जल संसाधन प्रबन्धन मेंसम्पोषित...

16
KCG-Portal of Journals 1 | Page Continuous issue-23 | August – September 2016 जल संसाधन बधन म सपोषित पारपरक लोक ान-षिान की भ मका (जनजाती सम दाय के सदभभ म एक अययन) जल संसाधन बंधन के संदभभ म जनजातत सम दाय की लोक स झब .... "जल ही जीवन है"- हमारे ऋषि म नय ने उस समय भी जल की महतता को वीकार कया था जब हमारे पास पीने योय ग णवताय त जल जनसंया के माण म च र माा म उपलध था और हमारे जल ोत काफी सम ध थे। तब उहने जल के षववेकप ण उपयोग व जल ोत के संरण व संवधणन को लेकर कई नीनत ननयम बनाए और उसे जीवनचयाण के साथ धमण और आचरण के ऱप म जोडा तथा मन को उसके नत संवेदनशील बनाने की मजब त नींव रखी। हमारे प वणज ने इन धामणक नतमान को अपनी संक नत का अभन अंग बना लया और इस तरह से क नत की इस अय धरोहर के संरण की परपरा पीढी दर पीढी सहजता से आगे बढती रही। इन संसाधन का उपयोग मानव एक ऋण के ऱप म करता था अथाणत् क नत से अपनी ब नयादी जऱरत की संत ि हेत जतना लेता था उसम संयम व मयाणदा का षववेक रखता था, समाज के अय लोग के हहत का भी समानता के साथ याल रखता था तथा क नत को उतना वापस लौिाने का यास करता था। इस यवथा के परणाम वऱप क नत का संत लन कायम था। अय शद म हम कह क थानीय पररथनत के अऱप मानव ने जीवन जीने कअपनी अपनी पधनतयां षवकसत कर ली थीं। जहा जैसे संसाधन वहा तदान ऱप जीवन यापन कयवथाओं का षवकास। यथा- रेगगतान म पानी कम होता था तो वहा लोग ने उस तरह के वातावरण म क नत के अऱप अपने को ढाल लया था आजीषवका के साधन ज िने हेत नत के संसाधन के उपयोग की बात हो या कफर जीवन के लए उनके उपयोग की। आज भौनतकवाहदता, आध नकता एवं तथाकगथत षवकास की दौड म संसाधन के उपयोग का वऱप बदला है जसने थानीय पयाणवरण को ही नहीं अषपत वैवक पयाणवरण को भी द षित कर हदया है। आज के तथाकगथत सय समाज ने जीवन काथमकता के नतमान को बदल कर रख हदया। हम क नत पर षवजय पाने की लालसा मन म पाल कर नत की धारा को वाभाषवकता के षवरध ले ले जाने की हहमाकत करने लगे और और अपकालीन आगथणक उपादेयता की कसौिी पर उसके नतफल को रखकर ख श होने लगे। अंतहीन अगधकागधक पाने की अनत महवाकांा म हम उस डाल को ही कािने म उमत हो चले जस पर हम बैठे थे और जस पर हमारा वज द हिका आ था। पानी हमने संसाधन की जगह मा एक साधन मान लया। और उसका बेहताशा शोिण ककया। यहद हम आचायण षवनोबा भावे के लफं गा पैसे का अनथणकारण के अभगम के आधार पर इसका षववलेिण कर तो हम पायगे क संसाधन शद म "ी" नहहत है जसम वातषवक ख है जबकक साधन के ऱप म वहा मा धन है जसका पररमाण षवत त हो सकता है कत उसम ख-शांनत नहीं हो सकती यकक इस किया म सभी क कडाव त के साथ इन संसाधन का ि र ननकंदन

Transcript of जल संसाधन प्रबन्धन मेंसम्पोषित...

Page 1: जल संसाधन प्रबन्धन मेंसम्पोषित पारम्पररक लोक ज्ञान …kcgjournal.org/kcg/wp-content/uploads/SocialScience... ·

KCG-Portal of Journals

1 | P a g e

Continuous issue-23 | August – September 2016

जल संसाधन प्रबन्धन में सम्पोषित पारम्पररक लोक ज्ञान-षिज्ञान की भमूमका

(जनजाती समुदाय के सन्दभभ में एक अध्ययन)

जल संसाधन प्रबंधन के संदभभ में जनजातत समुदाय की लोक सूझबूझ....

"जल ही जीवन है"- हमारे ऋषि मुननयों ने उस समय भी जल की महत्तता को स्वीकार ककया था जब हमारे पास पीने योग्य गुणवत्तायुत जल जनसखं्या के प्रमाण में प्रचरु मात्रा में उपलब्ध था और हमारे जल स्रोत काफी समदृ्ध थे। तब उन्होंने जल के षववेकपूणण उपयोग व जल स्रोतों के संरक्षण व संवधणन को लेकर कई नीनत ननयम बनाए और उसे जीवनचयाण के साथ धमण और आचरण के रूप में जोडा तथा मनुष्य को उसके प्रनत संवेदनशील बनाने की मजबूत नींव रखी। हमारे पूवणजों ने इन धार्मणक प्रनतमानों को अपनी संस्कृनत का अर्भन्न अंग बना र्लया और इस तरह से प्रकृनत की इस अक्षय धरोहर के संरक्षण की परम्परा पीढी दर पीढी सहजता से आगे बढती रही। इन संसाधनों का उपयोग मानव एक ऋण के रूप में करता था अथाणत ् प्रकृनत से अपनी बुननयादी जरूरतों की संतुष्ष्ि हेत ु ष्जतना लेता था उसमें संयम व मयाणदा का षववेक रखता था, समाज के अन्य लोगों के हहतों का भी समानता के साथ ख्याल रखता था तथा प्रकृनत को उतना वापस लौिाने का प्रयास करता था। इस व्यवस्था के पररणाम स्वरूप प्रकृनत का संतुलन कायम था। अन्य शब्दों में हम कहें कक स्थानीय पररष्स्थनत के अनुरूप मानव ने जीवन जीने की अपनी अपनी पद्धनतयां षवकर्सत कर ली थीं। जहााँ जैसे संसाधन वहााँ तदानुरूप जीवन यापन की व्यवस्थाओं का षवकास। यथा- रेगगस्तान में पानी कम होता था तो वहााँ लोगों ने उस तरह के वातावरण में प्रकृनत के अनुरूप अपने को ढाल र्लया था आजीषवका के साधन जुिाने हेतु प्रकृनत के संसाधनों के उपयोग की बात हो या कफर जीवन के र्लए उनके उपयोग की। आज भौनतकवाहदता, आधनुनकता एवं तथाकगथत षवकास की दौड में संसाधनों के उपयोग का स्वरूप बदला है ष्जसने स्थानीय पयाणवरण को ही नहीं अषपतु वैष्ववक पयाणवरण को भी प्रदषूित कर हदया है। आज के तथाकगथत सभ्य समाज ने जीवन की प्राथर्मकता के प्रनतमानों को बदल कर रख हदया। हम प्रकृनत पर षवजय पाने की लालसा मन में पाल कर प्रकृनत की धारा को स्वाभाषवकता के षवरुद्ध ले ले जाने की हहमाकत करने लगे और और अल्पकालीन आगथणक उपादेयता की कसौिी पर उसके प्रनतफल को रखकर खशु होने लगे। अतंहीन अगधकागधक पाने की अनत महत्वाकांक्षा में हम उस डाल को ही कािने में उन्मत्त हो चले ष्जस पर हम बैठे थे और ष्जस पर हमारा वजूद हिका हुआ था। पानी हमने संसाधन की जगह मात्र एक साधन मान र्लया। और उसका बेहताशा शोिण ककया। यहद हम आचायण षवनोबा भावे के लफंगा पैसे का अनथणकारण के अर्भगम के आधार पर इसका षववलेिण करें तो हम पायेंगे कक संसाधन शब्द में "श्री" ननहहत है ष्जसमें वास्तषवक सुख है जबकक साधन के रूप में वहााँ मात्र धन है ष्जसका पररमाण षवस्ततृ हो सकता है ककन्तु उसमें सुख-शांनत नहीं हो सकती क्योंकक इस प्रकिया में सभी कें कडावषृ्त्त के साथ इन संसाधनों का िूर ननकंदन

Page 2: जल संसाधन प्रबन्धन मेंसम्पोषित पारम्पररक लोक ज्ञान …kcgjournal.org/kcg/wp-content/uploads/SocialScience... ·

KCG-Portal of Journals

2 | P a g e

करने में प्रवतृ्त हो जाते है। एक प्रेरक कहानी याद आती है- एक महात्मा के दो र्शष्य शाम को उनके परै दबा रहे थे एक एक पैर दोनों के हाथ में था। महात्माजी आराम पाने हेतु स्वाभाषवक रूप से एक पैर दसूरे पैर पर रख र्लया। ककन्तु मूखण र्शष्य सही समझ के अभाव में दसूरे से झगड बैठे कक तुम्हारा वाला पैर मेरे वाले पैर के ऊपर कैसे आया। षववाद बढने पर पास में पडा एक ने महात्माजी के उस पैर पर मार हदया ष्जसे पहले वाला र्शष्य दबा रहा था और जो दसूरे वाले पैर पर रख गया था। ककन्तु अब पहले वाले र्शष्य ने भी उसी भािा में प्रयुत्तर हदया। और जीतने की कवायद में यह िम बढने लगा, गुरू की चीख भी इन दषु्िों के झगड ेमें दब गई और बरुी तरह से घायल हो गए उनके पैर। ऐसा ही हुआ हमारी प्रकृनत रूपी मााँ के साथ तथा संसाधन रूपी उसके अर्भन्न अगंों के साथ। चार जमात पढ चले इस समाज को ऐसी अधंी होड का राही बना हदया है ष्जसका कोई छोर नजर नहीं आ रहा है बस हदख रहा है ककसी न ककसी रूप में इन संसाधनों का अतं और षवनाश। हर कोई दसूरे स ेअगधक मात्रा में उसका शोिण करन ेमें जुिा हुआ है। मजे की बात तो यह है कक वह अपने आप को अगधक चतुर, होर्शयार व प्रोफेशनल र्सद्ध करने पर तुला है जो ज्यादा से ज्यादा उपयोग कर भौनतक सम्पदा एकत्र कर पा रहा है। बरसात के जल को संग्रह करने की बात हो या भू-गभण जल के उपयोग की या भूगभण जल प्रवाह के अषवरल संचालन की। लोग आज ऐसी िेक्नोलोजी को षवकर्सत करने में लगे हैं ष्जससे कम समय में अगधकागधक मात्रा में संसाधनों का उपयोग ककया जा सके। षवकास के नाम पर आधनुनकता की अधंी दौड व अतंहीन लालच के चलते हमने जीवन के षवर्भन्न क्षेत्रों में जल संसाधन का न र्सफण बेहताशा उपयोग ककया है अषपतु जाने-अनजाने इन स्रोतों को प्रदषूित भी ककया। ये स्रोत व संसाधन उपेक्षा व उदासीनता के चलते क्षत-षवक्षत होते रहे। तथाकगथत सभ्य और समदृ्ध कहलाने का दंभ भरने वाले लोग यह भ्रम पाल बैठे हैं कक संसाधनो का महत्तम ही बेहतर प्रबंध है और इसके माध्यम से ही आगथणक समषृद्ध ही हार्सल की जा सकती है। जबकक इसी गलती का खार्मयाजा आज हम सब उठा रहे है ग्लोबल वॉर्मिंग के रुप में। आगथणक रूप से समदृ्ध मुठ्ठीभर समुदाय तो इस लफंगे पैसे के बल पर इन संसाधनों का मार्लक बन बैठा है जैसे कक इनके पूवणजों ने ही इन संसाधनों का ननमाणण ककया हो। न उसे वतणमान के बहुजन समाज के हहतों की परवाह है ओर न ही भावी पीढी के हहतों की जो सम्पोषित व स्थायी षवकास की बुननयाद को मजबूत करने के र्लए अषपरहायण था।

ऐसे में संशोधक की नजर उस समुदाय पर जाकर हिक गई जो प्रकृनत के अत्यन्त ननकि है ष्जसने अपने अनुभव व पारम्पररक ज्ञान के बल पर ऐसी समदृ्ध परम्पराएं षवकर्सत की हैं ष्जनमें प्रकृनत के घिकों का अष्स्तत्व संरक्षक्षत होता है। प्रबऩ्धन के वास्तषवक अर्भगम को साकार करती ये व्यवस्थाऐं भले ही षपछडपेन का प्रतीक मानी जाती हो ककन्तु जब इन्हें संवेदनशीलता की भावना से जोडकर ननहारा जाता है तो इसमें प्रकृनत सभी घिकों के सह अष्स्तत्व की सुवास महसूस होने लगती है। हमारे पूवणज पानी के संग्रह व उपयोग की व्यवस्थाओं को लेकर बहुत ही जागतृ व कुशल थे। उन्होंने स्थानीय जरूरतों के अनुरूप वतणमान व भषवष्य का ध्यान रखकर तालाब, बाबडी और कुआ, खेत तलाब आहद बड ेही वैज्ञाननक तरीके से वतणमान व भावी जरूरतों का षवचार कर, प्रकृनत के स्वाभाषवक प्रवाह के अनुरूप ननर्मणत ककए ष्जसके चलते स्थानीय समुदाय व जीवसषृ्ष्ि के र्लए अकाल जैसी पररष्स्थनतयों में भी पानी का अभाव नहीं रहता था। राजस्थान के जोहड हों या कच्छ के हमीरसर तलाब, रानी की बाबडी, अडालज की बाबडी आहद इस सूझबूझ के अनुपम उदाहरण कहे जा सकते हैं। उनका जलस्राव षवस्तार से बस्ती तक पानी को लाने का प्रदिूण मुक्त तरीका आज भी हमें सोचने को षववश कर देता है कक हमने इस षवरासत को

Page 3: जल संसाधन प्रबन्धन मेंसम्पोषित पारम्पररक लोक ज्ञान …kcgjournal.org/kcg/wp-content/uploads/SocialScience... ·

KCG-Portal of Journals

3 | P a g e

संभाल कर क्यों नहीं रखा? जमीन के पेिे में कहााँ पानी र्मलेगा और कहााँ नहीं, कहााँ पानी हिक सकेगा कहााँ नहीं इसकी ज्ञान उन्हें अनुभव से ही प्राप्त हुआ था जो पीहढयों को जाने अनजाने हस्ताष्न्तरत हुआ। प्रगनत के इस दौर में यह ज्ञान र्सर्मि सा गया और इसकी जगह अत्याधनुनक मशीनों ने ले ली। तब भी समस्या यह बनी रही कक जल संसाधन प्रबंधन हेतु जो ढांचा ननर्मणत ककया जा रहा है उसे कैसे संचार्लत अवस्था में रखा जाय? और इस हदशा में लोक भागीदारी आधाररत प्रयासों की जरूरतें महसूस की गईं। यह देखा गया कक स्थानीय लोगों के द्वारा खोजे गये स्वस्थ व स्वच्छ पेयजल स्रोत आज भी कारगर है, उपयोग में आ रहे हैं जबकक सरकारी प्रयासों से उसी षवस्तार में अपेक्षक्षत पररणाम नहीं र्मल पाये हैं। यह ष्स्थनत जल संसाधन के प्रबंधन में लोक ज्ञान-षवज्ञान की भूर्मका को समझने की प्रेरणा देती है।

आहदवासी समुदाय की व्यवस्थाएं...एक नजर में आहदवासी समुदाय की जीवन शैली सामान्य तौर पर अषपरग्रह की पोिक रही है संचय की आग्राही नहीं। संसाधनो के उपयोग व उपभोग वषृ्त्त के संदभण में यह कहा जा सकता है कक दधू का खोया बनाती है भैंस का नहीं। अथाणत ्यह पररमाण इतना कम होता है कक दोहन के पवचात वे पुनः ररचाजण हो जाते हैं और उनका अष्स्तत्व बना रहता है। अर्शक्षक्षत व दीन-हीन एवं बेचारगी के रुप में प्रक्षेषपत करके ष्जस जनजानत समुदाय की षवकास प्रकिया में उपेक्षा की जाती रही है उसके पास आज भी अपने तरीके से जीने की सुसंस्कृत एवं समदृ्ध जीवन शैली है भले ही वह खेती हो या भ-ूजल संसाधन प्रबन्ध। गरीबी और शोिण स ेग्रर्सत प्रकृनत के इन सहोदरों के पास सामाष्जक समरसता, पारस्पररक सहयोग, सहकार,सहयोग एव ंअपनेपन जैसे मानवीय मूल्यों से पररपूणण परम्परागत ज्ञान षवज्ञान का वह अमूल्य व असीम भंडार है ष्जसमें जीवन यापन के सम्पोषित आयाम तथा सषृ्ष्ि के समस्त तत्वों का अष्स्तत्व ननहहत हैं। ये परम्पराएं न केवल वेश-पोशाक, मंहदर, देवलो और मेले त्योहारों तक सीर्मत नहीं हैं अषपत ुयह जीषवत है लोगो की हदनचयाण मे, उनकी खेती बाडी, पशुपालन, चरागाह और जल, वन, भर्म संसाधन की सरुक्षा में सूझ बूझ और ज्ञान के अपार भंडार भंडार के साथ। ये तकनीकें उस जमाने की ईजाद हैं जब आज की तरह प्रर्शक्षक्षत प्रबन्धक व अर्भयन्ता नहीं थे। अनुपम र्मश्र 'आज भी खरे हैं तालाब' में इनकी दशा व महत्व का इस प्रकार गचत्रण करते हैं "सैकडों हजारों तालाब अचानक शून्य से प्रकि नहीं हुए थे उनके पीछे एक इकाई थी बनवाने वालों की, तो दहाई थी बनाने वालों की। यह इकाई दहाई से र्मलकर सैकडा हजार बनाती थी। षपछले दो सौ बरसों में नए ककस्म की थोडी सी पढाई पढ गए समाज ने इस इकाई दहाई सैकडा व हजार को शून्य ही बना हदया। इस नए समाज के मन में इतनी भी उत्सुकता नहीं बची कक वह जाने कक इसस े पहले के दौर में इतने सारे तालाब कौन बनाता था। आई. िी की र्सषवल इंजीननयररगं ने इस पैमाने से, उस गज से, पहले हो चकेु काम को कभी नापने की कभी कोर्शश नहीं की। आज जो अनाम हो गए, उनका एक समय में बडा नाम था।" दभुाणग्यवश सहदयों पुरानी ज्ञान की षवरासत “हीन मानर्सकता” के चलते या तो दब चकुी है या षवसरने के कगार पर पहुाँच चुकी है। तथाकगथत षवकास षवशिेज्ञो ने अपने ष्जद्दीपन और हठधर्मणता के तहत प्रयोगात्मक तरीकों से इस समुदाय पर अपन ेषवचारों को थोपा। इससे लोगों की अपनी सहदयों से संगचत ज्ञान षवज्ञान की अक्षय पुाँजी कुहठत हुई और हीन भावना से ग्रर्सत होकर लुप्त होने के कगार पर पहुाँच गई जबकक इसमें पारस्पररक सहयोग, अथणपूणण सहकार, सामाष्जक समरसता तथा हम की भावना पर संचार्लत उन तकनीकों का इष्ितम संयोजन था ष्जनसे हमारे संसाधन न र्सफण संरक्षक्षत थे अषपतु उनके अष्स्तत्व को भी कोई खतरा ऩहीं था। समग्र सषृ्ष्ि के प्रनत “ष्जयो और जीने दो” का आदशण समाहहत था इनकी जीवन शैली में। वंदना र्शवा मानती हैं

Page 4: जल संसाधन प्रबन्धन मेंसम्पोषित पारम्पररक लोक ज्ञान …kcgjournal.org/kcg/wp-content/uploads/SocialScience... ·

KCG-Portal of Journals

4 | P a g e

कक वैष्ववक अर्भगम को लेकर जो एकांगी संस्कृनत को थोपने का प्रयास इस गरीब तबके पर ककया जा रहा है उससे सामान्य प्राकृनतक संसाधनों के उपभोग को लेकर संभ्रांत समुदाय की बबगडी हुई दानत व लालच दोनों ही नजर आते हैं। इसी भेदभाव से ससंाधन उपयोग की वतणमान व्यवस्था पर प्रवनगचन्ह लग जाता है। गााँधीजी मानते थे कक सुख या षवकास स्वयं के र्लए संसाधनों के महत्तम उपयोग में नहीं अषपत करूणायुक्त साधना में ननहहत हैं ष्जसमें साधन-संसाधनों का अपनी मयाणहदत जरूरतों को संतुष्ि करने के र्लए सदैव यह ध्यान रहता है कक इन संसाधनों पर हमारे अलावा दसूरों का भी समान अगधकार है।

ितभमान जल प्रबन्धन का संकट - यूं तो दनुनया के 73% हहस्से में पानी है जो समुद्रों व खाडडयों में केष्न्द्रत है जो न तो खेती के काम आ सकता है ओर न ही पीन ेके। षववव में 110 करोड लोगों को पीने का साफ पानी नहीं र्मलता। धरती की कोख हदन व हदन सूखती जा रही है, भू-गभण जल का स्तर भी गगर रहा है और कई गावों में तो पीने का पानी भी मयस्सर नहीं है। कल की भयावहता से बचने का र्सफण एक ही तरीका शिे है- पानी की बचत तथा उपयोग के तौर तरीकों में बदलाव एवं स्रोतों का व्यवष्स्थत संरक्षण। गााँधीजी ने कहा था कक प्रकृनत हमारी जरूरतों को तो पूरा कर सकती है लेककन हमारे लालच को नहीं। बढता औद्योगीकरण, पेपर र्मल, चीनी र्मल, र्सचंाई के र्लए पंपों का इस्तेमाल, तालाब पािकर कॉलोनी बनाना तथा बढे- बढे होिल व लॉण्ड्री आहद उद्योगी प्रवषृ्त्तयां पानी की दवुमन बनी हुई हैं। संयुक्त राष्र संघ ने चतेावनी दी है कक अगर जल संपदा का दोहन इसी तरह चलता रहा तो दनुनया में 2027 तक 270 करोड लोगों को पानी की भारी ककल्लत का सामना करना पडगेा और 250 करोड लोगों को बडी मुष्वकल से पीने का पानी र्मलेगा। भारत में इस समय पंजाब, हररयाणा, राजस्थान, गुजरात, आंध्रप्रदेश, तर्मलनाडु व मध्यप्रदेश के कुछ इलाकों में गंभीर जल संकि है। उत्तरप्रदेश, उत्तराखण्ड्ड, पष्वचमी बंगाल, केरल, हदल्ली व महाराष्र में जल संकि शुरू हो गया है। अभी कफलहाल बाकी के राज्यों- असम, अरुणाचल प्रदेश, मणणपुर, मेघालय. र्मजोरम, नागालैंण्ड्ड, उडीसा, बबहार, हहमाचल प्रदेश, जम्मू कावमीर व झारखण्ड्ड में जल संकि नहीं है। दनुनया में सबसे ज्यादा करीब 22 लाख ट्यूबवैल भारत में ही है, जो धरती का सीना चीरकर अाँधाधुंध पानी ननकाल रहे हैं। देश में हर घंिे में करीब 25 क्यूबबक मीिर पानी भू-गभण से ननकाला जाता है। देश के हर तीसरे ष्जले का भू-जल पीने योग्य नहीं है। इंसानी करतूतों ने जमींन को ननचोड कर रख हदया है। धरती पर पसरता नगरीकरण व कंिीि का जंगल, ननरन्तर कम होती बरसात और पानी को सहेजने के प्रनत बढती मानवीय असंवेदनशीलता से भू-गभण में पहुाँचने वाले जल की मात्रा इतनी कम हो गई है कक जमीन एक तरह से रीत चकुी है। भ ूगभण षवज्ञानी पी. एन. राजदान का मत है कक भू जल का पानी समाप्त होने स ेजमीन में बड ेबड ेवेक्यमू बन जाऐंगे और जमीन फि जायेगी। षवनोद र्सहं चौहान मानते हैं कक देश में 100 करोड लोग ऐसे हैं ष्जन्हें आज तो पीने का पानी र्मल रहा है ककन्तु 14 साल बाद वे एक एक बूाँद के र्लए तरसते नजर आाँएगे। देश के 5723 में से 839 ष्जले डाकण जोन में आ चुके हैं। उत्तर गुजरात के पूवणकांठा के पवणतीय षवस्तार- अबंाजी, खेरालु, खेड ब्रह्मा षवस्तार की जमीन पथरीली होने से उसमें पानी को सोखने की शष्क्त न के बराबर है। यही ष्स्थनत बनासकांठा व साबरकांठा के पवणतीय षवस्तारों की है जहााँ आहदवासी समुदाय ननवास करते हैं। आहदवासी षवस्तारों में वन सम्पदा की प्रचरुता के चलते यहााँ के लोगों को विणभर पानी र्मलता रहता था ककन्तु वनों के तेजी से षवनाश, पानी उपयोग के बदलते प्रनतमानों से ष्स्थनत बद से बदतर होती जा रही है। आज खेती के र्लए पानी की बात तो छोडडए, पीने का पानी भी

Page 5: जल संसाधन प्रबन्धन मेंसम्पोषित पारम्पररक लोक ज्ञान …kcgjournal.org/kcg/wp-content/uploads/SocialScience... ·

KCG-Portal of Journals

5 | P a g e

मीलों दरू चलकर लाना पडता है। ईडर, षवजयनगर, पोण, मेघरज आज पानी की षवकि समस्या से पीडडत षवस्तार हैं, ष्जसे डाकण जोन कहा जाता है। इस षवस्तार की भू-गभण जल सम्बन्धी समस्याएं हैं- नैसगगणक जल प्रवाह की हदशा के षवरुद्ध भू-गभण जल प्रवाह, अननयर्मत बरसात, अननयष्न्त्रत जल उपभोग, क्षारयुक्त जल प्रवाहों की बढती मात्रा, पानी की गुणवत्ता व कमी के संदभण में व्यवस्थापकीय प्रवन। षपछले 5 सालों में वािरशडे योजना के तहत कई सारे चकेडमे बने ककन्तु तकनीकी खार्मयों के चलते असफल रहे। अगधकाररयों का मानना है कक इस योजना में 2016 ककसानों को फायदा र्मला जबकक दक्षक्षण डांग के गांववार्सयों का कहना है कक गाम में पानी लान ेहेतु षपछले 25 विों में 25 बोरवेल ककए गए ककन्तु पानी नहीं आया इसके पीछे वे मानते हैं कक इन योजनाओं के अमलीकरण में स्थानाय भौगोर्लक पररष्स्थनत व षवर्शष्िताओं को ध्यान में हीं र्लया गया। भ-ूगभण जल का स्तर गचतंाजनक गनत से घि रहा है आवक की अपेक्षा जावक बढ रही है पानी की गुणवत्ता भी ननरन्तर गगरती जा रही है। ककसानों को खेती के र्लए पयाणप्त पानी र्मलता रहे इसके र्लए जरूरी है मानव बस्ती व्यथण पानी बहाव को रोके तथा उपयोग ककए गए जल का पुनउणपयोग के तरीके षवकर्सत हों। इसके अलावा जलस्रोतों का व्यवस्थापन, जलसंचय हेतु कायणिमों का असरकारक आयोजन व अमलीकरण उतना ही महत्वपूणण है। खेती क्षेत्र की भावी जरूरतों को पूरा करने के र्लए जरूरी है कक भू-सपािी के स्रोतों का व्यवष्स्थत उपयोग हो, कम खपत वाले र्सचंाई यंत्रो का प्रयोग हो। बरसाती पानी के संग्रह की प्रवषृ्त्तयों को वेग र्मले। भू गभण जल के प्रवाह को समझ ेबबना षवकास के र्लए पहाडडयों को कािकर सडकें बनाई गईं ष्जससे भूगभण जलकी वाहननयां बीच में से किकर सूख सी गई और उन षवस्तारों में जल संकि और गहराया जहााँ पयाणप्त मात्रा में पेयजल था। हमें समझना होगा कक जल जमीन व वन आहद कुदरती साधन एक–दसूरे से जुड ेहैं इसर्लए सह अष्स्तत्व की धरुी पर ही इनका जतन संभव है । जल तो जीवन की पगडी का सरपेंच है। कोई अपनी ही पगडी पर पााँव कैसे रख सकता है। नहदयां ही क्या कुएं बावडडयां, तालाब, कंुड, जोहड, मनुष्य ने तो कुछ भी नहीं छोडा। जमाने ने नहदयों पर पहरे बैठा हदए। 'नहदयां बबफरें नहीं तो क्या करें। चाहे र्सन्ध ुहो या दजला फरात, मनुष्य को सभ्यता के प्रभात में मान मयाणदा र्सखाने वाली हम नहदयां मनुष्य की ये बातें सुनती हैं तो हमारी लहरों में बफण सी जम जाती है।' वल्डण वाइल्डलाइफ फंड 2007 की ररपोिण के मुताबबक नहदयों के सूखने का मुख्य कारण जलवाय ुपररवतणन व जल का बेहताशा दोहन है। नेशनल इंस्िीट्यूि ऑफ हाइरोलोजी के ननष्किों के अनुसार भारत की आगथणक षवकास की रफ्तार बढन ेसाथ ही देश मे जल संकि और भी गहराता जाएगा। इसीर्लए यहद भषवष्य के र्लए यहद बहते पानी व 'सत ् के ससं्कारों' को नहीं बचाया गया तो भावी पीहढयों के र्लए जीवन बहुत कहठन हो जायेगा। मनुष्य न ेकुदरत पर षवजय पाने के जी तोड प्रयास ककए हैं ककन्तु सहदयों के संघिण के बाद आज हम इस ननष्किण पर पहुाँचने को षववश हैं कक कुदरत की षवशालता को समझ पाना अत्यन्त कहठन है। षवकास की ष्जस भ्रामक प्रकिया में ष्जस तरह से आज अन्धानुकरण हो रहा है उससे पयाणवरणीय असंतुलन पैदा हो रहा है। इसके पररणामों की गंभीरता को अभी हम समझ नहीं पा रहे हैं और हिकाऊ षवकास से कोसों दरू हिते जा रहे हैं तथा अपने षवनाश की कब्र भी स्वयं तैयार कर रहे हैं।

Page 6: जल संसाधन प्रबन्धन मेंसम्पोषित पारम्पररक लोक ज्ञान …kcgjournal.org/kcg/wp-content/uploads/SocialScience... ·

KCG-Portal of Journals

6 | P a g e

पारम्पररक ज्ञान-षिज्ञान के प्रेरणात्मक प्रतीक कुछ जीिंत जल योद्धा- (अ) गुजरात में जन्मे व राजस्थान के रेगगस्तानी प्रदेश बाडमेर को अपनी कमणभूर्म बनाने वाले फरहाद कॉन्रक्िर(जल संरक्षण के बेर्मशाल काम हेतु संस्कृनत अवाडण) ने वहााँ के ग्रामीण इलाकों का दौरा कर कुओं व प्रकृनतक जल स्रोतों के बारे में उनके प्रचीन ज्ञान को जाना और लोगों को प्रेररत ककया कक सरकार के भरोसे न रहकर खदु ही जल का प्रबन्धन व संरक्षण करे। उन्होंने जीवन के स्रोत 100 साल पुराने कुएं के पास छोिी-छोिी िंककयां बनवाकर यह सराहनीय काम ककया। (आ) (इ) 56 विीय कन्नड ष्जले के अडयानडका अमई महार्लगंा नाइक- कलयुग के भगीरथ ककसान परेशान थे कक उनकी ढलान वाली जमीन में पानी नहीं रुकता था और कंुआ बनाने हेतु पैसे नहीं थे उनके पास। तब खेतों तक पानी पहुाँचाने हेतु सुरंग बनान ेका षवचार मन में आया। लोगों ने इस ेउनका पागलपन कहा ककन्तु इसकी परवाह ककए बबना आणखर पााँचवी बार में वे अपन ेप्रयास में सफल हुए और लोगों के र्लए प्रेरणास्रोत बने। केरल के कासरगोड ष्जले के कोडम षवल्लूर गांव के 55 विीय ककसान ने भी चट्टानों को तोडकर 300 मीिर लम्बी सुरंग खोदकर अपने खेतों को र्सगंचत ककया है। (ई) गुजरात की सौराष्र की धरती को कमणभूर्म बनाने वाले पानी-वीर मनसुखभाई सुवैगगया ने क्षेत्र में पानी समस्या का अवलोकन ककया कक 1990 में जहााँ 15-20 मीिर पर पानी र्मल जाता था, 1998 में पानी 120-210 मीिर नीच ेचला गया। षवशिेज्ञों से सलाह मशषवरा करने पर ज्ञात हुआ कक यहद नदी नालों पर कच्च-ेपक्के बााँध बनाए जाएं तो समाधान र्मल सकता है। गुजरात सरकार तब 15 लाख में एक चकेडमे बनाती थी वो भी विण में र्सफण एक। यह ऊाँ ि के मुाँह में जीरे के समान था। मनसुखभाई ने दावा ककया कक वे एक लाख रूपए में 15 चकेडमे बनाएंगे। इसके र्लए लोक-फंड स्कीम के द्वारा एक लाख रुपया इकठ्ठा ककया और 17 चकेडमे बनाए। (उ) जल को समषपणत उत्तरप्रदेश के जल प्रहरी संस्था के संचालक जगत प्रकाश गगण र्शक्षण संस्थाओ में घूम-घूम कर पानी को बेकार बहाव को रोकन ेका जुनून रखते हैं ताकक भावी जल संकि को रोका जा सके। (उ) जनहहत फाउण्ड्डशेन के अध्यक्ष उत्तर प्रदेश के पष्वचमी क्षेत्र को अपना कायणक्षेत्र बनाने वाले अननल राणा ने अपना जीवन पानी की लडाई के र्लए लगा हदया। हहण्ड्डन नदी के पानी को औद्योगगक जल प्रदिूण से मुक्त करने के र्लए इलाहाबाद हाईकोिण में यागचका दायर की तथा रेनवािर हावेष्स्िंग के द्वारा पानी की समस्या पर ननयन्त्रण करने का सराहनीय काम ककया है। (ऊ) अमरेली ष्जला के बगसरा से 10 कक.मी. दरू कागदडी के 77 विण के अरजन बापा न ेएक उदाहरण प्रस्तुत ककया अकेले ही चकेडमे का सजृन करके। भले ही 2 विण लगे उन्हें ककन्तु बबना ककसी सरकारी सहायता के यह काम ककया। स्कूल नहीं गए कफर भी अर्भयाष्न्त्रकी की अजब सूझबूझ थी 50 कफि दरूी से गड्ढा खोदकर र्मट्टी डालने का शुरू ककया, नींव को पानी डालकर मजबूत ककया। हर रोज के जुनून के पररणाम स्वरूप ऐसा चेकडमे तैयार हुआ कक आने वाली बरसात में सरकारी सीमेंि ननर्मणत चकेडमे ढह गए पर अरजन बापा का डमे अषवचल खडा रहा। सच है जहााँ चाह वहााँ राह। र्सद्ध कर हदया इन्होंने कक षवकास ककसी सहायता का मोहताज नहीं है। जरूरत है प्रबल इच्छाशष्क्त की न कक ककसी डडग्री की, अषपतु अनुभवजन्य तराश ेहुए ज्ञान की उसे सहेजने की और गवण के साथ उसके उपयोग करने की।

Page 7: जल संसाधन प्रबन्धन मेंसम्पोषित पारम्पररक लोक ज्ञान …kcgjournal.org/kcg/wp-content/uploads/SocialScience... ·

KCG-Portal of Journals

7 | P a g e

शोध प्रिधध- यह शोध षववलेिण गुजरात राज्य के जनजानत बाहुल्य क्षेत्र की पानी से जुडी व्यवस्थापकीय परम्पराओं पर केष्न्द्रत है ष्जनका ताल्लुक प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्राकृनतक संसाधनों के सम्पोषित प्रबन्धन से रहा है। भले ही वह भू गभण जल की शोध हो अथवा पानी की ष्स्थनत के अनुरूप जमीन सुधार व फसल पसंद करने संबंधी ननणणय अथवा कफर पीने के पानी की समस्या को लेकर भागीदारीयुक्त सामूहहक व्यवस्था। प्रस्तुत शोध इस अनुभव को षवकास पिल पर लोकषप्रय बनाने की मंशा से आज के संदभण मे पुंनणषववलेषित करने का प्रयास है। पारम्पररक ज्ञान षवज्ञान के उपयोग की छाप से शायद ही आहदवासी जीवन यापन का कोई के्षत्र अछूता रहा हो परन्तु शोधजन्य समय, हेतु व साधन आहद की मयाणदा के चलते सभी को एक साथ ले पाना संभव नही होता। इसर्लये इस अध्ययन में षवर्शष्िता व गहनता के दृष्ष्िकोण से जल व्यवस्थापन से जुड ेलोक आयामो, व्यवहारों व तकनीकों को शार्मल ककया गया है जो सम्पोषित षवकास की कसोिी पर अपनी प्रासंगगकता र्सद्ध करने मे सक्षम हैं। इस संकर्लत प्रणाली में न र्सफण जल संसाधनो का षववेकपूणण उपयोग ननहहत है अषपतु अपनेपन से जुङी परस्पर सहकार की सामाष्जकता का दशणन होता है। यहााँ इससे महक उठती है जमीन जैसे प्राथर्मक संसाधन के संरक्षण की। संशोधन षवस्तार में आहदवासी बाहुल्य ष्जले जो सम्पूणण गुजरात राज्य का प्रनतननगधत्व करते हैं को सष्म्मर्लत ककया गया है। प्राथर्मक जानकारी के संग्रह हेतु व्यष्क्तगत साक्षात्कार, सामूहहक चचाण एवं सहभागी अवलोकन षवगध का उपयोग ककया गया है। अध्ययन की प्रकृनत मात्रात्मक अथवा आंकडाकीय न होकर गुणात्मक प्रकृनत की रही है। इसका मुख्य ध्येय षवर्शष्ि लाक्षणणकताओं के साथ उन सामान्य व्यवहारों का पता लगाना रहा है जो व्यापकता के साथ अपनी वतणमान व भावी प्रासंगगकता रखते है।

Page 8: जल संसाधन प्रबन्धन मेंसम्पोषित पारम्पररक लोक ज्ञान …kcgjournal.org/kcg/wp-content/uploads/SocialScience... ·

KCG-Portal of Journals

8 | P a g e

पानी से जुड ेसिाल

राजनैततक प्रश्न सामाजजक- सामहूिक प्रश्न तकनीकी प्रश्न

- पानी की समस्या समाधान में राजनैततक दखलंदाजी एिं स्िार्थों का बोलबाला - पानी के साधन ि षितरण व्यिस्र्था में राजनीतत ि भेदभाि - जल संसाधन पररयोजनाऐं मानि जीिन के रक्षण से अधधक औद्योधिक आिश्यकताओं की पूततभ पर केजन्ित ि राजनैततक इच्छापूतत भ का साधन मात्र

- पानी के साधन-संसाधन तनमाभण,सफाई ि मरम्मत व्यिस्र्था में सम्पोषित परम्पराित व्यिस्र्थाओं के जतन का अभाि।

- कुदरती जल संसाधन के उपयोि में समुधित संिेदना का आभाि।

- जल के उपयोि में सामाजजक-आधर्थभक ििभिाद ि शोिण का बढ़ता ििभस्ि

- पररिततभत भौततकिाद प्रेररत ि तीव्रिामी षिकास की अधंी दौड से प्रभाषित जीिन-शैली एिं अषििेकपूणभ ि बेिताशा जल दोिन

- जल का तल नीि ेजाना - बरसाती पानी का योग्य संग्रि निीं

- भौततक षिकास िेत ुटूटती भू-िभभ जल िाहिकाएं कुदरती प्रिाि के षिरूद्ध बड े बााँधो के तनमाभण तर्था स्र्थानीय लोिों पर दषु्प्प्रभाि - बुतनयादी आिश्यकताओं की संतुजष्प्ट के स्र्थान पर लालि ि बढ़ती जाती लालसा में जल सम्बन्धी कुदरती प्रिािों के सार्थ छेडछाड का दसु्सािस

Page 9: जल संसाधन प्रबन्धन मेंसम्पोषित पारम्पररक लोक ज्ञान …kcgjournal.org/kcg/wp-content/uploads/SocialScience... ·

KCG-Portal of Journals

9 | P a g e

जल प्रबंध से जुडी आहदिासी षिस्तार की प्रमुख समस्याएं- 1. अननयर्मत बरसात चि-

पानी तो उतना ही बरसता है ष्जतना पहले बरसता था फकण र्सफण इतना आया है कक वह बहुत ही कम हदनों में बरसकर पूरा हो जाता है और उसे संग्रह न कर पाने से वह उपयोग ककए बबना व्यथण ही बहकर चला जाता है। पहले सुगहठत सामाष्जक व्यवस्था के तहत जल संग्रहण हेतु कुआ बावडी तालाब व खेत तलाब, छोिी तलैयां जरूरतों के अनुरूप ननर्मणत की जाती थीं तथा सामाष्जक-सांस्कृनतक प्रनतमानों के आधार पर इनका जतन ककया जाता था। अब हुआ यह कक अननयर्मत विाणचि से पानी संग्रहण हेतु जरूरतों की मात्रा तो बढी ककन्तु इसके षवपरीत स्थाषपत व्यवस्थाएं घिी इससे समस्या दगुनी होती गई। हम षवकास नाम पर संग्रहण के षवकेष्न्द्रत छोिे साधनों को उपेक्षक्षत करके बड ेबााँध, बनाने लगे। पररणाम कहीं बाढ तो कहीं सूखा व अकाल।

2. वन सम्पदा के षवनाश से जमीन की ननतार क्षमता घिी तथा स्थानीय उपायों के प्रनत उदासीनता ने इस पररष्स्थनत को और षवकि बना हदया।

3. आधनुनक षवकास के हरकारों का रूझान इस प्रकार की प्रवषृ्त्तयों की ओर बढा जो अगधकागधक षवत्त पोषित हों तथा ष्जसके इदण-गगदण मात्रात्मक व आंकडकीय प्रगनत का मायाजाल बुना जा सके। जबकक वास्तव में अनंतम छोर पर रहने वालों के र्लए यह मगृमरीगचका से अगधक कुछ भी नहीं है। इस अधंानुकरण व लालचपूणण अथणशास्त्र ने तो कुदरती जल साधनों की आत्मा को कुचलकर ही रख हदया है।

4. यह सही है कक जब भौनतक सुषवधाओं का षवकास होता है तो कुदरती साधनों का षवनाश होता ही है ककन्तु यहद यह षवकास ननयष्न्त्रत गनत से व षववेकपूणण तरीके से हो तो कुदरती संसाधन व जैव षवषवधता को अष्स्तत्व षवहीन होने से पहले संभाला जा सकता है। अफसोस! आज यही तो नहीं हो रहा। पैसा व सत्ता के मद में मुठ्ठीभर अमीर वगण येनकेन प्रकारेण अपनी मनमानी करते हुए ननलणज्जसा स्वयं के षवनाश के साथ-साथ सवण के षवनाश की कब्र भी अपने ही हाथों से खोद रहा है। यह गैर-ष्जम्मेदारीपूणण कृत्य नई पीढी के संदभण में उसके अष्स्तत्व की भ्रूण हत्या से कम नहीं है। कहीं सूखा, कहीं बाढ- पानी ननकासी की समुगचत व्यवस्था का न होना आहद पररणाम तो यत्र-तत्र आंर्शक प्रमाण में दृष्ष्िगोचर होने ही लगे हैं महाषवनाश की षवभीषिका की अगग्रम चतेावनी के रूप में।

5. जल के उपयोग में सामाष्जक-आगथणक वगणवाद व शोिण का बढता वचणस्व- जैसा कक हम जानते हैं कक जल एक प्राकृनतक संसाधन है ष्जस पर मानव जानत ही नहीं अषपत ुसमस्त सषृ्ष्ि का समान अगधकार है जीवन प्रदाता घिक के रूप में। ककन्तु हालात यह हैं कक समाज का समदृ्ध तबका इससे महरूम नहीं हैं, उद्योग जगत, शहरी बस्ती को पानी पहंुचाने की गचन्ता है ककन्तु सहदयों से पानी के स्रोतों के ननकिस्थ रहे आम जन के हहत की ककसी को कफि नहीं है। समझौता करने के र्लए उन्हें ही राजी ककया जाता है राष्र हहतों की दहुाई देकर।

6. भौनतकवाद प्रेररत व तीव्रगामी षवकास की प्रकिया से प्रभाषवत जीवन-शैली एवं अषववेकपूणण व्यवहार के चलते बेहताशा जल दोहन- भौनतकतावादी दौर में पानी को पैसे स ेखरीदने का अिम ्\ भ्रम आज हमारे तथाकगथत समदृ्ध समाज में घर कर चकुा है, लोग अषववेकी बनकर आववयकता संतुष्ष्ि के स्थान पर अपव्यय करन ेसे नहीं

Page 10: जल संसाधन प्रबन्धन मेंसम्पोषित पारम्पररक लोक ज्ञान …kcgjournal.org/kcg/wp-content/uploads/SocialScience... ·

KCG-Portal of Journals

10 | P a g e

हहचककचा रहे। सामुदानयक स्रोतों के जतन व सामूहहक जबावदारी की बात तो दरू ही है। जीवन यापन की प्रकिया में शानो शोकत और आराम के नाम पर ऐसे साधन उपयोग में लाए जा रहे हैं ष्जसमें पानी का अत्यगधक उपयोग होता है यथा –फ्लेश की लेरीन, वाशवेर्शन पर शषेवगं करना, वार्शगं मशीन का उपयोग। इससे लोगों में जल संसाधन के उपयोग में समुगचत संवेदना का मतृप्राय बनती जा रही है।

7. औद्योगगक रसायन, गंदा पानी, अस्त-व्यस्त जल ननकासी आहद व्यवस्थाएं प्रदषूित होते जल स्रोत और पानी के घिते प्रमाण के र्लए ष्जम्मेदार है। यह समस्या साधन-सुषवधा से कहीं अगधक जन इच्छा-शष्क्त एवं नैनतक ष्जम्मेदारी की है। इसे हम गांधीवादी गचतंन आइने में तत्व व तंत्र' की कसौिी पर परख सकते हैं। हमारे व्यवहारों में तत्व की शाववतता का जतन अननवायण है जब भले तंत्र सहूर्लयत के अनुरूप कोई भी हो। समस्या हकीकत से सरोकार न रख पाने की है। जल प्रदिूण तथा जल का बेफाम उपयोग करने के र्लए ष्जम्मेदार हर व्यष्क्त व व्यावसानयक संगठन जल संसाधन के संरक्षण के "तत्त्व" को भुलाकर तथाकगथत षवकास के नाम पर अनैनतक "तंत्र" की व्यवहाररकता र्सद्ध करने पर तुला हुआ है। इसमें ककसी वगण का अल्पकालीन लाभ हो सकता है ककन्तु दनुनया गोल है इस आधार पर कभी न कभी इस आग से इसे भी झुलसना पडगेा।

8. पानी के साधन-संसाधन ननमाणण, सफाई व मरम्मत व्यवस्था में सम्पोषित परम्परागत व्यवस्थाओं के जतन का अभाव- आज सामाष्जक इकाइयों की संचालन व्यवस्था भंग हो जाने से जल ससंाधन प्रबंधन के सामुदानयक प्रयासों की षवकृत मानर्सकता व क्षत-षवक्षत अव्यवस्थाएं उभर कर सामने आ रही है। सामाष्जक शांनत व समरसता के दायरे में जल व कुदरती संसाधनों के सम्पोषित जतन हेतु जो व्यवस्था अपररहायण है, उससे हम हिते जा रहे हैं। यह गम्भीर गचन्ता का षविय है।

9. भू-गभण जल का गचतंाजनक गनत से घिता स्तर तथा गुणवत्तायुक्त पीने व र्सचंाई के पानी की कमी- भू-जल के बेहताशा दोहन से जमीन का तल इतना नीच ेपहुाँच चकुा है कक उन षवस्तारों में पीने के पानी का संकि खडा हो गया है। इस पयाणवरणीय असंतुलन के कारण हहमनद तेजी से षपघलने शुरू हो गए हैं जो ननष्वचत तौर पर भावी खतरे की आगाही करते प्रतीत होते हैं।

10. बरसाती पानी का योग्य संग्रह नही-ं वतणमान पीढी में बरसाती पानी के संग्रह को लेकर पयाणप्त जागनृत की कमी दृष्ष्िगोचर होती है। आधनुनक िेकनोलोजी के साथ जीने के अभ्यस्त बन चकेु समाज में पानी संग्रह के परम्पारगत उपायों को जानने, सीखने व समझने की श्रद्धा ही नहीं बची है। सोचने की बात यह है कक जमीन के पेिे स ेअकूत पानी ननकालने की तकनीकें तो षवकर्सत की और उसे गवण के साथ अपनाया भी लेककन इस षवकर्सत जगत अभी तक कोई ऐसी तकनीक उभर कर सामने नहीं आयी ष्जनसे इन स्रोतों का व्यवष्स्थत जतन होता हो।

11. भौनतक षवकास हेतु िूिती भू-गभण जल वाहहकाएं, कुदरती प्रवाह के षवरूद्ध बड ेबााँधो के ननमाणण का स्थानीय लोगों पर दषु्प्रभाव- उद्योग जगत की जरूरतों के सामने बड ेबड ेबांधों के संगचत पानी के उपयोग पर स्थानीय लोगों की जरूरतों को ककतनी प्रथर्मकता र्मलती है इसके बारे में कुछ अगधक कहने की जरूरत नहीं। इस प्रकिया में स्थानीय लोगों को ही घर से बेघर होने को बाध्य होना पडता है। जल संसाधन पररयोजनाऐं

Page 11: जल संसाधन प्रबन्धन मेंसम्पोषित पारम्पररक लोक ज्ञान …kcgjournal.org/kcg/wp-content/uploads/SocialScience... ·

KCG-Portal of Journals

11 | P a g e

मानव जीवन के रक्षण से अगधक औद्योगगक आववयकताओं की पूनत ण पर केष्न्द्रत व राजनैनतक इच्छापूनत ण का साधन मात्र बन कर रह गई हैं।

12. बुननयादी आववयकताओं की संतुष्ष्ि के स्थान पर लालच व बढती जाती लालसा में जल सम्बन्धी कुदरती प्रवाहों के साथ छेडछाड का दसु्साहस- सम्पोषित षवकास षवज्ञानी चतेावनी दे रहे हैं कक ष्जतना कुदरती स्रोतों के प्रवाह को अवरुद्ध करके मानवीय लालच को पूरा करने की कुचषे्िा की जायेगी उतनी ही समष्ष्ि के अष्स्तत्व को लेकर जोणखमें बढती जाएगंी। हम ही तय करें कक नाक बेचकर सोना पहन लेने में क्या बुषद्धमत्ता है?

13. पानी की समस्या समाधान में राजनैनतक दखलंदाजी एवं स्वाथों का बोलबाला- दशकों से राज्यों के बीच में पीने के पानी व र्सचंाई के पानी को लेकर हुआ षववाद और उससे होता फसलों का नुकसान भी ककसी से छुपा नहीं है जो राजनैनतक स्वाथों की बर्ल चढ रहा है।

षिश्लेिण ि अिलोकन आधाररत तथ्य – लोक सूझबूझ के प्रततमान 1. पानी संग्रि ि उपयोि के साधन – लोगों द्वारा जल संग्रहण का कायण लगभग दो हजार विण पहले शुरु हुआ था, तब संग्रहहत जल का उपयोग पीने के र्लये ही हुआ करता था। इसस े पहले लोग “िाले” (नाले) मे “िैरी” खोदते और उसी से पानी ननकाल कर पीते थे। जैसे-जैसे पानी का स्तर नीच ेगया लोगों ने उसे और गहरा ककया। कालान्तर म ेराजा महा-राजाओं एवं बंजारों द्वारा िैरी को सुव्यवष्स्थत रुप से तैयार कराया गया, ष्जसे वतणमान म ेबािडी के रुप में जाना जाता है। जब इस साधन स्त्रोत का उपयोग पीने के पानी के अनतररक्त र्सचंाई हेतु प्रारम्भ हुआ, तब पानी को उलीचने (र्लफ्ि करने) हेतु सुषवधानुसार कई प्रकार के स्थानीय साधनों का षवकास हुआ और क्षमतानुसार उनका उपयोग ककया जाने लगा। ये तकनीकें इस प्रकार की थी कक इससे श्रम कायण तो सरल हुआ ककन्तु जल स्रोतों का बेहताशा षवदोहन (शोिण) नहीं हुआ जैसा कक आज के आधनुनक साधनों के उपयोग से होता है और इसका दषु्प्रभाव भी ननकि समय में ही जल और उससे जुड ेसंसाधनों पर देखने को र्मला है।

2. प्रकृतत के प्रतीकात्मक संकेतों की समझ से जल और जीिन का जतन चौमासे का र्मजाज जानने की अनुभवजन्य लोक परम्पराऐं काफी समदृ्ध रही हैं यथा- हििोडी द्वारा हदए गए अडंो के स्थल की ऊाँ चाई, धलू नहाती गचडडया आहद पशु पक्षक्षयों के षवर्शष्ि व्यवहार से लोग षवववास के साथ आने वाली बरसात की आगाही कर लेते थे। यह कोठासूझ तब तक पीढी दर पीढी आगे चलती रही जब तक कक लोगों को पशु पक्षक्षयों के व्यवहार व कुदरत के साथ ननकिता का सघन अभ्यास रहा। लोगों का षवववास है कक हर नक्षत्र का एक ननष्वचत प्रतीक पशु गचन्ह होता है उसके कद के अनुरूप ही होने वाली बरसात की मात्रा का अनुमान लगाया जाता है। इसी िम में पशुओं के एक प्रतीक व्यवहार का उदाहरण के तौर पर अवलोकन करें तो हम पात ेहैं कक - कौआ पेड की डाली पर ष्जस हदशा में अपना घोंसला बनाता है उसकी षवपरीत हदशा से बरसात होगी। इस षवधान पीछे तथ्य यह है कक इस पक्षी में मौसम को परखने की इतनी संवेदनशीलता होती है कक वह प्रकृनत के व्यवहारों से तारतम्य स्थाषपत करत ेहुए स्वयं की सुरक्षा के प्रनत आववस्त हो जाता है और इसका उपयोग गाम-जन अपने जीवनयापन के साधनों के संरक्षण में करते हैं। स्थानीय ग्रामीण जनसमुदाय भले ही इनके वैज्ञाननक आधारों से वाककफ न

Page 12: जल संसाधन प्रबन्धन मेंसम्पोषित पारम्पररक लोक ज्ञान …kcgjournal.org/kcg/wp-content/uploads/SocialScience... ·

KCG-Portal of Journals

12 | P a g e

हो तथाषप जीवनयापनीय प्रवषृ्त्तयों के आयोजन में इनका उपयोग कहााँ और कैसे ककया जाना है इसका उसे बोध है। कुछ अन्य प्रचर्लत व्यवहारों को परखे तो हम पाते हैं- -आम का बोर- आम के पेड पर अक्िूबर-नवम्बर में 4% बोर आया कफर नहीं आया और बोर की जगह 80% पत्ते आ गए। यहद इन्हीं आमों पर हदसम्बर-जनवरी में कफर से बोर आता है तो यह सूचक माना जाता है कक अगली साल चौमासा अच्छा जाएगा। -केसूडा के फूल- सामान्य रूप से कानतणक-मागणशीिण महीने में ये फूल हदखते हैं ककन्त ुइस साल पोि मास के बाद फूल हदखें और माह मास में पूरा केसूडा फूलों से लद जाता है तो यह बरसात अननयर्मत रहने की अगाही मानी जाती है। -िुलमोिर के फूल- इसके फूल फाल्गुन मास में आते हैं और वैशाख-जेठ तक शुरू रहते हैं ककन्तु इस बार यहद चतै्र मास में फूल आ गए हों तो इससे अदंाज लगाया जाता है कक सीजन दरम्यान 30-35% बरसात रहेगा। - िरमाला के फूल- परम्परागत अवलोकनशास्त्र के अनुसार गरमाला के फूल हदखने के बाद 45 हदवस में बरसात शुरू हो जाती है। इसके फूल सामान्य तौर पर 15 अप्रेल के आसपास देखने को र्मलते हैं। इसी महीने के अतं तक मेघराज की हल्कीसी झलक हदख जाय तो इस अवलोकन को सच्चा माना जा सकता है अथवा इस अवलोकन की सच्चाई की जााँच की जा सकती है। अन्यथा यह कयास लगाया जाता है कक बरसात बुवाई लायक नहीं होगा। यह समय रोहहणी नक्षत्र का होता है। बाकी के दो नक्षत्रों में भाग्य से ही अच्छी बरसात हो सकती है।

3. भलडी िाक्य- परम्पराित आिािी बरसात की भलडी कौन थी इसके बारे में तो कुछ ननष्वचत तौर पर नहीं कहा जा सकता ककन्तु उसके द्वारा कहे गए वाक्यों के आधार पर यह माना जा सकता है कक वह गुजरात-मारवाड कक मध्य की रहने वाली रही होगी। विण के 12 महीनों को लेकर मौसम के र्मजाज का अध्ययन भलडी के द्वारा ककया गया है और उन्हें लोक-समझ के अनुरूप सरल चौपाइयों माध्यम स ेप्रस्तुत ककया है ष्जन्हें गुजरात के ग्रामीण लोगों ने पूरी श्रद्धा व षवववास कक साथ आत्मसात ्ककया है। लोग इसका प्रयोग जीवन जीने की राह को सुगम बनाने व भावी जोणखम का प्रबन्ध करने हेतु "पानी से पहले पाल बााँधने" के रूप में करते रहे हैं। अब यह अगली पीहढयों में ननबाणध गनत से हस्तान्तररत होता रहेगा, इसके प्रनत आवववत होना संभवतः मुष्वकलसा लगता है ककन्तु गांव में रहकर ही बन सकता है सच्चा भारत इस पर मतभेद नहीं रह सकता। 4. जल शुषद्धकरण के पारम्पररक उपिार- - उडीसा में र्मट्टी व रेत वाले पानी की सफाई के र्लए दही का प्रयोग करते हैं - जामनगर- गुजरात के ग्रामीण षवस्तारों में बाररश का पानी इकठ्ठा कर अगले विण प्रयोग में लाने हेत ुउस िेंक में एक घडा डाल हदया जाता है जो चनूे से भरा होता है और उसका मुाँह कपड ेसे ढका होता है। - बोकारो- झारखण्ड्ड में ग्रामीण पानी शुषद्धकरण हेतु चारकोल व रेत का प्रयोग करते हैं। - हुगली- पष्वचमी बंगाल में ग्रामीण चारकोल, साफ रेत, ब्लीगचगं पाउडर और कफिकरी र्मली रेत का प्रयोग करते हैं। - खदुाण-उडीसावासी चारकोल, चनूा पत्थर, पत्थर व शीश ेके िुकडों का प्रयोग करते हैं।

Page 13: जल संसाधन प्रबन्धन मेंसम्पोषित पारम्पररक लोक ज्ञान …kcgjournal.org/kcg/wp-content/uploads/SocialScience... ·

KCG-Portal of Journals

13 | P a g e

- केरल- कोट्टायमवासी पानी शुषद्ध हेतु तुलसी व नीम की पष्त्तयां पानी के वतणन में डाल देते हैं और 4-5 घंिे पडा रहने देते हैं। - पुरी-उडीसावासी पानी के वतणन तले जामुन के पेड की डार्लयों रख देते हैं। ऐसी मान्यता है कक इस तरह रातभर रखा पानी मधमुेह रोगगयों के र्लए अच्छा रहता है। - गुंिूर- आन्ध्रप्रदेशवासी पानी से फ्लोराइडयुक्त पानी के शोधन हेतु नीम, खेर व पीपल का प्रयोग करत ेहैं। इन तीनों वनस्पनतयों के सूखे र्मश्रण में 1 प्रनतशत तनु नाइहरक एर्सड व सोडडयम हाइरॉक्साइड र्मला कर पानी में डाल देते हैं कफर इस पानी को कफिकरी व ब्लीगचगं पाउडर से गुजारते हैं। - वलसाड-गुजरातवासी पानी शुषद्धकरण हेतु ननमणली का बीज प्रयोग करते हैं। - उत्तर प्रदेशवासी भी पानी को शुद्ध तथा स्वाहदष्ि बनाने हेतु उसमें बहेडा डालते हैं।

5. पानी की शोध- भ-ूगभण में पानी के अष्स्तत्व व मात्रा का अनुमान लगाने वाले स्थानीय लोग हैं जो लकडी व नररयल की सहायता से पानी शोधने परम्परा को जीवंत बनाए हुए हैं। भू गभण जल की शोध तथा पानी के स्तर की मात्रा को लेकर आज के जल अर्भयंता अनौपचाररक रूप से इनके स्थाषपत प्रनतमानों पर षवववास रखत ेहुए अमल करते रहे हैं। अनेक षवगधयां काम में लेते हैं ये स्थाननक आहदवासी यथा- (1) नाररयल को हाथ पर लेकर समभाषवत पानी वाले स्थान पर घूमना। ष्जस जगह पानी होगा तो वह नाररयल हथेली पर खडा हो जाएगा ऐसा लोगों का षवववास बना है। अर्भयंता समुदाय कुछ इस तरह स ेइसका वैज्ञाननक आधार ढंूढते हैं कक O+ blood group वाले व्यष्क्त और भू-गभण जल की ष्स्थनत के साथ सीधा वैज्ञाननक सम्बन्ध है। (2) साधक व्यष्क्त राबत्र षवशिे को प्रस्ताषवत जमीन पर सो कर एकाग्र ध्यान से यह अदंाज लगाने में सफल होता है कक इस जमीन में पानी है या नहीं। यहद उसे गमी महसूस होती है तो वह पानी की उपलब्धता का प्रतीक माना जाता है। (3) फ्यूज ट्यूबलाइि को दोनों हथेर्लयों के बीच में फाँ साकर उस प्रस्ताषवत स्थान के चारों तरफ व े घूमत े हैं यहद वहााँ पानी है तो वह ट्यूबलाइि जल उठती है। (4) मानर्सक शष्क्त को संगहठत करके अन्तज्ञाणन के द्वारा पानी की ष्स्थनत का पता लगाने की यह षवगध प्रचलन में है ककन्तु लोगों का षवववास है कक ऐसे र्सद्ध पुरुिों की संख्या कम हो चली हैं। आज की पीडी में इस पद्धनत के पररणामों के प्रनत षवववसनीयता में कमी हुई है। (5) भ-ूगभण जल की वाहहकाओं के पथ का इन आहदवार्सयों को पूरा ज्ञान है ष्जसका उपयोग वे नए कुएं खोदने हेतु स्थान चयन में करते हैं। (6) एक अन्य षवगध में षवर्शष्ि प्रकार की वनस्पनत का पौधा हाथ में लेकर पानी वाले स्थान की खोज करते हैं। षवववास यह है कक ष्जस स्थान पर पानी होगा उसी स्थान पर इस वनस्पनत में से रस की बूाँदे गगरेगी। (7) पानी वाले स्थान पर षवर्शष्ि प्रकार की घास या वनस्पनत की उपष्स्थनत के प्रमाण द्वारा भी पानी की उपलब्धता का द्योतक माना जाता है। आसपास की पाररष्स्थनतकी का तो पूरा पूरा तजुबाण इन्हें होता है इसर्लए जलभराव क्षेत्र (catchment area) का इनसे बेहतर अदंाजा ककसे हो सकता है। कहााँ तालाब बनाना है कहााँ बोरीबंद या चकेडमे बनान ेहैं, इनका सफल आयोजन इनके पास होता है ककन्तु सरकार मात्र ननयत बजि को व्यय करने व मात्रात्मक आंकडों तक पहुाँचने में अपने कतणव्यों की इनत श्री मान लेती है और वांनछत पररणामों से कोसों दरू रहती है।

Page 14: जल संसाधन प्रबन्धन मेंसम्पोषित पारम्पररक लोक ज्ञान …kcgjournal.org/kcg/wp-content/uploads/SocialScience... ·

KCG-Portal of Journals

14 | P a g e

अन्य सामान्य तनष्प्किभ- - आहदवासी समुदाय षवकास के पायदान पर “नो हदन चले अढाई कोस” वाली ष्स्थनत में है इसका एक कारण इनकी स्वाबलम्बी आजीषवका की कडी का िूिना है ष्जसके चलते यह समुदाय हदनो हदन गरीबी के दलदल मे फाँ सता जा रहा है। - हमारे षवकास षवशिेज्ञ एवं नीनतकार अपनी सोच के मुताबबक आहदवासी समुदाय पर नये नये प्रयोग करते रहे हैं। उनकी स्वभाषवक प्रवषृ्त्त के षवरुद्ध अपने ही सााँच े मे ढालने का नाकामयाब प्रयास भी बदस्तूर जारी रखा है। ष्स्थनत यह हुई कक ना तो वे अपनी धरोहर को ही सहेजते हुए जी सके हैं और न ही इस वैष्ववक प्रवाह से जुडने में सहजता का अनुभव कर सके हैं। - प्राकृनतक आवासीय व्यवस्था में राजकीय व प्रशासननक दखलंदाजी ने इस भोले भाले लोगों को सुननयोष्जत तरीके से घर से बेघर बनाकर (वन वार्सयों से वन के उपयोग का स्वतंत्र अगधकार छीनकर) संसाधनो के संरक्षण से इसका नाता कम ही कर हदया। संभवत स्थानान्तरण की षवडम्बना इसी के चलते उदय हुई और अपनी मजी के मार्लक ये आहदवासी अपनी सरजमीं के दायरे मे मात्र शोषित मजदरू बन कर रह गये। - इन लोगों ने संसाधनो के पारम्पररक अष्स्तत्व व जैषवक षवषवधता को न र्सफण समझा है अषपतु अपन ेजेहन मे उतारकर हर सम्भव तरीके से ष्जया है। भले ही लाचारीवश आज बहुतायत मे षवपरीत ष्स्थनत दृष्ष्िगोचर होती है ककन्तु इसका वास्तषवक ष्जम्मेदार है - अनुगचत लाभ लेने वाला संभ्रात वगण है जो सभी पर काबू पा लेने की महत्वाकांक्षा की दौङ मे सभी को कुचल कर आगे ननकल जाना चाहता है। मायावी चकाकोध ंसे दरू इन आहदवार्सयो के पास सषृ्ष्ि की समस्त ननगध के प्रनत अपनापन, हाहदणक संवेदनायें एवं अिूि श्रदृ्धा है जो इनकी सांस्कृनतक व धार्मणक मूल्यों की षवरासत से सीधा ताल्लुकात रखता है। - अगधकांश जनजाती क्षेत्रो मे सम्पोषित ज्ञान षवज्ञान व तकनीकों का भंडार चदं बुजुगों तक र्समि चकुा है जो लुप्तप्राय होने के कगार पर है। यहद इसे समय रहते उगचत पहचान व स्थान देकर आज की युवा पीढी तक व्यवष्स्थत रुप से हस्तान्तररत कराया जाता है और षवकास कायणकरों में इस दृष्ष्िपिल पर साझा समझ षवकर्सत होती है तो ननष्वचत तौर पर स्वराज्य के साकार होने की आशातीत कल्पना की जा सकती है।

जल संिय एिं जल प्रबन्धन- कुछ आयाम... जल संचय एवं जल प्रबन्धन की समस्याओं से ननजात हेत ुननम्न र्लणखत संकर्लत उपाय अपेक्षक्षत मान ेजा सकते हैं- बोरीबंध, चकेडमे, पालाबंधी, कुआ ररचाजण, खेत तलाब आहद। यहद बरसात के पानी को स्थानीय तौर पर संग्रहहत कर र्लया जाय तो दषु्काल की दशा से ननबिा जा सकता है। हमें यह समझना होगा कक भ-ूगभण का पानी मयाणहदत है इसके व्यापक उपयोग पर अकुंश लगाना होगा ताकक जमीन में बढते क्षारीय प्रमाण को कम ककया जा सके और पयाणरवरण संतुलन को हिकाए रखा जा सके। कुछ पद्धनतयां कृबत्रमरूप से जलभरण की उपयोगी र्सद्ध हो सकती हैं – - डडच एवं फर पद्धनत द्वारा कोतर वाली जमीन में जल संग्रह- जो जमीन कोतर वाली है, यहद उन कोतरों में पानी को संग्रहहत करके रोका जा सके तो भू-गभण जल का स्तर ऊपर लाया जा सकता है। - जलस्राव तालाब- ये तलाब पत्थर व रेतीले षवस्तारों में छोिी-छोिी नहदयों पर बनाए जाते हैं जो जल संग्रह की दृष्ष्ि से काफी उपयोगी रहते हैं।

Page 15: जल संसाधन प्रबन्धन मेंसम्पोषित पारम्पररक लोक ज्ञान …kcgjournal.org/kcg/wp-content/uploads/SocialScience... ·

KCG-Portal of Journals

15 | P a g e

- सामूहहक गाम तालाब- जो रखरखाव के अभाव में र्मट्टी से भर गए हों उन्हें पुनः खोदकर गहरा करना तथा जल संग्रह व्यवस्था को आकार देना। तालाब के खाली की गई इस र्मट्टी का उपयोग खेत को उपजाऊ बनाने में ककया जा सकता है। - चकेडमे- छोिी नदी नालों पर बन ेछोिे डमे मयाणहदत पानी रोकने का साधन हैं चकेडमे। इसमें रुके पानी के फलस्वरूप जमीन की संग्रह क्षमता या भंडार को समदृ्ध ककया जाता है। - खलेु कुए द्वारा पुनभणरण- इसके द्वारा जो पानी यूं ही बह जाता था उसे अिकाया जा सकता है। छत द्वारा पानी पुनभणरण, ररचाजण वेल ,बोर द्वारा पानी नीच ेउतारना आहद तकनीकें भी जमीन के पेिे को पानी से समदृ्ध करने में सहायक हैं। - छोिे तलाबों में कफल्िर कुआ द्वारा जल संचय, नदी एवं कुआ द्वारा जल संचय।

उपसंिार- एक मजबूत कडी.... युगदृष्िा महात्मा गांधीजी ने सत्य ही कहा है कक मैं षववव को सत्य और अहहसंा के रुप मे कोई नई चीज नही दे रहा हूाँ वह तो भारत की आत्मा व परम्परा में रची बसी है। इस अहहसंक कसोिी पर प्राकृनतक संसाधनो के षवदोहन की जनजाती शैली अस्तेय व अपररग्रह जैसे मूल्यो से प्रेररत रही है। यहााँ उतना ही लेने का ररवाज रहा है ष्जतनी उन्हें वतणमान में आववयकता है ताकक अन्य को भी वाष्जब तौर पर व ेसंसाधन सुलभ हो सकें और प्रकृनत का संतुलन भी बना रहे। स्वतन्त्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री प. जवाहर लाल नेहरु भी इनकी स्वभाषवक जीवनशैली की महत्वता, पोिकता एवं संरक्षण की तरफ स ेअन्जान नहीं थे। वे उन्हें राष्रीय षवकास की मुख्यधारा मे लाना चाहते थे ककन्तु कुछ इस तरह से कक उनके स्थाषपत मूल्यो मे दखलंअदाजी न हो। इस मंशा को उन्होने "जनजानत पंचशील" की उदघोिणा के माध्यम से सावणजननक कर हदया था ककन्तु अफसोस अभी तक यह षवचार हमारी षवकासलक्षी अमलीकरण प्रकिया का केन्द्र बबन्द ुनहीं बन सका। लोग अपने पारम्पररक साधन इस कारण सुरक्षक्षत रखना चाहते हैं, क्योककं उन्हें इन तकनीकों पर ननयंत्रण का आत्मषवववास है। जसैे-जैसे लोगों के प्रकृनत के साथ सम्बन्ध, हक और ननयंत्रण उनके पयाणवरण पर मजबूत होगें वैसे वैसे ही उनकी परम्पराओं व सूझ-बूझ में ननहहत शष्क्त उभर कर आयेगी। हम याद रखें कक लोक ज्ञान षवज्ञान का बहुत छोिा सा अशं ही शोध प्रलेखन या पुष्ष्ि की मान्य प्रकियाओं से गुजरा है। क्या इन सब परम्परागत ज्ञान की वैज्ञाननकता मे कोई कसर है? क्या उपयोगगता व्यय और लाभ की दृष्ष्ि से आज का षवज्ञान इनका कोई षवकल्प सामने रख सका है? कफर इस परम्परागत षवज्ञान की उपेक्षा क्यों है ? तो चलो क्यों न इसके भषवष्य को संवारा जाय और इसे प्रोत्साहन हदया जाय? इन षवधाओ का अध्ययन न केवल इन्हें सुरक्षक्षत रखने के र्लये जरुरी है अषपतु आत्मबोध द्वारा लोगों के आत्मषवववास को बढाने के र्लये भी आववयक है ष्जसके आधार पर उनकी अपनी जीवन कलाओं में और ननखार सके और वे अपने साधनों के बेहतर रख रखाव और प्रबन्ध में र्सद्ध हस्त रह सकें । संशोधक का षवववास है कक जब तक छोिे ककसानों या छोिी जोत वाले आहदवार्सयों की ष्स्थनत व जरूरतों को ध्यान में रखकर तथा सकिय लोक भागीदारी को केन्द्र में रखकर ननष्ठा व प्रनतबद्धतापूणण आयोजन व अमलीकरण की प्रककया को नहीं अपनाया जाएगा तब तक आंकडाकीय पररणाम भले ही प्राप्त कर र्लए जाए ककन्तु सम्पोषित षवकास के आयामों से हम कोसों दरू रहेंगे क्योंकक हिकाऊ षवकास की दृष्ष्ि से जरूरी है कक प्राकृनतक जल संसाधनों के षवदोहन की नीनत में कोन ेमें कहीं अलग थलग पड ेअनंतम छोर वाले व्यष्क्त की जरूरतों को मदे्दनजर रखा जाय।

Page 16: जल संसाधन प्रबन्धन मेंसम्पोषित पारम्पररक लोक ज्ञान …kcgjournal.org/kcg/wp-content/uploads/SocialScience... ·

KCG-Portal of Journals

16 | P a g e

संदभभ- I. सषृ्ष्ि-शोधयात्रा, छत्तीसगढ - "जल शुषद्धकरण के पारम्पररक उपचार" II. अनुपम र्मश्र - "आज भी खरे हैं तालाब" (पानी के संसार के नायक) III. प्रो. रामलाल परीख - गााँधीषवचार, पयाणवरण एवं सम्बंगधत समस्याऐं, यात्रापथ- गुजराती बत्रमार्सक,

अकं-3, विण-3, अप्रेल 2010। IV. गजेन्द्र गौतम- "2010 धरती मांगे बाररश और देश में भू जल संकि के प्रवन पर" राजस्थान

पबत्रका-13.06.2010 V. शस्या र्मश्रा- "जीना है तो जल योद्धा बननए",राजस्थान पबत्रका-21.03.2010 VI. ऐनाड े फाउण्ड्डशेन, मेहसाना "स्थानीय जल संरक्षण के उपाय, जल संग्रहण की षवषवध पद्धनतयां-

जलस्राव षवस्तार षवकास कायणिम (हररयाली) के तहत ननर्मणत प्रर्शक्षण सामग्री- गुजरात2008 " VII. षवसंग भट्ट - "पहचान के र्लए तरसते अमीर धरती के गरीब", हदव्यभास्कर-11.03.2010 VIII. भूपेन्द्र धोणककया, "बरसात और परम्परागत वताणरो(ज्ञान), गरजने वाले मेघ बरसेगें?" संदेश-

अधणसाप्ताहहक -30.06.2010 IX. "पानी शोधने की अनोखी परम्परा" हदव्यभास्कर -20.07.2008 X. "जल स्रोत के व्यवस्थापन हेतु सजग रहो" गुजरात समाचार -08.03.2010 XI. "अरजणबापा- एकला हाथे चकेडमेना सजणक" संदेश -23.06.2010

*************************************************************************

डॉ. लोकेश जैन सह- प्राध्यापक ग्रामीण प्रबन्धन सेन्िर फोर स्िडीज इन रुरल मैनेजमेंि गूजरात षवद्यापीठ ग्रामीण पररसर- रााँधेजा ष्जला- गाधीनगर

Copyright © 2012 - 2016 KCG. All Rights Reserved. | Powered By: Knowledge Consortium of Gujarat