिेदी।

'एभशमा के ककतने ही याष्ड आज मूयोऩीम याष्डों के चॊगुर से छूट गए हैं ऩय उनकी आग्रथाक दासता आज बी हटकी हुई है।' - िी. सी. जोशी।

'हहॊदी िाया साये बायत को एक सूत्र भें वऩयोमा जा सकता है।' - स्िाभी दमानॊद।

'इस ऩथ का उदे्दश्म नहीॊ है, श्राॊत बिन भें हटक यहना।' - जमशॊकय प्रसाद।

'विद्या अच्छे हदनों भें आबूषण है, विऩवत्त भें सहामक औय फु़िाऩे भें सॊग्रचत साभग्री है।' - अयस्तु।

'अग्रधक अनुबि, अग्रधक विऩवत्त सहना, औय अग्रधक अध्ममन, मे ही वििता के तीन स्तॊब हैं।' - डडजयामरी।

'जैस-ेजैसे हभाये देश भें याष्डीमता का बाि फ़िता जामेगा िैसे ही िैसे हहॊदी की याष्डीम सत्ता बी फ़ेिगी।' - श्रीभती रोकसुन्दयी याभन ्।

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'शब्दे भारयमा भय गमा शब्दे छो़िा याज। जे नय शब्द वऩछातनमा ताका सरयमा काज।' - कफीय।

'महद स्िदेशाभबभान सीखना है तो भछरी से जो स्िदेश (ऩानी) के भरमे त़िऩ-त़िऩकय जान दे देती है।' - सुबाषचन्द्र फसु।

'प्रभसवद्ध का बीतयी अथा मशविस्ताय नहीॊ, विषम ऩय अच्छी भसवद्ध ऩाना है।' - सूमाकाॊत बत्रऩाठी 'तनयारा'।

'सयस्िती से शे्रष्ठ कोई िैद्य नहीॊ औय उसकी साधना से फ़िकय कोई दिा नहीॊ है।' - एक जऩानी सूडक्त।

'सॊस्कृत प्राकृत से सॊफॊध विच्छेद कदावऩ शे्रमस्कय नहीॊ।' - मशदेानॊदन अखौयी।

'याष्डीम व्मिहाय भें हहॊदी को काभ भें राना देश की शीघ्र उन्नतत के भरमे आिश्मक है।' - भहात्भा गाॊधी।

'भशऺा का प्रचाय औय विद्या की उन्नतत इसभरमे अऩेक्षऺत है कक जजससे हभाये -'स्ित्ि' का यऺण हो।' - भाधियाि सप्रे।

'विधान बी स्माही का एक बफन्द ुग्रगयाकय बानमभरवऩ ऩय काभरभा च़िा देता है।' - जमशॊकय प्रसाद।

'जीवित बाषा फहती नदी है जजसकी धाया तनत्म एक ही भागा से प्रिाहहत नहीॊ होती।' - फाफूयाि विष्णु ऩया़िकय।

'िह रृदम नहीॊ है ऩत्थय है, जजसभें स्िदेश का प्माय नहीॊ।' - भैग्रथरीशयण गुप्त।

'हहन्दी उन सबी गुणों से अरॊकृत है जजनके फर ऩय िह विश्व की साहहजत्मक बाषाओॊ की अगरी शे्रणी भें सबासीन हो सकती है।' - भैग्रथरीशयण गुप्त।

'ऩयाधीनता की विजम से स्िाधीनता की ऩयाजम सहस्त्र गुना अच्छी है।' - अऻात।

'कराकाय अऩनी प्रिवृत्तमों से बी विशार हैं। उसकी बाियाभश अथाह औय अग्रचॊत्म है।' - भैजक्सभ गोकी।

'करा का सत्म जीिन की ऩरयग्रध भें सौन्दमा के भाध्मभ िाया व्मक्त अखॊड सत्म है।' - भहादेिी िभाा।

'ऺण प्रतत-ऺण जो निीन हदखाई ऩ़ि ेिही यभणीमता का उत्कृष्ट रूऩ है।' - भाघ।

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'प्रसन्नता न हभाये अॊदय है न फाहय ियन ्िह हभाया ईश्वय के साथ ऐक्म है।' - ऩास्कर।

'हहन्दी बाषा औय साहहत्म ने तो जन्भ से ही अऩने ऩैयों ऩय ख़िा होना सीखा है।' - धीयेन्द्र िभाा।

'साहहत्मकाय एक दीऩक के सभान है जो जरकय केिर दसूयों को ही प्रकाश देता है।' - अऻात।

'बफना भातबृाषा की उन्नतत के देश का गौयि कदावऩ िवृद्ध को प्राप्त नहीॊ हो सकता।' - गोविन्द शास्त्री दगुिेकय।

'विधाता कभाानुसाय सॊसाय का तनभााण कयता है ककन्तु साहहत्मकाय इस प्रकाय के फॊधनों से ऊऩय है।' - फागीश्वयजी।

'श्रद्धा भहत्ि की आनॊदऩूणा स्िीकृतत के साथ-साथ ऩूर्जम फुवद्ध का सॊचाय है।' - याभचॊद्र शुक्र।

'कविता सुखी औय उत्तभ भनुष्मों के उत्तभ औय सुखभम ऺणों का उद्गाय है।' - शरेी।

'बम ही ऩयाधीनता है, तनबामता ही स्ियार्जम है।' - प्रेभचॊद।

'िास्तविक भहान ्व्मडक्त तीन फातों िाया जाना जाता है-मोजना भें उदायता, उसे ऩूयी कयने भें भनुष्मता औय सपरता भें सॊमभ।' - बफस्भाका ।

'यभणीम अथा का प्रततऩादन कयने िारे शब्द का नाभ काव्म है।' - ऩॊडडतयाज जगन्नाथ।

'प्रत्मेक देश का साहहत्म िहाॉ की जनता की ग्रचत्तिवृत्त का सॊग्रचत प्रततबफॊफ होता है।' - याभचॊद्र शुक्र।

'अॊगे्रजी को बायतीम बाषा फनाने का मह अभबप्राम है कक हभ अऩने बायतीम अजस्तत्ि को बफककुर भभटा दें।' - ऩॊ. कृ. यॊगनाथ वऩकरमाय।

'अॊगे्रजी का भुखाऩेऺी यहना बायतीमों को ककसी प्रकाय से शोबा नहीॊ देता है।' - बास्कय गोविन्द धाणेकय।

'मह हभाया दबुाानम है कक हभायी भशऺा विदेशी बाषा भें होती है औय भातबृाषा भें नहीॊ होती।' - भाधियाि सप्रे।

'बाषा ही याष्ड का जीिन है।' - ऩुरुषोत्तभदास टॊडन।

'कविता भानिता की उच्चतभ अनुबूतत की अभबव्मडक्त है।' - हजायी प्रसाद हििेदी।

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'हहॊदी स्िमॊ अऩनी ताकत से फ़ेिगी।' - ऩॊ. नेहरू।

'बाषा विचाय की ऩोशाक है।' - डॉ. जोनसन।

'हभायी देिनागयी इस देश की ही नहीॊ सभस्त सॊसाय की भरवऩमों भें सफसे अग्रधक िैऻातनक है।' -

सेठ गोविन्ददास।

'अॊगे्रजी के भामा भोह से हभाया आत्भविश्वास ही नष्ट नहीॊ हुआ है, फजकक हभाया याष्डीम स्िाभबभान बी ऩददभरत हुआ है।' - रक्ष्भीनायामण भसॊह 'सुधाॊशु'।

'आइए हभ आऩ एकभत हो कोई ऐसा उऩाम कयें जजससे याष्डबाषा का प्रचाय घय-घय हो जामे औय याष्ड का कोई बी कोना अछूता न यहे।' - चन्द्रफरी ऩाॊडमे।

'जैसे जन्भबूभभ जगदम्फा का स्िरूऩ है िैसे ही भातबृाषा बी जगदम्फा का स्िरूऩ है।' - गोविन्द शास्त्री दगुिेकय।

'हहॊदी औय उदूा की ज़ि एक है, रूऩयेखा एक है औय दोनों को अगय हभ चाहें तो एक फना सकते हैं।' - डॉ. याजेन्द्र प्रसाद।

'हहॊदी आज साहहत्म के विचाय से रूह़िमों से फहुत आगे है। विश्वसाहहत्म भें ही जानेिारी यचनाएॉ उसभें हैं।' - सूमाकाॊत बत्रऩाठी 'तनयारा'।

'बायत की यऺा तबी हो सकती है जफ इसके साहहत्म, इसकी सभ्मता तथा इसके आदशों की यऺा हो।' - ऩॊ. कृ. यॊगनाथ वऩकरमाय।

'हहॊदी सॊस्कृत की फेहटमों भें सफसे अच्छी औय भशयोभखण है।' - ग्रग्रमसान।

'भैं नहीॊ सभझता, सात सभुन्दय ऩाय की अॊगे्रजी का इतना अग्रधकाय महाॉ कैसे हो गमा।' - भहात्भा गाॊधी।

'भेये भरमे हहन्दी का प्रश्न स्ियार्जम का प्रश्न है।' - याजवषा ऩुरुषोत्तभदास टण्डन।

'सॊस्कृत को छो़िकय आज बी ककसी बी बायतीम बाषा का िाङ्मम विस्ताय मा भौभरकता भें हहन्दी के आगे नहीॊ जाता।' - डॉ. सम्ऩूणाानन्द।

'उदूा औय हहॊदी दोनों को भभरा दो। अरग-अरग नाभ नहीॊ होना चाहहए।' - भौराना भुहम्भद अरी।

'याष्डबाषा के विषम भें मह फात ध्मान भें यखनी होगी कक मह याष्ड के सफ प्रान्तों की सभान औय

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स्िाबाविक याष्डबाषा है।' - रक्ष्भण नायामण गदे।

'प्रसन्नता न हभाये अॊदय है न फाहय ियन ्िह हभाया ईश्वय के साथ ऐक्म है।' - ऩास्कर।

'विदेशी बाषा के शब्द, उसके बाि तथा दृष्टाॊत हभाये रृदम ऩय िह प्रबाि नहीॊ डार सकते जो भातबृाषा के ग्रचयऩरयग्रचत तथा रृदमग्राही िाक्म।' - भन्नन हििेदी।

'जातीम बाि हभायी अऩनी बाषा की ओय झुकता है।' - शायदाचयण भभत्र।

'हहॊदी अऩनी बूभभ की अग्रधष्ठात्री है।' - याहुर साॊकृत्मामन।

'साया शयीय अऩना, योभ-योभ अऩने, यॊग औय यक्त अऩना, अॊग प्रत्मॊग अऩन,े ककन्तु जुफान दसूये की, मह कहाॉ की सभ्मता औय कहाॉ की भनुष्मता है।' - यणिीय भसॊह जी।

'िाणी, सभ्मता औय देश की यऺा कयना सच्चा मऻ है।' - ठाकुयदत्त शभाा।

'हहन्दी व्माऩकता भें अहितीम है।' - अजम्फका प्रसाद िाजऩेमी।

'हभायी याष्डबाषा की ऩािन गॊगा भें देशी औय विदेशी सबी प्रकाय के शब्द भभरजुरकय एक हो जामेंगे।' - डॉ. याजेन्द्र प्रसाद।

'नागयी की िणाभारा है विशुद्ध भहान, सयर सुन्दय सीखने भें सुगभ अतत सुखदान।' - भभश्रफॊध।ु

'साहहत्म ही हभाया जीिन है।' - डॉ. बगिानदास।

'भनुष्म सदा अऩनी बातबृाषा भें ही विचाय कयता है।' - भुकुन्दस्िरूऩ िभाा।

'बफना बाषा की जातत नहीॊ शोबा ऩाती है। औय देश की भामाादा बी घट जाती है।' - भाधि शुक्र।

'हहॊदी औय उदूा एक ही बाषा के दो रूऩ हैं औय दोनों रूऩों भें फहुत साहहत्म है।' - अॊबफका प्रसाद िाजऩेमी।

'हभ हहन्दी िारों के रृदम भें ककसी सम्प्रदाम मा ककसी बाषा से यॊचभात्र बी ईष्माा, िेष मा घणृा नहीॊ है।' - भशिऩूजन सहाम।

'बायत के विभबन्न प्रदेशों के फीच हहन्दी प्रचाय िाया एकता स्थावऩत कयने िारे सच्च ेबायत फॊध ुहैं।' - अयविॊद।

'याष्डीम एकता के भरमे हभें प्राॊतीमता की बािना त्मागकय सबी प्राॊतीम बाषाओॊ के भरए एक भरवऩ

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देिनागयी अऩना रेनी चाहहमे।' - शायदाचयण भभत्र (जजस्टस)।

'सभूच ेयाष्ड को एकताफद्ध औय दृ़ि कयने के भरए हहन्द बाषी जातत की एकता आिश्मक है।' - याभविरास शभाा।

'हहन्दी को याष्डबाषा फनने के हेतु हुए अनुष्ठान को भैं सॊस्कृतत का याजसूम मऻ सभझता हूॉ।' - आचामा क्षऺततभोहन सेन।

'हहन्दी का बविष्म उर्जर्जिर है, इसभें कोई सॊदेह नहीॊ।' - अनॊत गोऩार शिे़ि।े

'अयफी भरवऩ बायतीम भरवऩ होने मोनम नहीॊ।' - सैमदअरी बफरग्राभी।

'हहन्दी को ही याजबाषा का आसन देना चाहहए।' - शचीॊद्रनाथ फख्शी।

'अॊतयप्राॊतीम व्मिहाय भें हभें हहन्दी का प्रमोग तुयॊत शुरू कय देना चाहहए।' - य. या. हदिाकय।

'हहन्दी का शासकीम प्रशासकीम ऺेत्रों से प्रचाय न ककमा गमा तो बविष्म अॊधकायभम हो सकता है।' - विनमभोहन शभाा।

'अॊगे्रजी इस देश के भरए अभबशाऩ है, मह हय सार हभाये साभने प्रकट होता है, कपय बी उसे हभ ऩूतना न भानकय चाभुण्डभहदानी दगुाा भान यहे हैं।' - अिनीॊद्र कुभाय विद्यारॊकाय।

'हहन्दी को याष्डबाषा फनाने भें प्राॊतीम बाषाओॊ को हातन नहीॊ ियन ्राब होगा।' - अनॊतशमनभ ्आमॊगाय।

'सॊस्कृत के अऩरयभभत कोश से हहन्दी शब्दों की सफ कहठनाइमाॉ सयरता से हर कय रेगी।' - याजवषा ऩुरुषोत्तभ दास टॊडन।

'(अॊगे्रजी ने) हभायी ऩयम्ऩयाएॉ तछन्न-भबन्न कयके, हभें जॊगरी फना देने का बयसक प्रमत्न ककमा।' - अभतृरार नागय।