प Cजाबी काव्य C में पर्ाावरण स Cब Cधी...

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© 2020 JETIR February 2020, Volume 7, Issue 2 www.jetir.org (ISSN-2349-5162) JETIR2002419 Journal of Emerging Technologies and Innovative Research (JETIR) www.jetir.org 95 पंजाबी काʩयं म पा ावरण संबंधी अवधारणा डॉ.रंजजत एम्,सहाक आचाा ,जहंदी जवभाग,एम्.इ.एस कʟडी कयलेज,मɄाा ाड Abstract कृजत और मानव का रʱा आजदम काल से अटूट रहा है मानव जीवन कृजत से जवजनजमात हयकर, उसके तयं से पयजित हयकर अंत म उसी से जवलीन हयता है ेक ुग म साजह-साधकयं ने मानव की धाी कृजतका भाव-पूणजचण जका है अंत संपɄ पं जाबी भािा के कजवयं के पा ावरण संबधी जचण पर काश डालने की कयजशंश है लेख | भारत की अɊ भािाओं के समान पंजाबी साजह का उद भी लगभग एक हजार विा पुवा हआ है |पंजाबी भािा म अनेक बयजला पाई जाती है | सुȽरदास नामक राजथानी कजव ने पं जाबी भािा का यग अपनी रचना म जका था | अंत संपɄ पंजाबी भािा के कजवयं के पा ावरण संबधी जचण पर काश डालने की कयजशंश है ह लेख | कृजत और मानव का रʱा आजदम काल से अटूट रहा है मानव जीवन कृजत से जवजनजमात हयकर , उसके तयं से पयजित हयकर अंत म उसी से जवलीन हयता है ेक ुग म साजह-साधकयं ने मानव की धाी कृजतका भाव-पूणजचण जका है मानव-जीवन का आधार कहे जाने वाले पंच महाभूतयं का ˑवन साजह म जनरर हयता आा है ीमती रेखा दुबे जी ने अपनी लेख म जलखी - सृजʼ के जीवयं म मानव एक मा ाणी है , जसे ह यता ाɑ है जक वह आजथाक, सामाजजक, राजनीजतक और तकनीकी जिा के ारा पा ावरण के भौजतक पररवेश म परवतान करके सांˋृ जतक पररवेश की रचना करता रहा है आज के सम म जदन-जतजदन पा ावरण म संकट गहराता जा रहा है , यंजक जन बते दू िण का इसपर जतकू ल भाव पता है सुशील शमा ा जी ने दय ही लɥयं म बता है मानव ˢाथो से जिरा ,बेच सारे िाट पा ावरण जनगल ग,नदी ताल कय पाटनवगीतकार डॉ. ओम काश जसंह ने अपने कई गीतयं म पा ावरण की जचकय बखूबी उके रा है ‘‘ɗासी आखे , ɗासे पनिट, ɗासे ताल-तलैा! जबना पानी के , ह जजȽगानी, काटयं की है शैʊा! आख-जमचौनी करने आए बौराए बादल!!’’ पा ावरण संरण का कयई संˋार अख भारतभूजम कय छयकर अɊ देखने म नहीं आता है | भारत म पे-पौधयं , नदी-पवात, ह-न, अजि-वाु सजहत कृजत के जवजभɄ ऱपयं के साथ मानवी ररʱे जये गए ह | पे की तुलना संतान से की गई है तय नदी कय मां ˢऱप माना गा है | लेजकन अंधाधुंध जवकास आज पूरे हालत कय बदल डाला है |वन जवभाग के कागजयं म चारय तरफ हराली है लेजकन जंगल जबरले हयते जा रहे हरी भजन जसंह ने रे त की आवाज़नामक कजवता म इसका जचण जका है | सुनय रेत की आवाज़ रेत चली आ रही है | अब तय पहंच गी रेत गाव की जफरनी पर खेतयं म फसलयं पर छयटी छयटी फु जसा बन जटकी है राहयं म जबछी रेत राहयं की लकीर सब रेत ने मेट दी अपने ही िरयं के जनकट भले जशʼ मानस भी रही जैसे थलयं म भटके भूल गए जाने पहचाने राˑे (खेत खेत म उगा लयहा ,पृʿ )

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  • © 2020 JETIR February 2020, Volume 7, Issue 2 www.jetir.org (ISSN-2349-5162)

    JETIR2002419 Journal of Emerging Technologies and Innovative Research (JETIR) www.jetir.org 95

    पंजाबी काव्य ंमें पर्ाावरण संबंधी अवधारणा

    डॉ.रंजजत एम्,सहार्क आचार्ा ,जहंदी जवभाग,एम्.इ.एस कल्लडी कयलेज,मन्नार्क्ााड

    Abstract

    प्रकृजत और मानव का ररश्ता आजदम काल से अटूट रहा है । मानव जीवन प्रकृजत से जवजनजमात हयकर, उसके तत्य ं से

    पयजित हयकर अंत में उसी से जवलीन हयता है। प्रते्यक रु्ग में साजहत्य-साधकय ं ने मानव की धात्री ‘प्रकृजत’ का भाव-पूणा

    जचत्रण जकर्ा है। अतं्यत संपन्न पंजाबी भािा के कजवर्य ंके पर्ाावरण संबधी जचत्रण पर प्रकाश डालने की कयजशंश है र्ह

    लेख |

    भारत की अन्य भािाओ ंके समान पंजाबी साजहत्य का उदर् भी लगभग एक हजार विा पुवा हुआ है |पंजाबी भािा में

    अनेक बयजलर्ााँ पाई जाती है| सुन्दरदास नामक राजस्थानी कजव ने पंजाबी भािा का प्रर्यग अपनी रचना में जकर्ा था| अतं्यत

    संपन्न पंजाबी भािा के कजवर्य ंके पर्ाावरण संबधी जचत्रण पर प्रकाश डालने की कयजशंश है र्ह लेख |

    प्रकृजत और मानव का ररश्ता आजदम काल से अटूट रहा है । मानव जीवन प्रकृजत से जवजनजमात हयकर, उसके तत्य ंसे

    पयजित हयकर अंत में उसी से जवलीन हयता है। प्रते्यक रु्ग में साजहत्य-साधकय ं ने मानव की धात्री ‘प्रकृजत’ का भाव-पूणा

    जचत्रण जकर्ा है। मानव-जीवन का आधार कहे जाने वाले ‘पंच महाभूतय’ं का स्तवन साजहत्य में जनरन्तर हयता आर्ा है।

    श्रीमती रेखा दुबे जी ने अपनी लेख में जलखी - “सृजि के जीवय ंमें मानव एक मात्र प्राणी है, जजसे र्ह र्यग्यता प्राप्त है जक

    वह आजथाक, सामाजजक, राजनीजतक और तकनीकी जिर्ा के द्वारा पर्ाावरण के भौजतक पररवेश में पररवतान करके सांसृ्कजतक पररवेश

    की रचना करता रहा है।“ आज के समर् में जदन-प्रजतजदन पर्ाावरण में संकट गहराता जा रहा है, क्यजंक जनत्य बढ़ते प्रदूिण

    का इसपर प्रजतकूल प्रभाव पड़ता है।

    सुशील शमाा जी ने दय ही लब्य ंमें बतर्ा है –

    “मानव स्वाथो से जिरा ,बेचें सारे िाट।

    पर्ाावरण जनगल गर्ा ,नदी ताल कय पाट।“

    नवगीतकार डॉ. ओम प्रकाश जसंह ने अपने कई गीतय ंमें ‘पर्ाावरण की जचन्ता’ कय बखूबी उकेरा है।

    ‘‘प्यासी आाँखे,

    प्यासे पनिट,

    प्यासे ताल-तलैर्ा!

    जबना पानी के,

    र्ह जजन्दगानी,

    कााँटय ंकी है शैय्या!

    आाँख-जमचौनी

    करने आए

    बौराए बादल!!’’

    पर्ाावरण संरक्षण का कयई संस्कार अखण्ड भारतभूजम कय छयड़कर अन्यत्र देखने में नही ंआता है| भारत में

    पेड़-पौधय,ं नदी-पवात, ग्रह-नक्षत्र, अजि-वारु् सजहत प्रकृजत के जवजभन्न रूपय ं के साथ मानवीर् ररशे्त जयडे़ गए हैं| पेड़ की

    तुलना संतान से की गई है तय नदी कय मां स्वरूप माना गर्ा है| लेजकन अंधाधंुध जवकास आज पूरे हालत कय बदल डाला है

    |वन जवभाग के कागजय ंमें चारय तरफ हररर्ाली है। लेजकन जंगल जबरले हयते जा रहे हैं। हरी भजन जसंह ने ‘रेत की आवाज़’ नामक कजवता में इसका जचत्रण जकर्ा है |

    “सुनय रेत की आवाज़

    रेत चली आ रही है|

    अब तय पहंुच गर्ी रेत

    गााँव की जफरनी पर

    खेतय ंमें फसलय ंपर छयटी छयटी फुजसर्ााँ बन जटकी है

    राहय ंमें जबछी रेत

    राहय ंकी लकीरें सब रेत ने मेट दी

    अपने ही िरय ंके जनकट

    भले जशि मानस भी

    रही जैसे थलय ंमें भटके भूल गए जाने –पहचाने रासे्त” (खेत खेत में उगा लयहा ,पृष्ठ २०)

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    मानव जीवन एवं पर्ाावरण एक दूसरे के पर्ाार् हैं । कजव इसके बारे में जचंता व्क्त कर रहे है |मानव और

    प्रकृजत के बीच जवशेि संबंध रहे हैं। प्रारंजभक सभ्यताएं नजदर्य ंके तट पर स्थाजपत हुईं। प्रकृजत के साथ सौहादा पूणा

    तरीके से रहने वाले समाज फलते-फूलते हैं और समृद्ध हयते हैं। लेजकन अज का हाल क्ा है ? इसका जचत्रण

    सुखबीर जी ने ‘लहू –जमटटी’ कजवता में जकर्ा है,देखखए –

    “ वह जमटटी फांकता है

    और रह रह कर खून पीता हुआ उसे जनगलता है “|(खेत खेत में उगा लयहा ,पृष्ठ ३०)

    जहां मानव का अखस्तत् पर्ाावरण से है, वही ंमानव द्वारा जनरन्तर जकरे् जा रहे पर्ाावरण के जवनाश र्ा क्षजत के जविर् में

    जचन्तन करते ही हमें भजवष्य की जचंता सताने लगती है |मानव के लालच और आवश्यकताओ ंके बीच असंतुलन ने

    गंभीर पर्ाावरण असंतुलन पैदा कर जदर्ा है।

    “उसका अखस्तत्

    लहू जमटटी बना हुआ

    एक अरसे से भूखा है

    प्यासा है “| (खेत खेत में उगा लयहा ,पृष्ठ ३०)

    पर्ावारण का नाश करनेवाले र्ह सब सुनने के जलए तैर्ार नही ंहयगें और पर्ावारण के जलए आवाज़ उठानेवालय ं

    कय पागल कहेंगे | पर्ाावरण संरक्षण मनुष्य के जलए बहुत जरूरी है। व्खक्तगत लालच में आकर लयग पर्ाावरण से

    खखलवाड़ कर रहे है। जय एक जदन मनुष्य कय मंहगा पड़ सकता है। उनसे कजव बता रहे है –

    “सुनय

    रेत चली आ रही है

    लेजकन पहले धीमा कर लय

    अपने भीतर की शयर कय|”(खेत खेत में उगा लयहा ,पृष्ठ २१ )

    हमारे चारय ंओर प्रकृजत ने संुदरता जबखेर रखी है, पर हम अपनी आदतय ंऔर लापरवाही से उसे हर कदम पर नि

    कर रहे हैं। इसी का नतीजा है प्रदूिण। आज हमारा पर्ाावरण बुरी तरह प्रदूजित हय गर्ा है और हम सब इसे झेलने कय

    मजबूर हैं।‘कयर्ल के बयल’नामक कजवता में स्न्तयल जसंह धीर ने इसका जचत्रण कुछ इस प्रकार जकआ है –

    “कागय ंके इस कयलाहल में

    धुल उठ रही आसमान तक

    कजल-झठू कुफर की धूल|”

    पे्रम जसन्ह पे्रम जी अपनी रचना “ कैसी पवन चली” में खुलकर जलखा

    “कैसी पवन चली रय सजनी

    पवन के भीतर जहर भरी है

    पवन र्ह सजनी,खर भरी है |”

    धूल और धुएं से जय प्रदूिण जवकजसत हय रहे हैं वे जकस प्रकार नानाजवध संिामक रयगय ंकय जन्म देकर मनुष्य के जीवन कय नारकीर्

    बना रहे हैं,इसकी सुचना हमें र्हााँ जमल रहे है | आर के जसंग जी ने ‘जचजड़र्ा की पुकार’ नामक कजवता में इस जवपती का भर्ानक जचत्रण जकर्ा गर्ा है| मानव सृजि

    के जववेकी जीव माना जाता है| उनसे पंछी प्राथाना कर रहे है –

    “जचजड़र्ा चहक-चहक कहती सुबह-शाम मैं गगन में रहती कब तक मैं अब उड़ पाऊंगी प्रदूजित हवा नही ंसह पाऊंगी।

    दम िुटता है अब तय मेरा दे दय अब तय सुखद सबेरा तभी तुम्हारा आंगन चहकेगा

    चमन भी खुशबू से महकेगा I” ‘चिचिया की पुकार’

    प्रकृजत स्वभावतः संतुजलत पर्ाावरण के द्वारा मानव कय स्वस्थ जीवन प्रदान करती है |जवकास की दौड़ में प्रकृजत कय नजरंदाज

    करना बुखद्धमानी नही ंहै|क्यजंक सवाल है हमारे भजवष्य का, र्ह कयई खेल-कहानी नही ंहै|मानव कय प्रकृजत के

    अनुसार,प्रकृजत का सम्मान करके चलना है|

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    दयहाकार श्री हरेराम ‘समीप’ का माजमाक दयहा प्रकृजत दयहन का माजमाक जचत्रण प्रसु्तत कर रहे है |

    ‘‘जबजटर्ा कय करती जवदा,

    मााँ ज्य ंनेह समेत!

    नजदर्ा जससके देखकर,

    टर क में जाती रेत!!’’ (‘ट्र क में जाती रेत’ )

    ‘‘प्यासी आाँखे,

    प्यासे पनिट,

    प्यासे ताल-तलैर्ा!

    जबना पानी के,

    र्ह जजन्दगानी,

    कााँटय ंकी है शैय्या!

    आाँख-जमचौनी

    करने आए

    बौराए बादल!!’’ ( डॉ.ॐ प्रकाश जसंह -पयाावरण की चिन्ता)

    ‘कााँटय ंकी शैय्या’ और ‘बौराए बादल’ के माध्यम से कजव र्हााँ दूजित हय रहे पर्ाावरण पर जवचार प्रसु्तत जकर्ा है |

    सब जानते है जल मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताओ ंमें से एक है।र्ह जानकर भी जबना सयचे-जवचारे हमारे जल-स्रयतय ंमें

    ऐसे पदाथा जमला रहा है जजसके जमलने से जल प्रदूजित हय रहा है। मानव सभ्यता कय जल प्रदूिण से बचाने के जलए इस

    प्राकृजतक संसाधन कय प्रदूजित हयने से रयकना जनतांत आवश्यक है |

    ‘‘कह-कह कर थक गए सुधी-जन, जल ही जीवन है।

    जकनु्त जकसी ने बात न मानी, क्ा पागलपन है!!

    सूख रहे जल-स्रयत धरा के

    नजदर्ााँ रेत हुई

    अंधकूप बन गए कुाँ ए

    बावजड़र्ााँ खेत हुई

    तल में देख दरारें करता, सर भी िन्दन है!

    काट-काट कर पेड़ सभी जंगल मैदान जकए

    रूठे मेि, जजन्हयनें भू कय

    अगजणत दान जदए

    मानव! तेरे स्वाथा का, शत-शत अजभनन्दन है!

    जकर्ा अपव्र् पानी का

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    संरक्षण नही ंजकर्ा

    फें क-फें क कर कचरा सब

    नजदर्य ंकय पाट जदर्ा

    अपने हाथय ंजकर्ा मरूस्थल अपना उपवन है।

    चलय बनाएाँ बााँध नदी पर

    कुाँ ए, तड़ाग जनखारें

    जय भी जल का करें अपव्र्

    समझाएाँ , फटकारें

    र्य,ं जफर से र्ह मरू बन सकता, नन्दन-कानन है!’’(डॉ. ब्रहमजीत गौतम , जल ही जीवन है)

    आज शहरीकरण का रु्ग है | बखस्तर्ााँ शहर बनते जा रहे है | एक तरह तय एक अच्छी बात है|मगर आस्ल में

    बस्ती अपना अखस्तत् खय रहे है | रवीन्दर जी की पंखक्तर्ााँ देखखए –

    “बस्ती डरती है

    हवाई जहाज़ में से खीचंी अपनी ही तस्वीर से

    जजसमें मुरझारे् चेहरय ंकी जगह गुलाब नज़र आते है

    गजलर्य ंका चीत्कार,शाही गुणगान में बदल जाता है

    जजसमें उसके अंदेशे

    आत्म –जवश्वास का कुखौता पहने उभरते है “| खेत खेत में उगा लयहा ,पृष्ठ 118

    बस्ती क्य ंडर रहे है ? इस सवाल का जवाब सनी कुमार 'जवद्रयही अपनी कजवता में बता रहे है-

    “जजसने जीवन जदर्ा है बय प्रकृजत बड़ी महान

    बुखद्ध तुझ कय बख्श दी तू बन बैठा इंसान

    खुले समंदर आसमान दी हररर्ाली तुझकय

    शखक्त के साधन देकर दी खुशहाली तुझकय

    लेजकन बदले में तूने क्ा ज़हर जदर्ा उसकय

    हररर्ाली कय खेतय में -खेतय कय जफर फै्लटय ंमें

    बदल जदर्ा जजसकय

    करे अनजगनत पररक्षण कर डाला समुन्दर दूजित

    उत्सजान कर गेसय का वारु्मंडल प्रदूजित|”( सनी कुमार 'जवद्रयही ‘पर्ाावरण एक कजवता’3 )

    इससे स्पि है आज पर्ाावरण जवदयहन चरमसीमा पर पहंुच चुके है |वतामान वैजशक दौर में पर्ाावरण पर संकट का

    बादल उमड रहा है ,र्ह जचंता का जविर् है | लालच और आवश्यकताओ ं के बीच के असंतुलन ने गंभीर पर्ाावरण

    असंतुलन पैदा कर जदर्ा है।हमें र्ह र्ाद हयना चाजहए की हमारा अखस्तत् पर्ाावरण के संरक्षण पर आधृत है | हमारे प्रधान

    मंत्री श्री नरेंद्र मयदी जी के शब्द र्हााँ दुहराना चाहूाँगा- “हमारी आज की गजतजवजधर्य ंका प्रभाव आने वाले समर् की मानव

    सभ्यता पर भी पडे़गा और र्ह अब हम पर जनभार करता है जक सतत भजवष्य के जलए वैजश्वक जजमे्मदारी की शुरुआत हम ही

    करें । जवश्व कय पर्ाावरण के के्षत्र में एक ऐसी जमसाल की तरफ बढ़ने की आवश्यकता है, जय जसफा सरकारी जनर्मय ंतथा

    कानूनय ंतक ही न हय, बखि इसमें पर्ाावरण जागरूकता भी हय।“4

    ‘पर्ाावरण बचाइए, तभी बचेंगे प्राण!

    पर्ाावरण कय माजनए, रािर -मान-सम्मान!!

    वृक्ष काट कर आज हम, प्रकृजत करते नि!

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    सााँस नही ंले पाएाँ गे, कल बढ़ने हैं कि!!

    जागें और जगाएाँ हम, लडे़ नर्ा इक रु्द्ध!

    पर्ाावरण-रक्षण करें , बने समाज प्रबुद्ध!!

    जल, वारु्, वातावरण, देंगे सबकय प्राण!

    रक्षा इनकी कीजजए, मान इन्हें भगवान!!

    माता पृथ्वी जगत की, सब इसकी संतान!

    दूजित मााँ कय कर रहे, क्य ंबनकर अनजान!! डॉ.र्यगेन्द्र नाथ शमाा अरुण

    सन्दभा

    1. रेखा दुबे –मानव और पर्ाावरण में अंत जिर्ात्मक संबंध

    2. रिबीर जसंग(संपादक)-खेत खेत में उठा लयहा,जदशा प्रकाशन जदल्ली १९९०

    3. https://www.amarujala.com/kavya

    4. https://www.narendramodi.in/hi/a-clean-environment-for-human-empowerment-541750

    http://www.jetir.org/https://www.amarujala.com/kavya